सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि सुमिरन व सेवा दो ऐसे गहने हैं जो भी इन्सान इन्हें पहन लेता है उसे अंदर-बाहर कोई कमी नहीं रहती। श्रद्धा, भावना पैसे से नहीं खरीदी जा सकती, बल्कि सुमिरन, सेवा से ही पैदा होती है। भक्ति करना कोई गुनाह नहीं, अल्लाह, वाहेगुरु, राम का नाम लेना कोई पाप नहीं, बुराइयों से लड़ना कोई पाप नहीं।
जो अच्छाई को अच्छा नहीं समझता, समझो वो पतन की ओर जा रहा है
बुराई से जुड़े लोग अच्छाई को आगे बढ़ता देख तिलमिला उठते हैं, पगला जाते हैं, कुछ न कुछ करते रहते हैं, कुछ न कुछ बोलते रहते हैं। जो अच्छाई को अच्छा नहीं समझता, समझो वो पतन की ओर जा रहा है। आप सब समझते हैं, बुराइयों का खात्मा हो रहा है। ऐसे बुरे लोग, ऐसे दुकानदार जिनकी नशों की दुकानें बंद होने वाली हैं, वो उस टिमटिमाती लौ की तरह हैं, जो दीया बुझने से पहले होती है। पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि जिसके पास सच होता है उसे किसी चीज की परवाह नहीं होती। पल्ले होवे सच तां कोठे चढ़ के नच। हम बुराइयां व नशे छुड़वाते थे, छुड़वाते हैं और छुड़वाते रहेंगे। नेकी करते थे, करते हैं और करते रहेंगे।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि हम किसी धर्म के विरूद्ध आज तक नहीं बोले। 1948 से सत्संगें कर रहे हैं, कोई साबित कर दे कि किसी के धर्म के विरूद्ध बोले हैं, हम सत्संग करना छोड़ देंगे। आप जी ने फरमाया कि हाथी की मानिंद सच्चाई, नेकी की राह पर दृढ़ता से चलें। इतिहास गवाह है कि जब-जब इस दुनिया में रूहानी पीर-फकीर आए, लोगों ने उनकी राह में कभी फूल नहीं, बल्कि कांटे ही बिछाए। पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि अगर कोई उन्हें (संत) बुरा भी कहता है तो भी वे मालिक से उसका भला मांगते हैं। मालिक से दुआ करते हैं कि हर किसी को सद्बुद्धि बख्शे। वो बुराइयां छोड़कर अच्छाई के रास्ते पर आ जाएं। नेकी भलाई के मार्ग पर चलने वालों पर मालिक के रहमो करम की बरसात अवश्य होती है।
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