त्यौहार : इलेक्ट्रॉनिक लड़ियों की बजाय बढ़ने लगी मिट्टी के दीपकों की मांग
-
कुंभकार के दीपक से दमकेगी दीपावली
-
जगमग लाइटों से टक्कर लेने को तैयार मिटटी के रंग बिरंगे दीपक
कुलदीप गोयल सादुलशहर। नए जमाने की हवा भले ही पुराने रीति-रिवाजों को पीछे छोड़ने पर उतारू हो मगर आज भी मिट्टी के एक छोटे से दीपक की लौ के आगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की चकाचौंध के बाजार की चमक फीकी ही है। करवा चौथ हो या अहोई अष्टमी, दीपावली हो अथवा कोई अन्य त्योहार, ये कुम्हारों के चाक और बर्तनों के बिना पूरे नहीं होते। कुम्हार के चाक से बने खास दीये दीपावली में चार चांद लगाते हैं। दीपावली का त्यौहार नजदीक है ऐसे में कुम्भकारों के चाक ने गति पकड़ ली है और मिट्टी के दीपक बनाने का काम तेज कर दिया है।
पाच तत्वों से मिलकर बनता है मिट्टी का दीपक (Mitti Ke Deepak)
मिट्टी का दीपक पांच तत्वों से मिलकर बनता है जिसकी तुलना मानव शरीर से की जाती है। पानी, आग, मिट्टी, हवा तथा आकाश तत्व ही मनुष्य व मिट्टी के दीपक में मौजूद होते हैं। दीपक जलाने से ही समस्त धार्मिक कर्म होते हैं। दीपावली के शुभ अवसर पर मिट्टी के दीयों का ही अत्यंत महत्व है। वास्तु शास्त्र में इसका महत्व इस बात से है कि यदि घर में अखंड दीपक की जलाने व्यवस्था की जाए तो वास्तु दोष समाप्त होता है।
50-60 रुपए सैकड़ा बिकते हैं दीये
इन दिनों कुम्हार बिक्री के लिए अलग-अलग वैरायटी के दीपक तैयार करने में लगे हुए हैं। कुम्हारों के अनुसार होलसेल में 50 रुपए सैकड़ा में दीये बेचे जाते हैं और बाजार में ग्राहकों को दस रुपये में एक दर्जन दीये मिलते हैं। उन्होंने कहा कि दीया बनाना ही परेशानी का सबब नहीं बल्कि बिक्री करने में भी काफी दिक्कतें होती है। लोग इतनी कम कीमत के बाद भी मोलभाव करते हैं
चाइनीज लड़ियों को टक्कर दे रहे दीये
एक दौर ऐसा भी था जब मिट्टी के दीयों की जगह चायनीज लड़ियों ने ले ली थी, लेकिन अब फिर मिट्टी के दीयों का दौर लौट आया है। कुम्भकार के अनुसार दीयों की वैरायटी भी इतनी है कि ग्राहक खरीदने से पहले कंफ्यूज हो रहे हैं। बाजारों में इस बार की स्थिति देखकर यह अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि चीनी वस्तुओं की अनदेखी हो रही है। ग्राहक चीनी दीये लेने की बजाए लोकल दीये खरीद रहे हैं। बाजार में आ रही चाइनीज लड़ियों से टक्कर लेने के लिए मिट्टी के दीपक तैयार हो रहे हैं।
मिट्टी के दीयों में दिखती है भारतीय संस्कृति की झलक
प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं। एडवोकेट कृष्ण जालप के अनुसार रौशनी के त्यौहार का असली मजा दीपको की रौशनी से है, ना कि इलक्ट्रोनिक लड़ियों से। उन्होंने कहा कि भगवान राम का स्वागत अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर ही किया था।
पर्यावरण संरक्षण में सहायक मिट्टी के दीपक
राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के अजय दीक्षित का कहना है कि सरसो और घी डाल कर मिट्टी के दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और मछरो का नाश होता है। मधुसूदन शर्मा, केवल अग्रवाल, प्रदीप झोरड़ आदि लोगों ने कहा कि इस दीपवाली सभी को मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए और लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।