चचिया नगरी (सच कहूँ न्यूज)। जो भी तीर्थ स्थान बने हुए हैं उस स्थान पर पहले किसी न किसी रूहानी महापुरुष, ऋषि-मुनि के चरण कमलों का स्पर्श हुआ होता है। हिमाचल प्रदेश तो ऋषि-मुनियों की धरती है। वहां पर ऋषि-मुनियों ने एकांत में बैठकर मालिक की भक्ति की। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में गांव नगरोटा बगवां का रहने वाला सूबेदार उत्तमचंद बताता है कि उसने सन् 1981 में पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज से मलोट दरबार में नाम-दान प्राप्त किया। फिर उसके बाद वह डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में दर्शन करने के लिए आया। सौभाग्य से उसको तेरावास में जाने की आज्ञा मिल गई। पूजनीय परम पिता जी ने सूबेदार से पूछा, ‘‘सुना भाई फौजी साहिब! कोई बात करनी है।’’ उसने अर्ज की, शहनशाह जी! मई-जून के महीनों में यहां पर बहुत गर्मी पड़ती है।
क्यों न आप गर्मियों के दिन हिमाचल में बिताया करो। इससे दो तरह का लाभ होगा। एक तो हिमाचल में आपके ज्ञान का प्रकाश फैलेगा क्योंकि वहां पर अनेक प्रकार के देवी-देवताओं की ही पूजा अर्चना का रिवाज है। लोग सही रूहानियत से कोसों दूर हैं। दूसरा वहां पर मौसम बहुत बढ़िया है जो आपजी के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। यह अर्ज सुनकर दयालु दातार जी ने वचन फरमाया, ‘‘बेटा! अजे तां कुझ नहीं कहंदे लेकिन सोचांगे जरूर।’’
इसके बाद सूबेदार फिर से डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में दर्शनों के लिए आया। उसने बेपरवाह जी के चरणों में अर्ज की, प्यारे शहनशाह जी! आप हिमाचल में चरण टिकाएं जी और वहां पर डेरा बनाएं जी। इस पर शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘दस्स भाई! केहड़ी जगहा ते डेरा बनाइए?’’ सूबेदार ने उत्तर दिया, धर्मशाला में बनाओ जी। दयालु दाता जी मुस्करा कर फरमाने लगे, ‘‘की पता भाई ! तेरे नगरोटे कोल उसतों नेड़े बना लइए 12-15 कि.मी. ते। धर्मशाला तां नगरोटे तों 20-25 कि.मी. दूर पैंदी है।’’
तीसरी बार गर्मियों के मौसम में उसने फिर अर्ज की, पिता जी! आप हिमाचल में अपनी गर्मियां बिताया करो। इस पर दयालु दातार जी ने ऐसा जवाब दिया कि न तो इंकार किया और न ही समय सीमा बांधी। कुल मालिक ने इस प्रकार वचन फरमाए, ‘‘काका! हुण तां संगत ज्यादा हो गई है। साडे बच्चे सानूं मिलण आउण असीं किते होर होईए, उहनां दा की हाल होवेगा? हां भाई! साडा शरीर भी वृद्ध हो गया है। तेरे बारे सोचांगे जरूर। बेटा! इस बारे सोचांगे जरूर।’’ यह शब्द बड़े वजनदार व अमृत बरसाने वाले थे।
इसके बाद प्रेमी उत्तम चन्द का तबादला अरूणाचल का हो गया। दूर होने की वजह से वह कभी-कभी दरबार में दर्शनों के लिए आता था। एक बार पूजनीय परम पिता जी के चरणों में अर्ज की, पिता जी! जब नजदीक था तो आते-जाते समय दर्शन-दीदार हो जाते थे। अब तो दिनों का सफर है और साल बाद ही छुट्टी मिलेगी। इस पर कुल मालिक जी ने वचन फरमाए, ‘‘काका! दो साल इंतजार कर। जब भी मौका मिले दर्शन कर गए। मालिक हमेशा अंग-संग है, कोई फिक्र नहीं करना।’’
