सरसा। ईश्वर, अल्लाह, राम का शुक्राना लगातार करते हैं तो आपकी इच्छाओं की पूर्ति तो होगी ही, आपके पहाड़ जैसे भयानक कर्म कंकड में बदल जाएंगे। लगातार धन्यवाद के लिए गुरुमंत्र-नामशब्द का अभ्यास करते रहें, सेवा-सुमिरन करते रहें ताकि आपके पाप कर्म कटते जाएं , नए कर्म बनते जाएं और मालिक की तमाम खुशियों के हकदार आप बनते जाएं। पूज्य गुरुजी ने फरमाया कि घोर कलयुग का समय है। कैसा भी समय हो इंसान की एक ही इच्छा रहती है कि वो हर समय खुश रहे। उसकी इच्छा होती है कि कोई भी समय हो तंदुरूस्त रहें। घर परिवार में सुख शांति हो। आनन्द लज्जतें मिलती रहें। इच्छाएं अपने आप पैदा हो जाती हैं , इंसान को इसके लिए अलग से कोई जोर नहीं लगाना पड़ता।
इंसान इच्छाओं से घबरा भी जाता है। इच्छाएं रखना बुरा नहीं है लेकिन इच्छाओं के मक्कड़जाल में फंस जाना ये बुरा है। पूज्य गुरुजी ने फरमाया कि सुमिरन करना बहुत मुश्किल है लेकिन जब कोई सफलता हासिल करनी हो, परीक्षा हो या मुसीबत आई हो तो सुमिरन यूं चलता है मानो एक्सप्रेस ट्रेन हो। पूज्य गुरुजी ने फरमाया कि संत कभी बद्दुआ नहीं देते , कभी किसी का बुरा नही सोचते। आपजी ने फरमाया कि जैसे कर्म करोगे, वैसा फल हासिल करोगे। संत सदैव सबका भला मांगते हैं और भला करने के लिए प्रेरित करते हैं। आदमी माने ही ना व गलत काम करता जाए और दोष मालिक को दें तो उसको दया मेहर कैसे मिले।
पूज्य गुरुजी ने फरमाया कि भक्ति का दायरा बहुत बड़ा होता है, बडे से बडे भक्ति इबादत करने वाले बैठे हैं। भक्ति सुमिरन के पक्के बनो, इस मन जालिम का कोई पता नहीं कब अडंगी मार दे और चारों खाने चित्त कर दे। पूज्य गुरुजी ने फरमाया कि गुरु पीर फकीर इस धरती पर कर्मों का खात्मा करने के लिए आते हैं। फकीर किसी का अकाज करते हों , यह हो ही नहीं सकता। वो भला करते थे, भला करते हैं और भला करते रहेंगे। संत कभी नहीं बदलते, आदमी की सोच , कमजोरियां उसे मालिक से दूर कर देती हैं। संतों की हर बात में राज होता है जो मान गया उसे राज मिल गया और जो नहीं माना करते वो वंचित रह जाते हैं।
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