यूरोपीय यूनियन के 23 सांसदों ने कश्मीर का दौरा किया, जिस पर भारत में विपक्षी दलों ने काफी हो हल्ला किया कि भारतीय राजनेताओं को इजाजत नहीं है, विदेशी सांसद कश्मीर का दौरा कर रहे हैं क्यों? वामपंथी नेताओं ने कहा कि यूरोपीय सांसद दक्षिणपंथी हैं जोकि अपने क्षेत्र में भाजपा जैसी ही विचारधारा के पक्षधर हैं, आगे से यूरोपीय सांसदों ने भी जवाब दे दिया कि अगर वह दक्षिण पंथी होते तब यूरोप में उन्हें कोई मतदाता सांसद नहीं चुनता, जोकि सही भी है। 31 अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर पूरी तरह से तीन केन्द्र शासित प्रदेशों में बंट गया है। महज कश्मीर को छोड़कर जम्मू-लद्दाख के लोग पूरी तरह खुश हैं कि उन्हें भेदभाव से मुक्ति मिल गई है। कश्मीर में आम आवाम खुश है क्योंकि वहां उन्हें बहुत से अधिकार मिले हैं, जो पहले कश्मीरियों के हिस्से में नहीं थे।
फिर बहुत से ऐसे कानूनों का सफाया हो गया है जो कश्मीरियों को भारत से बांटने के लिए थे अन्यथा उनका कोई अधिक लाभ उन्हें नहीं मिल रहा था। इस सबके बावजूद कश्मीर में कामकाज या ट्रक -टैक्सी लेकर गए अन्य राज्य के लोगों से हिंसा हो रही है, जो कि पहले भी होती आ रही है। अत: यह कोई नयी बात नहीं है। जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में हौव्वा खड़ा किया जा रहा है कि अब वहां बाहरी लोग आएंगे। ये बाहरी कोई नहीं है दूसरे राज्यों के ही भारतीय लोग हैं, जिस तरह कश्मीरी भारतीय हैं, स्थानीय अलगाववादी या क्षुद्र राजनीति करने वाले बाहरी का डर पैदा कर रहे हैं।
कश्मीरी भी देशभर में अपना कारोबार कर रहे हैं, उन्हें किसी प्रदेश में बाहरी नहीं कहा जाता। बात पुन: राजनीतिक गतिविधियों की करें तब यह कितना विडम्बना पूर्ण है कि यूरोपीय सांसद भारत की प्रशंसा कर रहे हैं, उन्हें कश्मीर पसंद आया, उन्होंने कश्मीर में सैर भी की, जनप्रतिनिधियों से भी मिले, मीडिया से भी बातचीत की, लेकिन भारतीय नेता घटिया राजनीति से बाज नहीं आ रहे। भाजपा से विरोध को वो इस हद तक ले जा रहे हैं कि लोग स्वत: ही भाजपा का राष्टÑवादी कहेंगे। भारतीय राजनीति का एक बहुत बड़ा दुर्गुण है वह यह कि अगर नेताओं के पास सत्ता नहीं है तब वह देश बांट देने तक जा पहुंचते हैं।
1947 में इन नेताओं ने यह सब भी करके देख लिया सब्र फिर भी नहीं है। अब फिर विरोध का स्वर इस हद तक ऊंचा करते हैंं कि देश भले हिंसा झेले, अलगाव झेले लेकिन सत्ताधारी दल के निर्णयों को सदैव विरोध का आधार बनाया जाएगा, ऐसे निर्णय भले ही देश-देशवासियों या किसी विशेष क्षेत्रवासियों के अन्नत कल्याण के लिए क्यों न हों। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने स्वार्थी राजनीतिक सोच के चलते बहुत अधिक पीड़ा व नुक्सान झेला है, जो कि आगे की पीढ़ियों तक नहीं जाएगा। बेहतर हो विरोध कर रहे भारतीय राजनेता स्वार्थ से ऊपर उठकर जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के लोगों का भविष्य देखें ।
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