अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है यह त्योहार | Diwali 2023
यह युद्ध अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक था। इस धर्म युद्ध को जीतने के बाद भगवान श्री राम सीता माता को लेकर अपने भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौट आए थे। तब इस खुशी में लोगों ने घी के दीप जलाकर खुशी का इजहार किया था। तब से लेकर वर्तमान तक दीप जलाने की परंपरा चलती आ रही है। वह बात अलग है कि वर्तमान दौर में अब घी का स्थान सरसों के तेल,मोमबत्ती व इलेक्ट्रिक लड़ियों ने ले लिया। लेकिन पूजन के तौर पर अभी भी दीप जलाए जाते हैं। जिस दिन विजय प्राप्त की उस दिन को विजयदशमी या दशहरा नाम से पुकारा गया व जिस दिन भगवान श्री राम अपने भाई व सीता माता के साथ अयोध्या वापस लौटे दीपावली नाम की संज्ञा दी गई।
हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली | Diwali 2023
हिंदू धर्म का यह सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है, जो पूरे भारतवर्ष में नहीं बल्कि विश्व के कोने कोने में धूमधाम से मनाया जाता है। पर वर्तमान में अधर्म पर राम की विजय बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक इन त्योहारों की परंपरा को भुला दिया है। इन त्योहारों को अब महज मनोरंजन का दिन माना जाने लगा। दशहरे के दिन कई ऐसी घटनाएं देखने को और मिली जिस पर हम ही नहीं यदि आज के समय में कहीं रावण इस बात को देख रहा हो तो उसे भी दुख हो रहा होगा कि उन्होंने तो दशरथ पुत्र भगवान श्री राम ने अपने तीर से मारा था,ना कि किसी असामाजिक तत्त्व ने।
ऐसा दहन पहली बार देखा गया
रेवाड़ी के दशहरा पर्व के दौरान ऐसा हुआ कि लोग रावण का पुतला दहन की तैयारी कर रहे थे तभी दो युवक बाईक पर सवार होकर आए और रावण के पुतले को आग के हवाले करते हुए फरार हो गए। लोग इस मामले की शिकायत लेकर पुलिस के पास गए तो यह कहते हुए मामला दर्ज करने से मना कर दिया कि इस उत्सव की इजाज़त नहीं ली गई थी, जबकि शांति भंग करने का मामला तो बनता ही था।
‘मैं’ ने मारा था रावण
रावण का वध करते समय भी भगवान श्री राम ने रावण को इज्जत दी थी। भारतीय धार्मिक इतिहास यह बताता है कि जब भगवान श्री राम अपना 14 वर्ष का वनवास पूरा कर रावण से युद्ध जीतकर जब अयोध्या वापस लौटे तो उनसे जब पूछा गया, आपने राक्षस रावण का वध कर दिया। तब भगवान श्री राम ने भी कहा था चारों वेद 18 शास्त्र के ज्ञाता महाबली रावण को मैंने नहीं बल्कि ‘मैं’ ने मारा यानी उसी का अभिमान उसकी मौत का कारण बना। भगवान श्री राम की कितनी उदारता दिखाई देती है कि रावण का वध करने के बावजूद भी उन्होंने इसका श्रेय नहीं लिया। लेकिन आजकल विजयदशमी के दिन देश भर में रावण सहित मेघनाथ व कुंभकरण के पुतले जलाकर इस उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है।
भगवान श्रीराम जैसा चरित्र हो
पर रावण के पुतले का दहन ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए, जिसमें राम जैसा चरित्र हो। पर देश भर में ऐसी अनेक घटनाएं देखने को मिली रावण के पुतले के दहन से पहले ही कहीं असामाजिक तत्वों ने पुतले को आग लगा दी तो कहीं शराब के नशे में धुत शराबियों ने पुतले जलाए। ऐसा तो कभी भी रावण ने नहीं सोचा था और न ही ऐसा कभी राम ने सोचा था। क्योंकि ऐसा करने पर बुराई पर अच्छाई की विजय नहीं कहीं जा सकती है। अधर्म पर धर्म की विजय नहीं की जा सकती। पुतले को आग लगने वाले यदि खुद शराबी हो, खुद नशेड़ी हो तो वह खुद बुराई का प्रतीक है।
हम सबका कर्त्तव्य
इस पवित्र त्यौहार की परंपरा को बनाए रखना हम सबका कर्तव्य है। नहीं तो यह त्यौहार आने वाले समय में मनोरंजन के साधन के साथ-साथ बुराई का प्रतीक भी बनता नजर आएगा। पलवल के नेता सुभाष चंद्र बोस स्टेडियम में वर्षों से रावण कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं। श्री सनातन धर्म दशहरा कमेटी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में हर साल कुछ नया किया जाता है, ताकि उत्सव में आने वाले दर्शकों की रुचि और उत्साह बना रहे। इस बार आयोजन समिति के द्वारा यहां पर तीन मंजिला लंका का निर्माण कराया था। हर साल काफी संख्या में यहां लोग दशहरे का आनंद लेने पहुंचते हैं। लेकिन इस बार जो हुआ वो किसी ने अपने सपने में भी नहीं सोचा होगा। अपने समय में ऐसा कभी खुद मेघनाथ ने भी नहीं सोचा होगा कि एक नशेड़ी उसका वध करेगा। ऐसी घटनाओं से पुलिस व प्रशासन को सहयोग करना चाहिए ताकि किसी भी त्योहार की पवित्रता पर कोई असर ना हो।
डॉ. संदीप सिंहमार। व्यंग्य लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।