पहले जनधन खाता फिर ट्रांसेक्शन पर पेन नंबर की बाध्यता और अब समूचे देश में पांच सौ एवं एक हजार के नोटों का चलन समाप्त करना पूरी तरह सरकार का बाजार में नगदी के प्रवाह को नियंत्रित करने का प्रयास है। चूंकि हमारी अर्थव्यवस्था काले धन और नकली नोटों के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुकी थी। मोदी सरकार ने एक साहसिक, अप्रत्याशित एवं बेहद गोपनीय कदम के द्वारा चक्रव्यूह के सातों द्वार को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया। पूरा देश सरकार के इस कदम से स्तब्ध है और विपक्षी दल समझ नहीं पा रहे हैं कि किस तरह इस नई व्यवस्था में खामियां निकाली जाएं। आज इस आलेख में हमें सरकार के साहसिक कदम के भिन्न आयामों को समझना होगा।
चूंकि हमारा देश बड़े आर्थिक बदलावों के दौर से गुजर रहा है। सरकार अर्थव्यवस्था में आम आदमी के योगदान को बढ़ाना चाहती है। आम आदमी जब उत्पादन और श्रम की प्रक्रिया में शामिल होगा तो उसकी आय, क्रय शक्ति और जीवन स्तर सब कुछ बढ़ेगा। परन्तु सरकार के इस प्रयास में हवाला, साहूकार, कालाधन और डंपिंग करने वाले लोग बट्टा लगा रहे थे। माफियाओं ने इस कदर व्यवस्था को जकड रखा था कि स्टार्टअप का सपना देखने वाले लोगों के सामने तमाम चुनौतियां मौजूद थी। अब सभी कालेधन के स्रोत और अवैध बाजार पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी गयी है। उम्मीद है कि सरकार की तमाम योजनायें अब बेहतर तरह से लागू हो पाएंगी। ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकार की जकड़न कम होगी तो शहरी क्षेत्रों में घूसखोरों की हेकड़ी भी बंद होगी।
इसके अतिरिक्त सरकार अभी तक अपने अथक प्रयासों के बावजूद भी महंगाई को नियंत्रित करने में असफल रही है। आरबीआई अपनी कठोर मौद्रिक नीतियों के बावजूद भी बाजार में मुद्रा के प्रवाह को कम नहीं कर सका क्योंकि गैर-बैंकिंग ट्रांसेक्सन बाजार में बहुत तेजी से हो रहा था। काले धन और डंपिंग करने वालों की वजह से महंगाई कम नहीं हो पा रही थी। चूंकि अब पुराने नोट बेकार हो जायेंगे और केवल अधिकृत जारी किये गए नए नोट ही चलेंगे तो निश्चित रूप से अब बाजार में मुद्रा का प्रवाह कम होगा और मांग कम होने के चलते मंहगाई भी कम होने के आसार हैं।
दरसल अब पुराने नोटों के चलन बंद होने से गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति एवं संस्थाओं के धन के स्रोत समाप्त हो जायेंगे। जम्मू-कश्मीर में पत्थर फेकने वालों को अब धन नहीं मिल सकेगा, नक्सलियों के आर्थिक स्रोत बंद हो जायेंगे, नकली नोट अर्थव्यवस्था से पूरी तरह बाहर हो जायेंगे।
इसके अतिरिक्त सरकार बैंकिग प्रणाली में भी क्रांति लाना चाहती है, अब आवश्यक रूप से प्रत्येक व्यक्ति को खाता की आवश्यकता पड़ेगी और वह ज्यादा से ज्यादा कैशलैस भुगतान करने का प्रयास करेगा।
