देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए लॉक डाउन की अवधि को 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया है। 21 दिन का लॉक डाउन का पहला चरण पूरा होते-होते देश में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 10 हजार को पार कर गया है। असल में लॉक डाउन के बाद देश भर में जांच कार्य में तेजी आई है इस कारण भी आंकड़ा निरंतर ऊपर जा रहा है।
21 दिन में कोरोना को पूर्णत: नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता मिली है। किन्तु तबलीगी जमात की वजह से ऐसे हालात बने जिनसे इस महामारी को बढने से नहीं रोका जा सका। और तो और उसका फैलाव भी देशभर में हो गया । इस कारण अनेक शहरों में हॉट स्पॉट बन गये, जिसमें देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई भी शामिल है। अब चूंकि लॉकडाउन की अवधि को बढ़ा दिया गया है, ऐसे में आशा जगती है कि आने वाले दिन देश के खास होंगे। लॉकडाउन-2 में पूरी तरह पता चल जाएगा कि हम कोरोना संक्रमण को रोकने में कहां तक सफल रहे हैं।
देशभर में कोरोना की जांच में तेजी आई है। जिसके चलते प्रदेश के कई राज्यों से लगातार संक्रमितों की खबरें आ रही हैं। विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले 7 से 10 दिनों के भीतर संख्या में और वृद्धि की पूरी सम्भावना है। इस वजह से ये आशंका भी उत्पन्न हुई है कि कोरोना भारत में सामुदायिक संक्रमण की स्थिति में पहुंच गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो इस आशय की घोषणा भी कर दी लेकिन केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने इसका खंडन किया है। इस सबके बीच अच्छी खबर ये है कि भारत में कोरोना ग्रसित लोगों के ठीक होने का आंकड़ा 10 फीसदी जा पहुंचा है। अस्पताल से ठीक होकर लौटे ये लोग कोरोना को लेकर व्याप्त भय और गलतफहमियों को दूर करने में सहायक बन रहे हैं। लोगों को ये लगने लगा है कि कोरोना का इलाज संभव है। हर ठीक होते रोगी से देश का आत्मबल बढ़ता जा रहा है।
सरकार, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस प्रशासन की चुस्ती के बावजूद देश में अभी भी एक वर्ग ऐसा है जो जांच से भाग रहा है। विशेष रूप से तबलीगी जमात के दिल्ली स्थित मुख्यालय मरकज से निकलकर देश भर में फैले जमाती कोरोना के विरुद्ध चल रही जंग को पलीता लगाने का काम कर रहे हैं। सामुदायिक संक्रमण सम्बन्धी आशंका के पीछे भी ये जमाती ही हैं जिन्होंने मस्जिदों के अलावा मुस्लिम बस्तियों में छिपकर अपनी बिरादरी के बाकी लोगों को भी कोरोना का संक्रमण बांटा। भले ही ये कहना कुछ लोगों को बुरा लगे लेकिन जमातियों ने इस लड़ाई को लंबा और कठिन बना दिया। वरना 21 दिन के लॉक डाउन के बाद अभी तक भारत कोरोना को हराने के मामले में काफी हद तक सफल हो चुका होता। ईश्वर की अपार कृपा है कि बावजूद इसके हालात नियन्त्रण में बने हुए हैं।
प्रधानमंत्री ने अपने ताजा सम्बोधन में लॉक डाउन को आगे बढ़ाने के साथ-साथ आने वाले दिनों में कुछ रियायतें और ढील देने की बात भी कही है। सरकार जल्द ही लॉकडाउन-2 को लेकर गाइड लाइन जारी करने वाली है। विशेषज्ञों के अनुसार लॉक डाउन के दूसरे चरण में सबसे बड़ी समस्या साधनहीन तबके की जरूरतों को पूरा करने की है। बीते दो हफ्ते में समाज की सामूहिक संवेदनशीलता का श्रेष्ठतम स्वरूप देखने मिला। शासन ने भी इस तबके की भरसक मदद की और प्रशासन का सेवा भाव भी काबिले तारीफ रहा है। चूंकि अब लॉकडाउन को 19 दिनों के लिए बढ़ा दिया गया है। ऐसे में इस बात की सम्भावना है कि सरकार दिहाड़ीदार श्रमिक वर्ग को कुछ छूट और रियायतें जरूर देगी, ताकि वो अपना भरण पोषण कर सकें।
