सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि बहुत से लोग कहते हैं कि हम नशा नहीं करते। परिवार वाले सुख सुविधा से रहते हैं। रहने-खाने को अच्छा है, घर है, बच्चे हैं। तो हम क्यों गुरुमंत्र लें? आखिर ऐसा क्या है गुरुमंत्र में? पूज्य गुरुजी ने फरमाया कि गुरुमंत्र को ‘नाम’ कहो, ‘कलमा’ कहो, ‘मैथर्ड आफ मेडिटेशन’ कहो, बात एक ही है। मालिक का नाम सब सुखों की खान है। आपजी ने फरमाया कि जब आपका विल पॉवर, आत्मबल कम हो, उस समय दुनिया के हर आदमी की सोच बदल जाती है, नेगेटिव (नकारात्मक) हो जाती है और आत्मबल के आने से पॉजिटिविटी (सकारात्मकता) बढ़ती है, सफलता आपके कदम चूमने लग जाती है।
पूज्य गुरुजी ने फरमाया कि हर अच्छे क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए आत्मबल जरूरी है, पर ऐसा कोई टॉनिक ऐलोपैथी, होम्यौपेथी, नैच्यूरोपेथी इत्यादि में नहीं बना, जिसे खाने से आत्मबल बढ़ता हो। आप जी ने फरमाया कि आत्मबल हम सब में मौजूद है। उस आत्मबल को हासिल करने के लिए आप अंदर झांके, अपने अंदर जाएं। इंसान अपने अंदर कैसे जा सकता है? कौन-सा तरीका है, उस धुन, अनहद नाद जो सबके अंदर है, जिससे आत्मबल बढ़ता है, उसे पाने का।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि पहला स्टेज है, सत्संग में आएं, पीर-फकीर के वचनों को सुनें। दूसरा नाम लें और तीसरा उसका अभ्यास करें। आत्मबल बढ़ाने के लिए गुरुमंत्र तो मिल गया पर उसका जाप नहीं करते तो वो बढेगा कैसे? आप जी ने फरमाया कि जैसे इन्सान के सामने घी, दूध, बादाम रखे हैं, उसे सजदा करने से ना तो उनकी पॉवर आएगी और ना ही स्वाद। उनको खाओगे तो ही स्वाद भी आएगा और ताकत भी। उसी तरह गुरुमंत्र है, पीर-फकीर उस गुरुमंत्र को दे देते हैं। उसका निरंतर अभ्यास करो, जाप करो तो उसका अलौकिक स्वाद भी आएगा और आनंद भी। जो आपको काम वासना, मोह, लोभ, अहंकार तमाम बुराइयों से दूर कर देगा।
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