दरअसल अभी तक भूमि व संपत्ति को कालाधन निवेश करने का एक बड़ा क्षेत्र माना जाता था। तेजी से बढ़ते भूमि के दाम निवेशकों को अधिक लुभाते थे।अब जबकि काले धन पर लगाम लग जायेगी तो बहुत संभावनाएं हैं कि भूमि के क्षेत्र में निवेश घटेगा और अब निवेश वित्तीय क्षेत्र में बढ़ेगा जिससे अर्थव्यवस्था को ही फायदा होगा।
सरकार के इस निर्णय को होने वाले चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है। इस बात की चर्चा थी कि यूपी और पंजाब के चुनाव में बड़े स्तर पर वोट खरीदे जाने की सम्भावना है और इसमें पांच सौ व हजार के नोटों का प्रयोग अधिक किया जाता है। अब इतनी बड़ी संख्या में न तो नए नोट मौजूद होंगे और नाही पुराने नोटों का चलन होगा नतीजतन इस चुनाव में धन-बल के प्रयोग को रोका जा सकेगा। इसे सरकार की बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है।
परन्तु तमाम बेहतर संभावनाओं के मध्य हालिया तौर पर कई चुनौतियां भी नजर आ रही हैं। यद्यपि सरकार के इस कदम के दूरगामी परिणाम बेहतर होंगे लेकिन आने वाले दिनों में देश का मध्यम और निचला वर्ग काफी परेशानियां झेल सकता है। दरअसल देश में लगभग 65 प्रतिशत आबादी अभी भी गैर-शहरी क्षेत्रों में निवास करती है जहां बैकों का नेटवर्क बहुत अधिक नहीं है। और वित्तीय साक्षरता भी अधिक नहीं है।ऐसे में वह अपनी वित्तीय जरूरतों को कैसे पूरा करेगा। निचले वर्ग का भुगतान नगदी में होता है। दिहाड़ी-मजदूर रोजाना कमाकर ही अपनी जरूरतें पूरी करता है। अब बाजार में छोटे नोटों का प्रवाह अभी कम है और दिहाड़ी मजदूरों का यदि भुगतान नहीं होगा, तो वह गुजर-बसर कैसे करेगा? इसके अतरिक्त अभी शादी-विवाह का मौसम चल रहा है एवं छोटे शहरों में नेट बैंकिंग और आॅनलाइन भुगतान जैसी सुवधाएं बहुत अधिक मौजूद नहीं होती हैं, ऐसे में कैसे आवश्यकताओं की पूर्ति की जायेगी। समस्या यहां तक है कि कई लोगों की जेब में पुराने पांच सौ और हजार के नोटों को छोड़कर छोटे नोट नहीं हैं और वह किसी आवश्यक काम से घर से बाहर हैं, तब उनके पास क्या विकल्प मौजूद है, जबकि नौ-दस दिसम्बर को एटीएम भी बंद हैं। इसका कोई जवाब सरकार के पास भी नहीं है। ऐसी गंभीर समस्याओं को कैसे सरकारी स्तर पर नजर अंदाज कर दिया गया इस विषय पर सरकार पर प्रश्न तो खड़े होते ही हैं।
जहां तक घूसखोरी और कालेधन का सवाल है तो हालिया तौर पर इसपर नियंत्रण तो लगेगा लेकिन आगे इसी व्यवस्था को कैसे बनाए रखा जा सकेगा इस पर स्थिति साफ नहीं है क्योंकि सरकार 2000 के नए नोट जारी कर रही है जोकि आसानी से नगदी में दिया जा सकता है। हालंकि इसे रोकने के लिए समय के साथ कोई कारगर नीति निश्चित रूप से बनाई जायेगी। कहा जा सकता कि बाजार में मुद्रा का प्रवाह अब आवश्यक रूप से नियंत्रित होगा। जहां इसका लाभ आगे चलकर मध्यम वर्ग को हो सकता है वहीं मुद्रा का नियंत्रित प्रवाह कालाधन धारक, भ्रष्ट अफसर व नेताओं की हवा बिगाड़ सकता है। और अब ज्यादातर भुगतान भी बैंकिंग प्रणाली के तहत होगा तो वित्तीय अनियमितता को अभी आसानी से ट्रैक किया जा सकेगा। यदि ऐसा अपने आदर्श रूप में लागू हो जाता है तो देश के लिए सच में यह अच्छे दिनों के संकेत होंगे। पार्थ उपाध्याय