अस्थियों का प्रवाह रूका, परन्तु कल्याण के रास्ते अभी भी खुले

The flow of ashes stopped, but the ways of salvation are still open
देशभर में लॉकडाउन के चलते दैनिक जीवन के कार्य तो रूके हुए हैं ही उनके अंतिम कार्य भी रूके हुए हैं जो जीवन पूरा कर इस लोक से जा चुके हैं। आ रही मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार देशभर के शमशान घाटों में हजारों हजार मृतकों की अस्थियां प्रवाहित होने का इंतजार कर रही हैं, लेकिन मृतकों के परिजन अभी लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। परन्तु यहां थोड़े से सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता आन पड़ी है। देश के हिन्दू धर्म के मानने वालों का विश्वास है कि मृतक अगर जीते-जी अगर मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सका तब उसकी मृत्यु पश्चात अगर अस्थियां गंगा जी को अर्पित कर दी जाएं तब वह मोक्ष का अधिकारी बन जाता है। यह विश्वास हालांकि आस्था का विषय है व्यवहारिक रूप में मृतक के कल्याण के कई और मार्ग भी हैं। इन्हीं कल्याण मार्गों में है भूमि को अस्थि दान करना। अत: मृतक की अस्थियां यदि उर्वरा भूमि में भेंट कर किसी पेड़ या पौधे को बड़ा करने में दान हो जाए तब भी मृतक का कल्याण हो सकता है।
डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के अनुसार मृतक की अस्थियों को भूमि में भी गाड़ा जा सकता है जिस पर वृक्ष लगा देने से पर्यावरण का संरक्षण होगा। एक पेड़ अपनी पूरी उम्र मानव ही नहीं समस्त जीव मात्र को सुख देता है, जिसका पुण्य मृतक की आत्मा के हिस्से भी जाएगा। यूं भी दुनिया भर में अनेकों रीतियां हैं जिनसे लोग अपने मृतक परिवारिक सदस्यों को अंतिम विदायगी देते हैं। जल की तरह भूमि भी पवित्र है। भूमि भी जीवन दायनी है। अगर मृत शरीर पुन: जीवन दायनी की गोद में चला जाता है तब बुरा ही क्या है? इस्लाम एवं ईसाई सहित बहुत से पवित्र धर्मों के मानने वालों को अंत में भूमि को ही सौंपा जाता है। फिर आजकल वातावरण को साफ-सुथरा रखने के लिए पेड़ लगाना एवं जल को साफ रखना भी बहुत जरूरी हो गया है।

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