सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि सतगुरू, मौला के प्यार, मुहब्बत में चलना कोई आसान कार्य नहीं पर असंभव भी नहीं है। इन्सान जब सतगुरू, मालिक के लिए अपना जीवन कुर्बान करता है, सारी दुनिया का त्याग करता है तो उसके दिलो-दिमाग में एक ही चीज होती है, अपने सतगुरू-मुर्शिद से प्यार बढ़ाना, मालिक को पाना और उसकी औलाद की सेवा के लिए सारा जीवन कुर्बान कर देना। लेकिन ज्यों-ज्यों समय बढ़ता है उसके अंदर बहुत-सी इच्छाएं घर कर जाती हैं। मान बढ़ाई, वाह-वाह चाहिए, जिसके साथ जुड़ जाती है, ईर्ष्या नफरत, द्वेष।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जब गीली लकड़ी को जलाया जाए तो तो वो धधकती रहती है, धुआं उठता रहता है। उसी प्रकार ईर्ष्या होती है, द्वेष, नफरत जब इन्सान के दिलो-दिमाग में आ जाती है तो वो गीली लकड़ी के मानिंद जलता रहता है। उसे दीन दुनिया कुछ अच्छी नहीं लगती। फिर मान-बड़ाई में उलझ जाता है। ये सारी प्रभु को पाने के रास्ते में अड़चनें हैं। इनके साथ अड़चनें हैं, काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार, मन व माया। ये सारे मिलकर चाहे कोई त्यागी हो, चाहे घर गृहस्थ वाला हो सब को मालिक के प्यार से रोकती हैं। ये रूकावटें बन जाती हैं और आदमी डगमगाने लगता है। आदमी का दिलो-दिमाग खराब होने लगता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि ये सब अड़चनें तभी दूर होंगी जब आप लगातार सुमिरन व सेवा करोगे। लगातार भक्ति अगर आप नहीं करते तो ये अड़चनें बड़ी ही खतरनाक हैं। मतलब जो आप सुमिरन करते हो उसका फल तो मिलना है, लेकिन साथ काम-वासना, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, द्वेष ये भी करते रहते हैं तो किया गया सुमिरन इन्हीं से आपको बचाने में खत्म हो जाता है। अगर आप ये बुरे कर्म न करते तो वो किया गया सुमिरन आपको व आपकी कुलों को इतनी खुशियां देता कि आपने कभी सपने भी नहीं सोचा होगा। लेकिन इन्सान अपनी मूर्खता की वजह से, मन व मनमते लोगों की वजह से किये गए सुमिरन को आपके द्वारा की गई बुराइयों से बचाने में ही खत्म कर लेते हो। अड़चनें जो आपके सामने हैं, इनसे बचकर निकलना कोई मामूली बात नहीं।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि मालिक का प्यार, मुहब्बत बेइंतहा खुशियां देने वाली है। इसलिए मालिक के प्यार में आगे बढ़ो, मालिक के प्यार से मालामाल हो जाओ। इन्सान ये कभी न भूले कि मैं सिर्फ इन्सान हूं। जब इन्सान अपने आप को कुछ बना लेता है तो फिर मालिक कहता है कि तूं तो कुछ है फिर मैं क्यूं आऊं। कहने का मतलब जब आप कुछ बन जाते हो तो चारों तरफ से काल की मार पड़ती है। आप जी ने फरमाया कि सुमिरन में खुशियां हैं, इन्सान वचनों पर पक्का हो, सेवा सुमिरन करता हो, उसे किसी चीज की कमी नहीं रहती। लेकिन जब तक इन्सान की पूरी कमियां अंदर से निकलती नहीं तब तक सुमिरन का पूरा फल नहीं मिलता। इसलिए सभी कमियों को निकालने के लिए लगातार सुमिरन करो, सेवा करो, प्यार मुहब्बत के रास्ते पर फिर चला जा सकता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जो मालिक से प्यार करता है, वो एक ही बात सोचता है कि गुरू, पीर, मुर्शिद-ए-कामिल के वचनों पर सौ प्रतिशत चलेंगे, वचनों पर अमल करेंगे। नि:स्वार्थ भावना से सारी दुनिया से प्यार रखो। लेकिन भावना अगर शुद्ध नहीं होगी तो मालिक के दर्श-दीदार के काबिल नहीं बन सकते। आप जी ने फरमाया कि सत्संग में जब आकर बैठते हो तो सिर्फ मालिक से नाता जोड़कर रखो, इधर-उधर की बातें न किया करो। इन्सान जैसे कर्म कर्ता है, वैसा फल उसको भोगना पड़ता है।
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