गत दिनों भारतीय वायुसेना का एक और मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दरअसल मिग-27 यूपीजी विमान ने उतरलाई वायुसेना अड्डे से उड़ान भरी ही थी कि उसके इंजन में एकाएक खराबी आ गई राजस्थान में जोधपुर के पास दुर्घटना का शिकार हो गया। हालांकि इस हादसे में पायलट बाल-बाल बच गया और सूझबूझ का परिचय देते हुए उसने विमान को घनी आबादी वाले इलाके से दूर जंगल में ले जाकर किसी बड़े हादसे को भी टाल दिया लेकिन मिग-27 के इस हादसे के बाद एक बार फिर मिग विमानों के बार-बार होते हादसों को लेकर सवाल उठने लगे हैं। इस साल के शुरूआती तीन महीनों में वायुसेना यह 9वां विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ है। जहां तक मिग हादसों की बात है तो पिछले ही महीने 8 मार्च को राजस्थान के बीकानेर जिले में एक मिग-21 दुर्घटना का शिकार हुआ था जबकि फरवरी माह में पाकिस्तान के लड़ाकू विमान एफ-16 को मार गिराये जाने के बाद विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान का मिग-21 क्रैश हो गया था।
पांच दशक पुराने इन मिग विमानों को बदलने की मांग लंबे समय से हो रही है किन्तु वायुसेना के लिए लड़ाकू विमानों की कमी के चलते इनकी सेवाएं लेते रहना वायुसेना की मजबूरी रही है। वायुसेना का कहना है कि 2030 तक चरणबद्ध तरीके से मिग विमानों को भी हटाया जाएगा लेकिन सवाल यह है कि क्या तब तक मिग इसी प्रकार दुर्घटनाग्रस्त होते रहेंगे और हम अपने लड़ाकू पायलटों को खोते रहेंगे? ऐसे हादसों में करीब 200 लड़ाकू पायलट मौत के मुंह में समा चुके हैं। भारतीय वायुसेना को 1964 में पहला सुपरसोनिक मिग-21 विमान प्राप्त हुआ था और भारत ने रूस से 872 मिग विमान खरीदे थे, जिनमें से अधिकांश क्रैश हो चुके हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1971 से 2012 के बीच 482 मिग विमानों की दुर्घटना में 171 फाइटर पायलट, 39 आम नागरिक, 8 सैन्यकर्मी तथा विमान चालक दल के एक सदस्य की मौत हुई। हालांकि वायुसेना के पास अब जो मिग विमान हैं, उन्हें तकनीकी रूप से उन्नत किया जा चुका है किन्तु फिर भी ये बार-बार दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा मार्च 2016 में संसद में यह जानकारी दी गई थी कि वर्ष 2012 से 2016 के बीच भारतीय वायुसेना के कुल 28 विमान दुर्घटनाग्रस्त हुए, जिनमें एक चौथाई अर्थात् 8 मिग-21 विमान थे और इनमें से भी 6 मिग-21 विमान ऐसे थे,
जिन्हें अपग्रेड कर ‘मिग-21 बायसनझ् का दर्जा दिया गया था। कुछ समय पहले तक वायुसेना के पास करीब 120 मिग 21 विमान थे, जिनमें से अधिकांश क्रैश हो गए हैं और फिलहाल केवल 40-45 मिग-21 ही बचे हैं। 1960 के दशक में भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल किए गए मिग विमान सोवियत रूस में बने हैं। रूस में निर्मित इन विमानों के निरन्तर दुर्घटनाग्रस्त होते जाने का प्रमुख कारण यही बताया जाता रहा है कि ये विमान रूस की पुरानी तकनीक से निर्मित हैं और अब इनके असली पुर्जे नहीं मिल पाते।
पिछले कुछ ही वर्षों में मिग विमानों की इतनी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं कि अब इन्हें वायुसेना के ही कुछ अधिकारी तथा इन विमानों को उड़ाने वाले पायलट ‘फ्लाइंग कॉफिनझ् अर्थात् ‘हवा में उडऩे वाला ताबूतझ् कहने लगे हैं। हालांकि मिग अपने समय के उच्चकोटि के लड़ाकू विमान रहे हैं लेकिन अब ये विमान इतने पुराने हो चुके हैं कि सामान्य उड़ान के दौरान ही क्रैश हो जाते हैं।
सही मायनों में मिग विमानों को 1990 के दशक में ही सैन्य उपयोग से बाहर कर दिया जाना चाहिए था। दरअसल हर लड़ाकू विमान की एक उम्र होती है और मिग विमानों की उम्र करीब 20 साल पहले ही पूरी हो चुकी है लेकिन हम इन्हें अपग्रेड कर इनकी उम्र बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं और तमाम ऐसी कोशिशों के बावजूद इनकी कार्यप्रणाली प्राय: धोखा देती रही है, जिसका नतीजा मिग विमानों की अक्सर होती दुर्घटनाओं के रूप में बार-बार देखा भी जाता रहा है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार अपनी वायुसेना को गंभीरता से लेने वाले देशों में भारत संभवत: आखिरी ऐसा देश है, जो आज भी मिग-21 का इस्तेमाल करता है। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो मिग विमान 1960 व 1970 के दशक की टैक्नोलॉजी के आधार पर निर्मित हुए थे जबकि अब हम 21वीं सदी के भी करीब दो दशक पार कर चुके हैं और पुरानी तकनीक वाले ऐसे मिग विमानों को ढ़ो रहे हैं, जिनका आधुनिक तकनीक से निर्मित लड़ाकू विमानों से कोई मुकाबला नहीं है।
आज स्थिति यह है कि ये विमान अब सामान्य उड़ानों के दौरान भी हादसों के शिकार हो रहे हैं। जहां तक राफेल विमानों की बात है तो इन्हें लेकर कुछ रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि चूंकि ये बेहद उच्चस्तरीय, जटिल तथा परिष्कृत किस्म के विमान हैं जबकि युद्धक मोर्चे पर छोटे, हल्के और सस्ते लड़ाकू विमानों की ज्यादा जरूरत होती है, ऐसे में राफेल मिग विमानों की जगह नहीं ले सकते। हमारी वायुसेना के पास हर प्रकार के लड़ाकू विमानों की काफी कमी है।
संसदीय समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों के केवल 31 दस्ते (स्क्वाड्रन) ही हैं जबकि जरूरत 42 दस्तों की है और नए विमान आने की रफ्तार काफी धीमी है। ऐसे में अगर मिग-21, मिग-27 और मिग-29 विमानों के 14 दस्ते भी परिचालन से बाहर हो जाते हैं तो वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों के बहुत कम दस्ते रह जाएंगे। ऐसे में रक्षा सौदों में पारदर्शिता बरतते हुए वायुसेना की इन जरूरतों को जल्द से जल्द पूरा किया जाना वायुसेना को मजबूत बनाए रखने के लिहाज से बेहद जरूरी है।