बेअदबी कांड का आरोप डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं पर मढ़ने के लिए जस्टिस रणजीत सिंह आयोग ने पंजाब में ‘एमएसजी द मैसेंजर’ फिल्म पर लगी पाबंदी के नाम पर बेबुनियाद कहानी बनाई। हालांकि इस फिल्म का बेअदबी की घटनाओं से कोई लेना-देना ही नहीं था। आयोग ने दावा किया है किसन 2015 में एमएसजी-2 द मैसेंजर फिल्म पंजाब में रिलीज नहीं की गई थी। पंजाब सरकार ने फिल्म पर पाबंदी लगाई। इसीलिए डेरा प्रेमियों ने भड़ककर श्री गुरु गं्रथ साहब जी की बेअदबी की। यह बातें बेहद बेतुकी है। एक तरफ तो आयोग कह रहा है कि पंजाब की अकाली -भाजपा सरकार ने डेरा प्रेमियों को बचाने की कोशिश की और दूसरी तरफ आयोग ही कह रहा है कि अकाली-भाजपा सरकार ने ही फिल्म पर पाबंदी लगाई थी। सवाल उठता है कि फिल्म पर पाबंदी लगाने वाली अकाली-भाजपा सरकार डेरा प्रेमियों के पक्ष में कैसे हुई? आयोग ने गवाहों के आधार पर दावा किया है कि फिल्म को चलाने के लिए अकालियों ने डेरा सच्चा सौदा के साथ मुंबई में अभिनेता अक्षय कुमार के घर 100 करोड़ की डील की, जिसके तहत सिखों की सर्वोत्तम संस्था ने डेरा सच्चा सौदा के बायकाट संबंधी हुक्मनामा वापिस लेकर फिल्म रिलीज करवाई लेकिन अक्षय कुमार कह रहे है कि उसके घर तो कोई अकाली नेता आया ही नहीं। आयोग के पास कोई ऐसा सबूत या तस्वीरें भी नहीं जिससे साबित हो गया कि सुखबीर बादल अक्षय कुमार के घर आए थे। आयोग की रिपोर्ट केवल झूठी गवाही पर खड़ी थी जिसका पर्दाफाश गवाह हिम्मत सिंह ने रिपोर्ट पेश होने से पहले ही कर दिया, फिर अक्षय कुमार बयान के बाद सारी पोल खुल गई। न तो अकालियों ने कोई डील की थी और न ही डेरा प्रेमियों का साथ दिया। अब सवाल यह उठता है कि फिल्म पर पाबंदी तो अकाली-भाजपा सरकार ने लगाई थी। किसी गुरुद्वारा साहिब की समिति ने तो लगाई नहीं थी जिस कारण डेरा श्रद्धालुओं का किसी सिखों के किसी धार्मिक स्थान के साथ विरोध होता न ही बेअदबी की घटनाओं से संबंधित गांवों के किसी भी धार्मिक नेता ने ऐसा कोई ऐलान ही किया था कि वे फिल्म नहीं चलने देंगे। फिर डेरा श्रद्धालु किससे बदला लेने की सोचते? दरअसल पूजनीय गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पहली फिल्म फरवरी 2015 में पंजाब को छोड़कर सभी देश में रिलीज हुई थी। पंजाब के डेरा प्रेमियों ने बड़ी संख्या में चंडीगढ़ व हरियाणा के शहरों में जाकर यह फिल्म देखी। पहली फिल्म का विरोध हरियाणा की एक राजनैतिक पार्टी के वर्करों ने किया था। इसके अलावा कुछ गैर-राजनीतिक या खुद बना धार्मिक नेताओं ने किया जो कई दशकों से ही डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ गतिविधियां चला रहे थे। इन संगठनों का भी राजनीतिक पार्टियों से संबंध है जो धर्म के नाम पर डेरा सच्चा सौदा का विरोध कर अपनी पार्टी के आदेशानुसार काम कर रहे थे। पंजाब में जब फिल्म सरकार ने ही चलने नहीं दी थी तो श्रद्धालुओं ने रोष भी सरकार के सामने प्रकट किया था न कि किसी धार्मिक स्थानों के सामने। असल सच्चाई यह है कि पहली फिल्म एमएसजी द मैसेंजर को देश-विदेश में भरपूर सफलता मिली थी। बॉर्डर फिल्म के डायरैक्टर सहित बालीवुड की बड़ी हस्तियों व बुद्धिजीवियों ने फिल्म को समाज सुधार के क्षेत्र में बड़ी क्रांति करार दिया था। यह फिल्म नशों के खिलाफ एक बड़ा कटाक्ष था और उस वक्त पंजाब नशों की मार में बुरी तरह से जकड़ा हुआ था। विपक्ष पार्टी कांग्रेस ने नशों को अकाली-भाजपा सरकार के खिलाफ मुद्दा बना लिया था इसीलिए नशों के खिलाफ संदेश देने वाली फिल्म का पंजाब में रिलीज न होना अकाली-भाजपा सरकार के लिए बदनामी बन गया। फिल्म पर पाबंदी लगाने के कारण सरकार बुरी तरह बदनाम हो चुकी थी। फिल्म के संदेश के कारण पंजाब सरकार को अक्तूबर 2015 में दूसरी फिल्म एमएसजी-2 मैसेंजर रिलीज करनी पड़ी। जहां तक डेरा सच्चा सौदा का बायकाट वापिस करने का संबंध है यदि फिल्म की खातिर ही यह वापस करवाना था तो पहली फिल्म से पहले ही क्यों न करवाया गया। डीआईजी रणबीर सिंह खटड़ा की रिपोर्ट व जस्टिस कमीश्न कह रहे हैं कि डेरा श्रद्धालुओं ने फिल्म न चलने के रोषस्वरूप बेअदबी की। लेकिन वह इस बात पर चुप हैं कि हिंदू व मुस्लमान धार्मिक गं्रथों की बेअदबी भी सन 2015 में हुई थी। क्या किसी अन्य संस्थाओं ने अपनी फिल्म रिलीज न होने के कारण यह हरकत की थी। क्या हिंदू या मुस्लमान धर्म के लोगों ने किसी फिल्म का विरोध किया था? इस प्रकार की चालों से ही 1947 से पहले देश बांटने का कारण बनीं। ऐसे षड़यंत्रों के कारण 1980 के दशकों में तनाव पैदा करने वाली घटनाएं घटी, जब मंदिर में गऊयों की पूछें फेंकी और गुरुद्वारों में तम्बाकू वाली चीजें। अब फिर राजनीतिक निशानों की पूर्ति के लिए पंजाब की अमन-शांति को आग लाने की कोशिश की गई। उम्मीद है कि पंजाब के लोग राजनीतिक चालों को सफल नहीं होने देंगे।
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