प्रभुनाथ शुक्ल
भारत की समस्त सृष्टि और संस्कार में योग समाहित है। योग मानसिक और शारीरिक विकारों से मुक्ति का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक ज्ञान है। इसकी सार्थकता को दुनिया के कई धर्मों ने स्वीकार किया है। योग सिर्फ व्यायाम का नाम नहीं बल्कि इसके आठ आयामों के जरियए हम मन, मस्तिष्क और शारीरं को नियंत्रित कर सकते हैं।
आधुनिक जीवन पद्धति में योग सेहत और स्वास्थ्य से जुड़ गया है। योग की परिभाषा को शब्द जाल में नहीं समेटा जा सकता। योग आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जिसके माध्यम से हम शरीर, मन और आत्मा को एक साथ केंद्रीय बिंदु में स्थिर कर सकते हैं। योग को सार्वभौंमिक बना कर जहां हम लोगों की तंदुरुस्ती सुधार सकते हैं वहीं कई बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।
21 जून हमारे लिए गौरव का विषय है। भारत की लाखों साल पुरानी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक व्यवस्था पर आधारित यह वैदिक ज्ञान अद्वितीय है। दुनिया ने अब इसकी उपलब्धि को स्वीकार किया है। दुनिया वालों को भारत ने अपनी यौगिग शक्ति और साधना के लाभ से परिचय कराया है। योग भारत के लिए आने वाले दिनों में बड़ा बाजार साबित हो सकता है।
यह मेक इन इंडिया पालसी का भी हिस्सा हो सकता है। आयुर्वेद और हर्रबल के नाम से भागने वाली उत्पादन कंपनियां अब खुद अपने विज्ञापनों में आयुर्वेद निर्मित होने का दावा कर रही हैं। भारत के अलवा दुनिया के दूसरे देशों में भी भारत ने योग और आयुर्वेद के जरिये बाजारवाद का नजरिया बदलने में कामयाब हुआ है।
विश्व के लगभग 200 देश भारत की इस वैदिक परंपरा का अनुसरण करने लगे हैं। योग को अब वैश्विक मान्यता मिल गयी है। यह हमारे लिए गर्व की बात है। दुनिया भर में योग की महत्वा स्थापित करने में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। योग और आयुर्वेद को उन्होंने वैश्विक स्वीकारोक्ति बना दी। महर्षि पतंजलि ने योग साधाना के आठ आयाम बतायें है जिसमें यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्यहार, धारणा, ध्यान और समाधि शामिल है।
भारतीय मिशन ने संयुक्तराष्ट संघ में 11 अक्टूबर 2014 को इसका प्रस्ताव दिया था। अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के 177 देशों ने भारत के पक्ष में वोट दिया। भारत अब दुनिया का विश्वगुरु बन गया है और वैश्विक स्तर पर 21 जून को अतंरराष्टीय योग दिवस घोषित कर दिया गया। आज भारत सहित दुनिया में 20 करोड़ से अधिक लोग योग साधना का लाभ उठा रहे हैं। काफी संख्या में मुस्लिम देश भी योग को अपना रहे हैं। आधुनिक युग की व्यस्त दिनचर्या में योग हमारे लिए अमृत है।
अपनी जिंदगी को खुशहाल और डिप्रेशन मुक्त बनाने के लिए योग हमें खुला आकाश देता हैं। भारत में योग की परंपरा 5000 हजार साल पुरानी है। भगवान कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि ‘योग: कर्मसु कौशलम’ यानी हमारे कर्मों में सर्वश्रेष्ठ योग है। योग यज्ञ है और यज्ञ कर्म है। योग जीवात्मा और परमेश्वर के मिलन का साधन मात्र ही नहीं ईश साधना का भी साध्य है। योगी भगवान कृष्ण ने योग को सर्वोपरि बताया है। उन्होंने कहा है कि ह्ययोगस्थ: कुरु कर्माणिह्य इसका तात्पर्य है कि योग में स्थिर होकर ही सद्चित कर्म संभव है। गीता में तीन प्रकार के योग ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग का वर्णन है।
