शराब ने बढ़ाया अपराधों का दायरा, उजड़ रहे परिवार

The scope of enhanced crimes by alcohol the ruined family

भारत में शराब ने उत्पात मचा रखा है। एक सरकारी अध्ययन रिपोर्ट को गहनता से देखें तो पता चलेगा शराब की पहुँच घर घर हो गई है। हो भी क्यों नहीं, सरकार खुद शराब के धंधे को बढ़ावा दे रही है। लाइसेंस बांट कर राजस्व एकत्रित कर कल्याणकारी योजनाओं का संचालन कर रही है। ऐसे में शराबियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। देश में बच्चे से बुजुर्ग तक शराबी बनता जा रहा है। इसी कारण अपराधों में भी बढ़ोतरी होती जा रही है। सच तो यह है सरकार शराब से होने वाली बड़ी कमाई से हाथ धोना नहीं चाहती। केन्द्र ओर राज्य सरकार शराब से मिलने वाले राजस्व से कई कल्याणकारी योजनाए चलती है जिसमें अस्पताल भी शामिल है इसीलिए सरकारें शराब से होने वाले नुकसान होने की बड़ी वजह जानते हुए भी शराब पर प्रतिबंद्ध नहीं लगा सकती है ।

सरकार की ओर से कराए गए ताजा सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पांच में से एक शख्स शराब पीता है। सर्वे के अनुसार 19 प्रतिशत लोगों को शराब की लत है। जबकि 2.9 करोड़ लोगों की तुलना में 10-75 उम्र के 2.7 प्रतिशत लोगों को हर रोज ज्यादा नहीं तो कम से कम एक पेग जरूर चाहिए होता है और ये शराब के लती होते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार देशभर में 10 से 75 साल की आयु वर्ग के 14.6 प्रतिशत यानी करीब 16 करोड़ लोग शराब पीते हैं। छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश और गोवा में शराब का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इस सर्वे की चैंकाने वाली बात यह है कि देश में 10 साल के बच्चे भी नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में शामिल हैं। सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि शराब पर निर्भर लोगों में से 38 में से एक ने किसी न किसी बीमारी की सूचना दी, जबकि 180 में से एक ने रोगी के तौर पर या अस्पताल में भर्ती होने की जानकारी दी।

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के साथ मिलकर यह सर्वे किया। यह सर्वे सभी 36 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में किया गया। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर 186 जिलों के 2 लाख 111 घरों से संपर्क किया गया और 4 लाख 73 हजार 569 लोगों से इस बारे में बातचीत की गई। सैंपल के आधार पर देश की पूरी आबादी के हिसाब से नतीजों का आकलन किया गया है। सरकारी स्तर करीब 12 वर्षों बाद देश में नशीलें पदार्थों के सेवन की स्थिति व आकार और इसके प्रभावितों की जानकारी जुटाने के लिए राष्ट्रीय स्तर यह सर्वेक्षण हुआ है।

हमारे समाज में नशे को सदा बुराइयों का प्रतीक माना और स्वीकार किया गया है। इनमें सर्वाधिक प्रचलन शराब का है। शराब सभी प्रकार की बुराइयों की जड़ है। शराब के सेवन से मानव के विवेक के साथ सोचने समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। वह अपने हित-अहित और भले-बुरे का अन्तर नहीं समझ पाता। शराब के सेवन से मनुष्य के शरीर और बुद्धि के साथ-साथ आत्मा का भी नाश हो जाता है। शराबी अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। अमीर से गरीब और बच्चे से बुजुर्ग तक इस लत के शिकार हो रहे हैं। एक अन्य सर्वे के मुताबिक भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लगभग 37 प्रतिशत लोग नशे का सेवन करते हैं।

इनमें ऐसे लोग भी शामिल है जिनके घरों में दो जून रोटी भी सुलभ नहीं है। जिन परिवारों के पास रोटी-कपड़ा और मकान की सुविधा उपलब्ध नहीं है तथा सुबह-शाम के खाने के लाले पड़े हुए हैं उनके मुखिया मजदूरी के रूप में जो कमा कर लाते हैं वे शराब पर फूंक डालते हैं। इन लोगों को अपने परिवार की चिन्ता नहीं है कि उनके पेट खाली हैं और बच्चे भूख से तड़फ रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। ये लोग कहते हैं वे गम को भुलाने के लिए नशे का सेवन करते हैं। उनका यह तर्क कितना बेमानी है जब यह देखा जाता है कि उनका परिवार भूखे ही सो रहा है। युवाओं में नशा करने की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते शहरी और ग्रामीण अंचल में आपराधिक वारदातों में काफी इजाफा हो रहा है। शराब के साथ नशे की दवाओं का उपयोग कर युवा वर्ग आपराधिक वारदातों को सहजता के साथ अंजाम देने लगे हैं। हिंसा, दुराचार, चोरी ,आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करना, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना आम बात है ।

आजादी के बाद देश में शराब की खपत 60 से 80 गुना अधिक बढ़ी है। यह भी सच है कि शराब की बिक्री से सरकार को एक बड़े राजस्व की प्राप्ति होती है। मगर इस प्रकार की आय से हमारा सामाजिक ढांचा क्षत-विक्षत हो रहा है और परिवार के परिवार खत्म होते जा रहे हैं। हम विनाश की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में शराब बंदी के लिए कई बार आंदोलन हुआ, मगर सामाजिक, राजनीतिक चेतना के अभाव में इसे सफलता नहीं मिली। सरकार को राजस्व प्राप्ति का यह मोह त्यागना होगा तभी समाज और देश मजबूत होगा और हम इस आसुरी प्रवृत्ति के सेवन से दूर होंगे।
लेखक: बाल मुकुन्द ओझा

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