रेतीले टीलों में आएगी रसीले फलों की बहार

कम लागत में मुनाफा कमाने की लगी होड़

भिवानी (सच कहूँ/इंद्रवेश)। अब रेतीले टीलों यानी की बालू के रेगिस्तानी इलाके में किसान रसीले फलों की पैदावार लेकर बागवानी का दामन थामेंगे। इतना ही नहीं बंजर हो चुकी धरा पर भी किसान आलू, प्याज, टमाटर और फूलगोभी की पैदावार लेकर अपनी आमदनी बढ़ाएंगे। जी हां हम यहां बात कर रहे हैं भिवानी जिले के उन तीन ब्लाक की, जहां जमीनी पानी के साथ साथ नहरी पानी भी किसानों को नाममात्र ही मिलता है। पानी के अभाव एवं अधिक लागत के कारण किसान अब परम्परागत खेतीबाड़ी से भी अपना मुंह मोड़ रहे हैं।

ऐसे किसान अब बागवानी की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिसमें कम लागत और अधिक मुनाफे का लालच भी उन्हें इस ओर खिंच रहा है। सबसे अहम बात तो यह है कि भिवानी जिले में करीबन 30 हजार हेक्टेयर भूमि पर किसान परम्परागत खेतीबाड़ी को छोड़कर आगवानी का दामन थाम चुके हैं। जबकि इस वर्ष बागवानी का एक हजार हेक्टेयर का दायरा और बढ़ेगा। भिवानी जिले के भिवानी, तोशाम और बवानीखेड़ा ब्लाक के किसान करीबन 200 हेक्टेयर भूमि पर अनार, बैर और किन्नू (सिटरस) के नए बाग लगाएंगे।

रसीले फलों के ये बाग ऐसे रेगिस्तानी इलाके में लगेंगे, जहां पानी की उम्मीद बहुत ही कम है और मौसम भी ऐसे फलों की खेती के अनुकूल नहीं हैं। विपरित परिस्थितियों को चुनौति देकर किसान रसीले फलों की रेतीले टीलों पर बहार लाएंगे। इससे पहले भी रेतीले इलाकों में कई रसीले फलों के बाग खूब फलफूल रहे हैं, बस उन किसानों ने अपना नजरिया खेतीबाड़ी के प्रति बदला है और अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर हालातों एवं चुनौतियों पर भी जीत हासिल कर नए कीर्तिमान स्थापित कर दूसरे किसानों के लिए उदाहरण बने हैं।

हर साल बढ़ रहा एक हजार हेक्टेयर रकबा

जिला बागवानी अधिकारी डॉ. रघुवीर सिंह ने बताया कि जिले में बागवानी का दायरा बढ़ाने के लिए किसानों को परम्परागत खेती की बजाए बागवानी अपनाने की सलाह दी जा रही है। इसके लिए विभाग द्वारा हर संभव मदद के साथ साथ सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का भी लाभ किसानों को दिया जा रहा है। इसके अलावा सामुदायिक टैंक के लिए भी किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि पानी की कमी को दूर कर किसान अच्छी पैदावार के साथ अपना मुनाफा भी दोगुना कर सकें। हर साल बागवानी में एक हजार हेक्टेयर भूमि का इजाफा भी हो रहा है।

मरूधरा होने के कारण नहीं होती थी सब्जियों की खेती

भौगोलिक परिस्थितियों पर नजर डालें तो भिवानी जिले का अधिकांश हिस्सा राजस्थान के साथ लगने के कारण मरूस्थली जमीन से घिरा है। इस भूमि पर केवल कुछ फसलें ही ली जा सकती हंै, जबकि फलों और सब्जियों की अधिक पैदावार के बारे में किसानों के लिए सोचना कुछ साल पहले तो किसी सपने से कम नहीं था, मगर अब किसान दर्जनों किस्तों के फल एवं सभी प्रकार की सब्जियों का उत्पादन करने में सक्षम हैं।

30 हजार हेक्टेयर जोत बागवानी के हिस्से में

बागवानी विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो भिवानी जिले में अधिकांश भूमि पर किसान अब भी परम्परागत फसलों की ही खेती करते हैं, लेकिन इनमें से करीबन तीस हजार हेक्टेयर जोत का आकार बागवानी के हिस्से में आ गया है। सबसे अहम तो यह है कि बागवानी का यह दारा साल दर साल बढ़ा है। इस बार भी 200 हेक्टेयर में फलों के नए बाग स्थापित होंगे, जबकि 200 हेक्टेयर भूमि पर सब्जियों की पैदावार ली जाएगी। इसी के साथ 10 एकड़ भूमि पर नेट हाउस स्थापित किए जाएंगे, जिसमें बेमौसमी सब्जियों एवं फलों का उत्पादन भी संभव हो पाएगा। इसी तरह जिले में इस बार 400 हेक्टैयर में मशाला की पैदावार भी किसान लेंगे। इसमें खास तौर पर लहसून की खेती की जाएगी।