हिमाचल प्रदेश (Dera Sacha Sauda Chachia Nagri ) के जीवों पर रहम करते हुए व उनकी सच्चे सतगुरु कुल मालिक के पावन दर्शन की अदृश्य अन्दरूनी पुकार सुनते हुए पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां कुल मालिक ने सन् 1993 में हिमाचल प्रदेश की धरती पर अपने चरण कमल डाले। जब पूज्य गुरु जी ने हिमाचल का दौरा किया तो आपजी ने उस समय लगभग बारह स्थानों पर सत्संगों का आयोजन किया। इन में कुजा बल, जाहू, बाहलियो, हमीरपुर, नादौन इत्यादि स्थान शामिल थे। इस दौरान पूज्य गुरु जी ने हजारों जीवों को नाम दान देकर उनका उद्धार किया।
परम दयालु पूज्य गुरु जी के वापिस सरसा दरबार पधारने के बाद हिमाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों से काफी संख्या में साध-संगत शहनशाह जी के पावन दर्शन करने के लिए सत्संग पर सरसा दरबार में गई। वहां जाकर साध-संगत ने सर्व-सामर्थ दाता जी के पावन दर्शन किए, सत्संग सुना और नए जीवों ने नाम-दान प्राप्त करके अपने आपको धन्य किया।
बाद में साध-संगत ने पूज्य गुरु जी कुल मालिक दाता जी के सामने नतमस्तक व करबद्ध होकर हिमाचल में किसी स्थान पर डेरे का निर्माण करने की बार-बार प्रार्थना की। पूज्य गुरु जी घट-घट की जानने वाले हैं, दया, मेहर के दातार रहमत के सागर ने हिमाचल प्रदेश की साध-संगत द्वारा सच्चे ह्रदय व सच्ची तड़प से की गई प्रार्थना को स्वीकारते हुए उन्हें आश्वत् किया कि शीघ्र ही हिमाचल प्रदेश में एक आश्रम का निर्माण करेंगे।
इसके बाद जून 1994 में फिर कुल मालिक जी ने अपनी दया मेहर से हिमाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर जैसे बनदी हट्टी, कांगड़ा, सुजानपुर, पालमपुर इत्यादि में सत्संगों का आयोजन किया। हिमाचल प्रदेश के इस दौरे के दौरान परम दयालु पूज्य गुरु जी के साथ पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान इत्यादि राज्यों से भी हजारों की संख्या में साध-संगत साथ थी। पूज्य गुरु जी के साथ चलते हुए एक लम्बे काफिले का नजारा बस देखते ही बनता था।
इस समय दौरान हिमाचल की साध-संगत ने सच्चे पातशाह जी के चरणों में अर्ज की, दयालु दातार जी! हिमाचल की साध-संगत बहुत गरीब है। सरसा तक आने जाने का किराया खर्च करने में असमर्थ है। इसलिए हमारे पर रहमत करते हुए हिमाचल में डेरा जरूर बनाओ।
साध-संगत की सच्ची मांग जो सच्चे मन से की गई थी, कुल मालिक परोपकारी दातार जी ने मंजूर कर ली। सच्चे पातशाह जी ने प्रबंधकों को डेरे के लिए स्थान ढूंढने के लिए ऐसा आदेश फरमाया कि डेरे वाले स्थान पर ये विशेष सुविधाएं होनी चाहिए:-
- डेरे का स्थान मुख्य सड़क के नजदीक व जुड़ा हुआ होना चाहिए और आबादी से दूर हो।
- उस स्थान पर कुदरती पानी का झरना हो।
- खुला स्थान होना चाहिए।
- भूगोलिक स्थिति के अनुसार चार प्रकार की जमीन हो।
- डेरे की जमीन 200-250 कनाल से कम न हो।
- स्थान ऐसा हो कि हिमाचल के अलावा बाहर (दूसरे राज्यों) से आने वाली साध-संगत हिमाचल के डेरे में आने पर मौसम की भिन्नता व राहत अनुभव करे।
- प्राकृतिक सौन्दर्य दृष्टिगोचार हो।
