एक अंतराष्टय रिपोर्ट ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू के अनुसार पिछले तीन साल से छह से सात हजार भारतीय करोड़पति देश छोड़ रहे हैं। ये धनवान लोग उन देशों का रूख कर रहे हैं, यहां टैक्स स्लैब कम है चूंकि भारत में आयकर 40 प्रतिशत तक व जीएसटी 28 प्रतिशत की ऊंची दरों से उद्योग जगत में किसी आतंक की तरह है। उस पर पूरा उद्योग जगत कर्ज के जाल में भी फंसा हुआ है। कैफे कॉफी डे के मालिक वीजी सिद्धार्थ का सोमवार को सब कुछ छोड़छाड़ कर गायब हो जाना तत्पश्चात बुधवार को मेंगलुरू के निकट नेत्रावति नदी से मिले उनके शव से पूरा उद्योग जगत स्तब्ध है। उन द्वारा की गई आत्महत्या की वजहें टटोले जाने से वह सब कारण मिले हैं जिनके चलते भारत को करोड़पति छोड़कर जा रहे हैं।
वीजी सिद्धार्थ को देश प्यारा था वो नहीं गए लेकिन वह अपनों के बीच भी नहीं रूक सके। भारत जिस तेजी से आर्थिक तरक्की कर रहा है इस तरक्की को उतनी ही तेजी से देश का राजनीतिक व प्रशासनिक तंत्र तबाह करने में लगा हुआ है। अब देश में राजनीतिक बदलाखोरी के लिए नेताओं के नजदीकी कारोबारियों व रिश्तेदारों के कारोबारों को तबाह किया जा रहा है, भले ही वह सब अपना कारोबार पूरी ईमानदारी से कर रहे हों। उद्योग जगत के सामने अजीब संकट है अगर वह किसी एक राजनीतिक दल के विधायकों सांसदों को रूकने की जगह व नाश्ता-खाना मुहैया करवाता है तो दूसरा दल उसके पीछे पड़ जाता है। केन्द्र में भाजपा है कई राज्यों में कांग्रेस या अन्य दलों की सरकार है, यहां आए दिन सरकारें बनाने गिराने का खेल चल रहा है, कहीं राज्यसभा चुनावों के लिए विधायकों-सांसदों को छुपाया जा रहा है इस सब में पिस रहा है तो वह उद्योग जगत है।
हार-जीत किसी की भी हो आयकर छापे, ईडी की पूछताछ, भारी भरकम जुर्माने यह देश में आज कमोबेश हर राज्य में हर उद्योग की स्थिति है। इतने सबके बाद ऊंची आयकर दरें अत: उद्योगपति देश या दुनिया छोड़ने की राह चल पड़े हैं। केन्द्र सरकार व राजनीतिक दलों को इस ओर गंभीर होना होगा। पहले भारत से सिर्फ पेशेवर व कामगार लोग ही बाहर का रूख कर रहे थे अब उद्योगपति भी अगर उस राह चल निकलेंगे तब अकुशल व काम से जी चुराने वाले बहुसंख्यक लोगों के इस देश का क्या होगा?
वह भी तब जब अमेरिका व चीन जैसे देश भारत को अपनी व्यापारिक नीतियों से पीछे ही रहने देने के लिए आमादा हैं। आयकर विभाग ईडी का राजनीतिक प्रयोग रोका जाना होगा, इससे भी बढ़कर देश के उद्योग जगत पर लादे जा रहे टैक्स, चन्दे, ब्याज, समाज कल्याण के बोझ को कम करना होगा। सरकार एवं राजनीतिक दलों दोनों को अपनी मनमर्जी की कार्यशैली से बाहर निकलना होगा, अन्यथा भारत की आर्थिक प्रगति का पहिया एक बार अगर डांवाडोल हो गया तब उसे संभाल पाना बेहद मुश्किल होगा, जिसे सरकार व नेता दोनों समझते भी हैं।