सांख्ययोग में 25 तत्वों का उल्लेख है। गीता का छठवां अध्याय योग को समर्पित है। हमारा योगशास्त्र इस गौरवशाली उपलब्धि से अटा पड़ा है। इसके अलावा हमारे यहां लययोग, राजयोग का भी वर्णन है। चित्त की निरुद्ध अवस्था लयोग में आती है। राजयोग सभी योगों से श्रेष्ठ बताया गया है। महर्षि पतंजलि की योग परंपरा भारत में अधिक संवृद्धशाली है।
योग का इतिहास प्राचीन है। सिंधु घाटी सभ्यता का भी संबंध योग से है। प्राचीन काल की कई मूर्तियां योग मुद्रा में स्थापित हैं। भगवान शिव को योग मुद्रा में देखा जा सकता है। बुद्ध की मूर्तियां भी योग साधना में स्थापित हैं। बौद्ध और जैनधर्म में भी योग की महत्ता पर काफी कुछ है। बौद्ध और धर्म के अलावा ईसाई और इस्लाम में सूफी संगीत परंपरा में भी योग की बात आयी हैं। 21 जून विश्वयोग दिवस मनाया जाएगा। इसे लेकर पूरे देश और दुनिया में तैयारियां जोरों पर हैं।
योग को धर्म विशेष से जोड़ कर इसकी उपलब्धि को कम करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। बदले दौर में योग का स्वरुप बदल गया है। योग को अपना कर अपनी जिंदगी को सुखी, शांत और निरोगी बना उन्नतशील जीवन जी कसते हैं। वहीं राष्ट निर्माण और विकास में अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
दुनिया भर में करोड़ों लोग योग को अपना नियमित जीवन बना लिया है। यह भारत के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि की बात है। योग संपूर्ण जीवन और चिकित्सा पद्धिति है। दुनिया में शांति युद्ध से नहीं योग से आएगी। देश विदेश के करोड़ों लोग योग से सुखी जीवन जी रहे हैं। योग से संबंधित युनिवर्सिटी, शोध संस्थान, आयुर्वेद मेडिसिन उद्योग नयी उम्मीदें और आशाएं लेकर आ रहे हैं। यही कारण है कि भारत और दुनिया में योग बाजारबाद का ब्रांड बन गया है। कभी आयुर्वेद उत्पादन से जुड़ी कुछ कंपनियां होती थी लेकिन आज बाढ़ आ गयी है। योग को पर्यटन उद्योग के रुप में विकसित किया जा सकता है। लाखों विदेशी आज भी भारत में शांति की खोज के लिए आते हैं। प्राकृकि सुंदरता के दर्शन करने यहां लोग आते है। जिससे पर्यटन उद्योग को करोड़ों रुपये का मुनाफा होता है। अब इसे संयुक्तराष्ट संघ से मान्यता मिल गई है तो यह बड़ी उपलब्धि है।
विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम तनाव की जिंदगी दे रहा है। जिंदगी की गति अधिक तेज हो चली है। लोगों के जीने का नजरिया बदल रहा है। काम का अधिक दबाव बढ़ रहा हैं जिसकी वजह से हाईपर टेंशन, और दूसरी बीमारियां फैल रही हैं। तनाव का सबसे बेहतर इलाज योग विज्ञान में ही हैं। वहीं लोगों में सुंदर दिखने की बढ़ती ललक भी योग और आयुर्वेद विज्ञान को नया आयाम देगी। यह पूरे भारत और उद्योग जगत के लिए गर्व का विषय है।
हमारी हजारों साल की वैदिक परंपरा को तीन साल पूर्व 2015 में वैश्विक मंच मिला है। योग का प्रयोग अब दुनिया भर में चिकित्सा विज्ञान के रुप में भी हा रहा है। यह हेल्दी वर्ल्ड और स्वस्थ भारत की ओर बढ़ता पहला कदम है। दुनिया के साथ मिलकर हम योग के जरिए विश्व को स्वस्थ और शांति के मार्ग पर आगे ले जायें। भारत दुनिया में हमेंशा शांति का प्रतीक रहा है, योग के जरिये हम सेहत और तंदुरुस्ती के भी महागुरु बन गए हैं।]