पूज्य गुरु जी का पावन हुक्म मिलते ही जिम्मेवारों व पुरुषोत्तम लाल टोहाना ने पूरी लगन से डेरे के स्थान के लिए पूछ-पड़ताल करनी आरम्भ कर दी। उस में नादौन व हमीरपुर की साध-संगत ने पूरी पूरी कोशिश की कि डेरा उनके नजदीक बने परन्तु शहनशाह जी के उपरोक्त आदेशों अनुसार कोई भी जगह पूरी न उतरी। इसलिए काम पूरा न हो सका।
जब बात न बनी तो अन्त में सभी प्रबंधकों ने पूज्य गुरु जी के चरण कमलों में अर्ज की, शहनशाह जी! जगह तो बहुत मिल रही है परन्तु जो विशेषताएं आपजी द्वारा बताई गई हैं वह सब की सब पूरी नहीं हो रही। भाव कोई भी जगह वो शर्तें पूरी नहीं कर रही। इस पर अन्तर्यामी दातार जी ने फरमाया, ‘‘बेटा! पालमपुर में सत्संग के समय नगरी में प्रेमी ज्ञान चंद वर्मा के घर उतारा था। उसी सड़क पर 2-4 कि.मी. आगे पीछे देखो शायद मालिक कोई मदद कर दे।’’ बात तो वो ही है कि अन्धा सुजाखे को नहीं पकड़ सकता।
केवल आंखों वाला ही अन्धे को रास्ता दिखा सकता है। कुल मालिक घट-घट की जानने वाले ने पूरा इशारा कर दिया। फिर क्या था, सन् 1995 के शुरु में थोड़ी सी पूछ-पड़ताल करने पर ही ठीक स्थान यानि मौजदा परम पिता शाह सतनाम जी सचखण्ड धाम चचिया नगरी (हिमाचल प्रदेश) वाली जगह की बात चल पड़ी। उस जगह का सौदा हो गया जोकि उपरोक्त सभी शर्तें पूरी करती है।
28 अप्रैल 1995 का दिन हिमाचल की साध-संगत के लिए एक सुनहरी व सौभाग्य पूर्ण दिन है। जिस दिन हिमाचल में डेरे का निर्माण कार्य करने के लिए लगभग 100 सेवादार भाई शाम के समय डेरे वाली जगह पर पहुंच गए। उस साध-संगत में हिमाचल की साध-संगत भी थी।
29-04-1995 को सुबह से ही बड़ी खुशियों से जो रास्ता पहले काफी तंग था, उसको गड्ढे भरकर चौड़ा करने का काम शुरु कर दिया गया। ईंटों जो कि खास किस्म की बनाई गई थीं उनको गाड़ियों से उतारने का काम व तम्बू लगाने का काम बड़े जोश के साथ पूरे जोरों से चल रहा था।
30-04-1995 की शाम को ट्रैक्टर-ट्रालियों के साथ डेरे में कुछ अन्य सेवादार पहुंच गए। ऊँची-नीची जमीन को समतल करने का काम भी जोरों पर चलने लगा। पहले वाला रास्ता मुख्य सड़क से गांव की तरफ होकर डेरे को आता था जोकि बाद में बदल कर मुख्य सड़क से सीधा डेरे को बना लिया गया है।
पूज्य गुरु जी डेरा सच्चा सौदा आश्रम बरनावा (यूपी) का सत्संग करने के बाद 07-05-1995 को सीधे चचिया नगरी (Dera Sacha Sauda Chachia Nagri) (हिमाचल प्रदेश) पहुंचे। सच्चे पातशाह जी ने डेरे वाली जगह में चारों ओर घूमते हुए फरमाया कि डेरा कहां बनाएं? फिर एक जगह कुर्सी पर विराजमान हो गए व वचन फरमाया, ‘‘भाई! यह धरती ऋषियों-मुनियों की धरती है। इस जगह पर हम पहले भी आए हैं।’’
दिनांक 09-05-1995 को पूज्य गुरु जी ने इस पवित्र धाम की नींव 6:40 पर अपने पवित्र कर-कमलों द्वारा रखी। सबसे पहले सच्चे पातशाह जी ने अपनी पावन दृष्टि में तेरावास का काम आरम्भ करवाया। दो मंजिली गोल गुफा व साथ एक कमरा उसके आगे बरामदा तथा ऊपरली मंजिल के आगे भी बरामदा बनाया गया। इसी तरह सेवादार बहिनों के लिए दो कमरे उनके ऊपर भी एक चौबारा बनवाया और इन सभी की चार दीवारी भी कर दी गई। तेरावास से पहले रास्ते के साथ लगता एक बड़ा हाल कमरा लगभग 14 गुणा 30 साध-संगत से मिलने के लिए और उसके साथ ही एक टेलीफोन के लिए 14 गुणा 12 का कमरा भी है। इन दोनों कमरों के नीचे एक और बड़ा हाल कमरा भी बना हुआ है।
