आस्ट्रेलिया के क्रिकेट खिलाड़ी स्टीवन स्मिथ, डेविड वार्नर व प्रशिक्षक डेविड लेहमैन ने गेंद के साथ छेड़छाड़ के मामले में जिस प्रकार रो-रोकर माफी मांगी है और उम्र भर का पछतावा रहने का जिक्र किया है उससे उम्मीद की किरण दिखाई पड़ती है कि खेल भावना अभी भी जिंदा है। विश्व भर में लोकप्रिय इन खिलाड़ियों ने केवल ‘सोरी’ कहकर ही गलती नहीं मानी बल्कि खेल में भारी भूल गलती करने का दर्द भी छलका।
खेलों में विवादों का इतिहास पुराना है लेकिन अधिकतर मामलों में खिलाड़ी न तो अपनी गलती मानते हैं न ही अपने पर लगाए गए आरोपों को मानते है, उलटा किसी साजिश का हिस्सा बताकर कई-कई वर्षों तक मामले को लटकाए रखते हैं, जिससे खेल संस्थाओं का जहां समय खराब होता है वहीं कई प्रकार के भ्रम बने रहते हैं। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि खेलों का व्यापारीकरण हो चुका है। पैसे के लिए खिलाड़ी गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं। क्रिकेट में मैच फिक्सिंग लंबे समय तक विवादों का कारण बनी रही। अंडर वर्ल्ड के हाथों की कठपुतली बनकर कई खिलाड़ियों ने खेल को बदनाम किया। इन परिस्थितियों में आॅस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने विनम्रता से गलती को स्वीकार किया व खेल प्रति गैर-जिम्मेवार व्यवहार के लिए खुद को जिम्मेवार ठहराया।
भले ही यह खिलाड़ी सजा के हकदार हैं लेकिन सामाजिक तौर पर उन्होंने अपना पक्ष मजबूत कर लिया है। भारतीय खिलाड़ी गौतम गंभीर ने स्टीवन स्मिथ के खिलाफ पाबंदी को जरूरत से ज्यादा सख्त करार दिया है। गंभीर स्मिथ को भ्रष्ट कहने के हक में नहीं हैं। दूसरी तरफ आॅस्ट्रेलियन क्रिकेट बोर्ड की कार्रवाई को भी गलत नहीं ठहराया। खेल को किसी भी उद्देश्य से नुक्सान पहुंचाना खेल भावना को ठेस पहुंचाना है। बोर्ड ने निष्पक्षता व नियमों को कायम रखा व किसी भी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया। आॅस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड और इन खिलाड़ियों ने जिस प्रकार से प्रतिक्रिया व्यक्त की है, वह विश्वसनीय है। इस घटनाक्रम से प्रतीत होता है कि खेल को सच्चाई व ईमानदारी के साथ ही खेला जा सकता है। इन मूल्यों से ही खेल का सम्मान है जिससे दर्शकों व खेल प्रेमियों का विश्वास रोमांच बना रह सकता है।