अवैध खनन में लिप्त माफिया तत्वों का दुस्साहस किस हद तक बढ़ गया है कि हरियाणा के नूंह में डीएसपी सुरेंद्र सिंह की डंपर से कुचलकर हत्या कर दी गई। कानून के शासन को खुली चुनौती देने वाली इस घटना की भर्त्सना करना और अपराधियों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई करने का वचन देना ही पर्याप्त नहीं। आवश्यकता इसकी है कि खनन माफिया के दुस्साहस का दमन करने के साथ उन कारणों की तह तक भी जाया जाए, जिनके चलते तमाम रोक के बाद भी अवैध खनन होता रहता है। इनके कारनामे ये भी हैं कि इन्होंने नदियों से बजरी और अरावली पर्वतमाला के पत्थर को खोदकर बेच डाला।
सुप्रीम कॉर्ट बार-बार कहता रहा कि नदियां और अरावली पर्वत कौन निगल गया? क्या राज्य सरकारें अपनी जिम्मेदारी नहीं समझती है। आज ये स्थिति है कि इन पर लगाम लगा पाना शासन-प्रसाशन के लिए आसान नहीं है। हद तो यह है कि इसके पीछे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त लोग जुड़े हैं। आए दिन किसी अफसर को अवैध खनन रोकने पर जान गंवाने की खबरें पढ़ने में आती रहती हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि सुप्रीम कॉर्ट के आदेश के बाद भी नदियों और पहाड़ों को खोखला किया जा रहा है। आज स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि खनन माफिया समूचे देश में नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए नदियों और पहाड़ों को खत्म करने पर टूट पड़े हैं। चाहे गंगा हो, चंबल या फिर यमुना या अरावली पर्वतमाला।
अवैध खनन के हमलों से आज नदियां घायल हो चुकी हैं,और पहाड़ मृत। जगह-जगह से बालू-रेत निकलने से समस्या पैदा तो होगी ही। फिर हरियाली खत्म हो रही है। ग्लोबल वार्मिग का असर है कि अब बरसात का पानी बढ़ेगा, घटेगा नहीं। अवैध खनन से नदियां खोखली हो जाएंगी तो बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहेगा। हालांकि यह काला कारोबार दशकों पुराना है लेकिन आजादी के बाद लोगों की बढ़ती आबादी और अधिक धन कमाने की लालसा ने अवैध खनन को हवा दी। नि:संदेह सरकारों को सक्रिय होकर खनन माफिया को खत्म करने के लिए कठोर कदम उठाने और ठोस नीतियां बनानी होंगी।
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