साध-संगत के लिए दरबार से जाते हुए दायीं ओर दो कमरे व उनके ऊपर एक चौबारा बनवाया गया। दूसरी तरफ चार मंजिले क्वाटर जो कि गिनती में 16 हैं, साध-संगत के आराम करने के लिए बनवाए गए। उसके बाद एक हाल कमरा दो मंजिला लगभग 14 गुणा 30 का तैयार करवाया गया। जिसमें काफी संख्या में साध-संगत आराम कर सकती है। इसके अलावा 185 गुणा 150 के एक बहुत बड़े शैड का भी निर्माण करवाया है।
लंगर घर:- लंगर घर के लिए एक गोल कमरा उसके साथ रसोई तथा साथ में ही एक और कमरा है। दूसरी तरफ डबल स्टोरी दो कमरे लगभग 12 गुणा 20 के बनाए गए हैं। उनके ऊपर एक चौबारा है, जो सेवा समिति के आराम करने के लिए है और नीचे वाल एक कमरा पशुओं के लिए और दूसरा ट्रैक्टर आदि अन्य सामान के लिए है। एक तरफ नीचे बहिनों के लिए लैटरीन बने हुए हैं और ऊपर नहाने के लिए बाथरूप बनाए गए हैं दूसरी तरफ प्रेमी भाइयों के लिए भी लैटरीन तथा बाथरुम बने हुए हैं।
दरबार में पानी के लिए एक डिग्गी भी बनाई गई है, जिसमें झरने का पानी पड़ता है। साध-संगत के पानी पीने के लिए लगभग 50 टूटियां बहिनों वाली तरफ व 50 टूटियां भाइयों की तरफ लगाई गई हैं ताकि संगत को पानी पीने में मुश्किल न आए। फिर भी सत्संग के मौके पर पानी की बहुत कमी आ जाया करती थी। इसके अलावा आश्रम के साथ लगते गांव रसेहड के गांव वासियों ने भी पूज्य गुरु जी की पावन हजूरी में पीने के पानी के लिए प्रार्थना की। इस बात को ध्यान में रखते हुए पूज्य गुरु जी के हुक्म से करीब डेढ कि.मी. लम्बे पक्के खाल का निर्माण कर गांव वालों को पानी पहुंचा दिया और इसी तरह आश्रम में पानी की कमी को पूरा करने के लिए 250 फुट की गहराई तक बोरिंग करके ट्यूव्वैल लगवा दिया है।
जब शुरु में डेरे की भूमि ली गई थी तो यह देखने के लिए फसलों इत्यादि की पैदावार के लिहाज से यह भूमि कैसी है इसकी मिट्टी को हि.प्र. कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के संबंधित विभाग में जरूरी परीक्षण के लिए भेजा गया था। वैज्ञानिकों ने इस मिट्टी को अच्छा नहीं पाया और कहा कि यहां पर कुछ भी पैदा नहीं हो सकता लेकिन उनको क्या पता था कि जहां पर कुल मालिक, दातार सतगुरु दया के सागर की रहमत बरसती हो वहां पर भला क्या नहीं हो सकता।
यहां डेरे में सर्व-सामर्थ, दया के सागर, रहमतों के खजाने पूज्य गुरु जी की अपार कृपा व आशीर्वाद से सेवादारों की अनथक मेहनत व अच्छी लगन व हिम्मत तथा विश्वविद्यालय के कुछ प्रेमी डॉक्टर साहिबानों के सहयोग से कई प्रकार के फलों (जिनमें नाशपाती, किन्नू, संतरा, बादाम, सेब, आडू, नींबू, खुरमानी इत्यादि शामिल हैं) का उत्पादन हो रहा है। पीकननट (अखरोट की एक किस्म) के भी बहुत से पौधे लगे हुए हैं, जो जल्दी ही फल देना शुरु कर देंगे। इसके अतिरिक्त हल्दी, अदरक, लहसुन, आलू, सरसों, मक्की, धान, गन्ना कई प्रकार की सब्जियों व जड़ी-बूटियों इत्यादि की भरपूर पैदावार होती है।