इन सबके बीच सवाल यह भी है कि क्या आने वाले दिनों में जरुरी सामान की आपूर्ति पहले जैसी ही कायम रह पायेगी? प्रधानमंत्री ने देशवासियों को आश्वस्त किया है कि देश में पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं इस आपदा से लड़ने के लिए। जानकारों के मुताबिक सरकार द्वारा लॉक डाउन के अगले चरण में इनका उत्पादन करने वाली इकाइयों को दोबारा शुरू करने की अनुमति कुछ शर्तों के साथ दी जायेगी। तमाम समस्याओं और परेशानियों के बीच एक समस्या उन राज्यों में हो रही है जहां अन्य राज्यों के मजदूरों को बिना काम के रोक लिया गया है। बीते दिनों गुजरात के एक शहर में किसी निमार्णाधीन भवन के काम में लगे उड़ीसा के मजदूरों ने उन्हें घर वापिस भेजने की मांग करते हुए उपद्रव कर दिया। कुछ और जगहों से भी ऐसी खबरें मिली हैं। भले ही ये खबरें इक्का-दुक्का हों लेकिन इन पर ध्यान देने की जरूरत है।
सबसे बड़ी परेशानी आ रही है राशन की दुकानों तथा उन बैंकों में जहां अनाज और खाते में जमा सहायता राशि प्राप्त करने के लिए भीड़ उमड़कर अव्यवस्था फैला रही है। इसके चलते प्रशासन के काम में समस्याएं आ रही हैं। बेहतर हो इन मोर्चों पर कोरोना वॉरियर्स के रूप में सेवाएं दे रहे स्वयंसेवकों को तैनात किया जाए जिनका क्षेत्रीयजनों से जीवंत सम्पर्क होता है। इसके साथ ही जनप्रतिनिधियों की सेवाएँ भी ली जा सकती हैं। चिकित्सा के काम में लगे डाक्टर्स और उनके सहयोगी भी दिन रात अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रहे हैं। ऐसे में लॉक डाउन बढने के बाद समाजसेवा में लगे व्यक्तियों और संस्थाओं को भी दोगुनी शक्ति से मैदान में डटना होगा। इसके साथ ही आम जनता को भी देखना और सोचना होगा कि ये संकट असाधारण और अप्रत्याशित होने से व्यवस्थाएं अपर्याप्त होना स्वाभाविक है और बजाय असंतोष फैलाने के हमें हालातों के साथ जीने की आदत डालना होगी। कोरोना संकट से उबरना तभी सम्भव हो सकेगा जब देश में उसके नये मरीज मिलने बंद हो जायेंगे। इसलिए स्थिति सामान्य होने की निश्चित अवधि कोई नहीं बता सकेगा।
ये समय साहस से ज्यादा समझदारी दिखाने का है। आगे आने वाले 19 दिन में यदि संक्रमण की संख्या बढना नहीं रुका तब फिर इटली और स्पेन जैसी भयावह स्थिति पैदा हुए बिना नहीं रहेगी। सरकार की तरफ से मिलने वाली छूट का उतना ही उपयोग करें जितना अत्यावश्यक हो वरना ये लड़ाई और लम्बी खिंच सकती है और तब परेशानियां और ज्यादा हो जायेंगी। बेहतर होगा हम केवल अपेक्षा करने की बजाय व्यवस्था में सहयोग करें क्योंकि वह हमारी सुरक्षा और सुविधा के लिए ही तो बनाई गई है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोरोना को हराने के लिए पहले का 21 दिन का लॉकडाउन को उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया जिसकी जरूरत थी। अब सरकार और प्रशासन लॉकडाउन-2 में कुछ ढील भी देते हैं, तो उनका किसी को नाजायज फायदा उठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, क्योंकि किसी की भी लापरवाही और गलती कोरोना को बढ़ा सकती है। पिछले दिनों ही पीएम ने ‘जान भी जहान भी’ का मंत्र घोषित कर यह संकेत दे दिया था कि लॉकडाउन पार्ट-2 पहले से अलग होगा। यदि 130 करोड़ भारतीय एकजुटता दिखायें और सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया करवाने के साथ-साथ अधिक से अधिक आबादी को जांच के दायरे में लाये तो इससे कोरोना वायरस के प्रभाव पर अंकुश लगाया जा सकता है।
राजेश माहेश्वरी
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