इस बार दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश में हिंसा की अनेक घटनाएं हुईं। हिंदू मंदिरों पर हमले के दो दिन बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दोषियों को कड़ी सजा देने और हिंदुओं को सुरक्षा प्रदान करने की बात दोहरायी है। पिछले साल पूजा के दौरान उन्होंने घोषणा की थी कि दुर्गा पूजा हमारी सरकार की धर्मनिरपेक्षता की पहचान है। उल्लेखनीय है कि भारत-बांग्लादेश संबंधों में कई चुनौतियां हैं, लेकिन एक दर्द अब भी अह्म है- हिंदुओं के विरुद्ध हो रहे निरंतर अत्याचार। दुर्गा पूजा की हिंसा वहां की अंदरूनी मानसिकता की कहानी है। यह दर्द बहुत पुराना है, नोआखाली की हिंसा का इतिहास दुनिया के सामने है। तब गांधी का सत्याग्रह भी बहुत कारगर नहीं हो पाया था। उसके बाद बंटवारे के दौरान भी हिंदुओं का नरसंहार बड़े पैमाने पर हुआ था।
अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट में दर्ज है कि बंटवारे से पहले बांग्लादेश में हिंदुओं की तादाद करीब 27 फीसदी थी, जो 2011 में महज आठ प्रतिशत रह गयी। पुन: हिंदुओं का पलायन 1971 में हुआ, जब पाकिस्तानी सेना सुनियोजित ढंग से हिंदुओं की हत्या कर रही थी। हिंदुओं पर एक बार फिर अत्याचार बेगम खालिदा जिया के शासनकाल में हुआ था, जब 2001 में उनकी सरकार बनी थी। उसके बाद कई ऐसे नियम भी बनाये गये, जो हिंदू समुदाय के विरुद्ध थे। उनकी जमीन और संपत्ति हड़पने का निष्कंटक दौर शुरू हुआ, जो आज भी बरकरार है। जयशंकर का यह भी कहना था कि केवल दक्षिण एशिया नहीं, बल्कि पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बांग्लादेश भारत का महत्वपूर्ण सहयोगी बन गया है। भारत के लिए चिंता का सबसे बड़ा मुद्दा दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशिया में आतंकवादी और कट्टरपंथी संगठनों का पैर पसारना है।
भारत नहीं चाहता है कि बांग्लादेश में ऐसे समूहों की गतिविधियां बढ़ें, जिससे भारत को किसी प्रकार का खतरा पैदा हो। खास तौर पर दोनों देशों की सीमा से लगे इलाकों में इसके संकेत मिले हैं। लेकिन शेख हसीना सरकार ने काफी हद तक इन पर अंकुश लगाने के प्रयास भी किये हैं। भारत की चिंता दक्षिण एशिया में बढ़ती हुई आतंकी गतिविधियों से भी है। अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने और पाकिस्तान की घुसपैठ का असर बांग्लादेश की अंदरूनी राजनीति पर भी पड़ सकता है। अतिवादी गिरोह वहां पर भी सक्रिय हैं, जो हिंदुओं को निशाना बना रहे है। बांग्लादेश में हिंदू आबादी का कम होना गंभीर चिंता का विषय है। इस तथ्य और सच्चाई को नागरिकता संशोधन कानून से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। दोनों की पृष्ठभूमि अलग है। भारत की पहचान केवल संविधान में ही नहीं, बल्कि लोगों के मानस में धर्मनिरपेक्षता की रही है। उसमें कोई बदलाव नहीं आया है। बांग्लादेश में भी वही सोच विकसित करनी पड़ेगी। पाकिस्तान की तर्ज पर चलना ठीक नहीं है। शेख हसीना से उम्मीद है कि वे इस दिशा में ठोस पहल करेंगी।
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