अच्छी किस्म के बीज भी तैयार होते हैं। डेरे से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर पालमपुर में व 30 किलोमीटर की दूरी पर बैजनाथ नामक जगह में होली व शिवरात्रि के समय मेलों का हर वर्ष आयोजन होता है। इन मेलों में हि.प्र. के कृषि विभाग द्वारा कृषि प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। इन प्रदर्शनियों में जगह-जगह से किसान भाई अपनी सब्जियों, बीज वगैरह प्रदर्शित करने के लिए लेकर आते हैं। शाह सतनाम जी सचखण्ड धाम चचिया नगरी द्वारा भी इन प्रदर्शनियों में हर वर्ष बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जाता है। सेवादार भाई विनोद कृषि प्रदर्शनियों में डेरे की आरे से प्रतिनिधित्व करते हैं।
यहां यह बात उल्लेखनीय और प्रशंसनीय है कि डेरा सच्चा सौदा हि.प्र. सतगुरु जी की दया-मेहर व आशीर्वाद से हर वर्ष इन कृषि प्रदर्शनियों में प्रथम स्थान ग्रहण करता है। पूज्य गुरु जी की अपार कृपा व आशीर्वाद से पिछले 4-5 साल से लगातार सेवादार भाई विनोद इन प्रदर्शनियों में प्रथम स्थान प्राप्त करके ईनाम व प्रमाण पत्र प्राप्त करते चले आ रहे हैं। आज कृषि के क्षेत्र में भी पूज्य गुरु जी की रहनुमाई व पावन आशीर्वाद से हिमाचल के डेरे की चहुं ओर धूम मची हुई है।
यहां डेरे में पूज्य गुरु जी की दया मेहर से सेवादारों की सेवा समितियां जैसे कि पण्डाल समिति, सामान समिति, लंगर समिति डेकोरेशन समिति बिजली समिति इत्यादि का गठन कर दिया गया है। हर समिति के सेवादार अपनी तरफ से सेवा में पूरे तन-मन व लगन से अपना योगदान देते हैं। इसी प्रकार दयालु पूज्य गुरु जी की अपारकृपा व आशीर्वाद से ब्लॉकों का गठन भी कर दिया गया है।
प्रत्येक ब्लॉक के भंगीदास व पांच प्रेमी व साध-संगत मिलकर मानवता की सेवा करने का कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं देती। इस बार 28 जुलाई 2001 को सरसा दरबार में पूज्य गुरु जी द्वारा सभी क्षेत्रों के ब्लॉक भंगीदासों व पांच प्रेमियों की मीटिंग में पहली बार हिमाचल प्रदेश के सभी ब्लॉकों के लगभग सभी भंगीदासों व पांच प्रेमियों ने भी भाग लिया।
परम दयालु दातार पूज्य गुरु जी हर साल मई व अक्तूबर या नवम्बर में यानि साल में दो बार शाह सतनाम जी सचखण्ड धाम चचिया नगरी में पधारते हैं। यहां डेरे में व डेरे के आस-पास लगते कुछ स्थानों पर सत्संग लगाकर हजारों जीवों को नाम-दान देकर उनका उद्धार करते हैं। इसके साथ ही पूज्य गुरु जी द्वारा आश्रम में मुफ्त आंखों व जनरल मेडिकल कैम्प भी लगाये जाते हैं। जिनमें माहिर डॉक्टर भाग लेते हैं। मुफ्त दयाइयां बांटी जाती हैं। हजारों की संख्या में लोग पूज्य गुरु जी द्वारा की गई इस रहमत का लाभ उठाते हैं।
डेरा बनाने के बाद जब पूज्य गुरु जी वहां से डेरा सच्चा सौदा सरसा वापिस आने लगे तो साधु पाल सिंह जी को हुक्म फरमाया, ‘‘भाई! यह धरती ऋषियों-मुनियों की धरती है। इस जगह पर हम पहले भी आए हैं। तुम इस बात का पता लगाओ कि हम पहले कब यहां आए थे?’’
