यूं देखा जाए तो श्रीलंका भी भारत के एक राज्य जितना बड़ा है। यदि श्रीलंका को भारत में मिलाया जाये तो वह भारत के किसी भी एक राज्य के समान ही रहेगा। आज भारत के कुछ राज्यों की आर्थिक स्थिति भी एक तरह से श्रीलंका की राह पर जाती दिख रही है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय राज्यों की वित्तीय स्थिति के सम्बंध में अभी हाल ही में जारी किए गए एक प्रतिवेदन में इन राज्यों को चेताया गया है क्योंकि भारत के समस्त राज्यों का संयुक्त ऋण-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 31 प्रतिशत से अधिक हो गया है। जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 तक इसके 20 प्रतिशत रहने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था और केंद्र सरकार का ऋण-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात नियंत्रण में रहकर 19 प्रतिशत ही है।
कुछ राज्यों की हालत तो दयनीय स्थिति में पहुंच गई है। यदि समय पर ये राज्य नहीं चेते एवं इन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं किया तो ये राज्य अपने भारी भरकम ऋणों पर ब्याज अदा करने में चूक करने की ओर आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। जाहिर तौर पर जब राज्यों की आर्थिक स्थिति की चर्चा होती है तो इसका असर राज्यों के विकास और इन राज्यों में निवास कर रहे नागरिकों के जीवन पर भी पड़ता है। लोकलुभावन राजनीति इन राज्यों की वित्तीय स्थिति को बहुत बुरे तरीके से प्रभावित कर रही है। भारतीय रिजर्व बैंक के उक्त वार्षिक प्रतिवेदन में राज्यों की वित्तीय स्थिति को लेकर कई गंभीर पहलु और सवाल खड़े किए गए हैं। विशेष रूप से पंजाब, केरल, झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल आदि राज्य बढ़ते कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं और इन राज्यों की अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है। हाल ही के समय में पंजाब, केरल, राजस्थान, पश्चिम बंगाल एवं बिहार की वित्तीय सेहत बहुत बिगड़ी है।
सभी राज्यों की वित्तीय सेहत का विस्तार से आकलन करने पर ध्यान जाता है कि कई राज्यों द्वारा अनियंत्रित रूप से चलाई जा रही मुफ्त योजनाओं, लोकलुभावन घोषणाओं, अत्यधिक सब्सिडी देने से इन राज्यों की वित्तीय सेहत बहुत बुरी तरह से बिगड़ रही है। सभी राज्यों की आर्थिक स्थिति खराब है ऐसा नहीं है। देश में कुछ राज्यों में बहुत अच्छा विकास हो रहा है और इनकी आय भी तेजी से बढ़ रही है जिससे इनकी आर्थिक स्थिति नियंत्रण में है। इन राज्यों में शामिल हैं गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिसा एवं दिल्ली। दरअसल राज्यों द्वारा गरीब से गरीब व्यक्तियों की आय बढ़ाए जाने के प्रयास किए जाने चाहिए एवं सहायता की राशि उनके खातों में सीधे ही हस्तांतरित की जानी चाहिए। यदि इन राज्यों की वित्तीय स्थिति लोक लुभावन घोषणाओं को पूरा करने की नहीं है तो, इस प्रकार की घोषणाएं चिन्हित राज्यों द्वारा नहीं की जानी चाहिए, ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए।
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