उपरोक्त वचन के अनुसार जब भी आस पास के गांवों का कोई आदमी दरबार में आता तो साधु हर किसी से पूछते, यह बताओ कि यहां (इस जगह) पर पहले कोई संत-महात्मा आया है? आगे से वो लोग कहते कि इस जगह पर तो भूत रहते हैं। सन्त-महात्मा के बारे में तो हमने सुना नहीं। एक दिन भाई सिबा राम गांव रसेड़ ने इस जगह के बारे में कहानी इस तरह सुनाई कि एक रात वह इस जगह में से लकड़ियां काटने के लिए आया।
उसने लकड़ियां काटनी शुरु कर दीं। फिर उसे इस तरह आवाज सुनाई दी जैसे घोड़े पूरी तेजी से दौड़ते आ रहे हैं। उनके पैरों की (दबड़क-दबड़क) आवाज उसे पूरे जारे से सुनाई दी। फिर वह डरता हुआ लकड़ियां छोड़ कर भाग गया।
साधु पाल सिंह इस जगह के बारे में हर किसी को पूछता रहता। तो एक दिन एक सत्संगी भाई दरबार में आया जिसने कि हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज से नाम लिया हुआ है। वह गांव राख का वसनीक है व अब मुंबई में रहता है जो कि अपने गांव राख मिलने के लिए आया था। उसने बताया कि सन् 1935 में हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज गांव परौर में अपना डेरा बना रहे थे तो एक दिन परौर से राख गांव में अपने किसी सत्संगी के घर चरण टिकाने के लिए घोड़े पर आए थे। उस गांव में जाने के लिए इस डेरे (चचिया नगरी) वाली जगह में से रास्ता था। शहनशाह जी यहां से गुजरे थे और डेरे वाली जगह में रुककर कुछ समय घूमे थे।
साधु सुखविन्द्र सिंह जो कि परौर कॉलोनी में रहते हैं वह भी इसकी पुष्टि के लिए इस तरह बताते हैं कि 1935 में जब हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज परौर कॉलोनी में अपना डेरा बना रहे थे तो चचिया नगरी के आस-पास के लोगों ने सच्चे पातशाह जी के पास यहां सत्संग करने के लिए अर्ज की तो उनकी अर्ज को मंजूर करते हुए बाबा जी ने इस मौजूद डेरे (चचिया नगरी) वाली गुफा के पीछे एक बगीचे में सत्संग फरमाया और उस समय 35 जीवों को नाम की अनमोल दात प्रदान की।
18 जून सन् 1995 को पूज्य गुुरु जी शाह सतनाम जी सचखण्ड धाम चचिया नगरी (Shah Satnam Ji Sachkhand Dham) पधारे। सर्व-सामर्थ दाता जी ने नीचे बनी तेरावास का ऊपरी हिस्सा तुड़वा दिया और सामने वाली पहाड़ी पर नई बहुत ही सुन्दर तेरावास का निर्माण करवाया। 19 जून को पूज्य गुरू जी ने इस आश्रम का नाम शाह सतनाम जी सचखण्ड धाम चचिया नगरी रखकर अपने पावन कर-कमलों द्वारा उद्घाटन किया व एक विशाल सत्संग का आयोजन किया। सत्संग के बाद बहुत से लोगों ने पूज्य गुरु जी से नाम की दात प्राप्त की।
सत्संग के दौरान पूज्य गुरुजी ने हिमाचली सेवादारों को सर्व धर्मवीर सेठी, ज्ञानचन्द वर्मा, सूबेदार उत्तम चन्द, प्रताप चन्द व राकेश कुमार को नोटों के हार डालकर सम्मानित किया। बाद में सभी को जलेबी का प्रशाद दिया गया। उद्घाटन के बाद पूज्य गुरु जी ने अपने पवित्र मुखारबिंद से वचन फरमाए कि डेरे तो और भी बहुत बनेंगे लेकिन हिमाचल का डेरा अपने ढंग का एक अनोखा ही डेरा होगा और शिमला वगैरह को लोग भूल जाएंगे। इस डेरे में न केवल भारत से ही बल्कि विदेशों से भी लोग आया करेंगे।
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