भारत में अगले सालों में उभरेगी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती
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महानगरों, टियर-1 शहरों की ज्यादा बढ़ रही समस्या
सच कहूँ/संजय मेहरा गुरुग्राम। आज के समय में हाई क्लास जीवन जीने वाली महिलाओं में धूम्रपान (Smoking) जैसा ऐब भले ही फेशनेबल माना जाता हो। लेकिन वे अपने भविष्य के लिए कितनी बड़ी समस्या पाल रही हैं, वे इससे शायद अनजान हैं। शहरी महिला आबादी में धूम्रपान की लत चिंताजनक है। महिलाओं में धूम्रपान की लत भारत में अगले कुछ सालों में यह सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभर सकती है। पुरुषों के बीच धूम्रपान की लत को बड़े ही खराब नजरिये से देखा जाना लगा है। इसे ऐब की संज्ञा दी जा रही है। धूम्रपान करने वाले और पान-मसाला चबाने वाले जैसे तंबाकू का सेवन करने वाली आबादी में धूम्रपान के दुष्प्रभावों को दिखने में 10 से 20 साल का समय लग जाता है। तंबाकू से संबंधित बीमारियां, जैसे फेफड़े और सिर और गर्दन का कैंसर, अब तक पुरुषों में लगभग अनन्य रूप से बना हुआ हैं।
जिस तरह से पिछले 10-15 वर्षों में महिला धूम्रपान (Smoking) करने वालों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, हम भारत में अगले दो दशकों में महिलाओं में भी इन बीमारियों की घटनाओं में भारी वृद्धि देख सकते हैं। वर्ल्ड नो टोबैको-डे पर यहां आर्टेमिस अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. विनीत गोविंदा गुप्ता का कहना है कि आज के समय में बड़ी संख्या में शहरों में और खासकर महानगरों और टियर-1 शहरों में रहने वाली महिलाओं ने सिगरेट पीना शुरू कर दिया है। इससे इन महिलाओं में धूम्रपान का प्रभाव उनके 30 और 40 की उम्र के बाद सामने आएगा।
दो दशकों में यह सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट होगा
सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग में हेड एंड नेक सर्जरी चीफ डा. बिस्व ज्योति हजारिका बताती हैं कि शहरी महिलाओं द्वारा तंबाकू के बढ़ते उपयोग की चिंताजनक प्रवृत्ति अब भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। आने वाले दो दशकों में यह सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बनने जा रहा है। क्योंकि इन आबादी में तंबाकू के उपयोग से जुड़े सभी स्वास्थ्य जोखिम विकसित होते हैं। अब तक, हुक्का या बीड़ी के रूप में तंबाकू के उपयोग के कारण ज्यादातर ग्रामीण आबादी में कैंसर देखा गया था। अब यह तथ्य सामने आए हैं कि शहरी महिलाओं में सिगरेट का धूम्रपान बढ़ रहा है। Smoking
वर्तमान में महिलाओं में तंबाकू के सेवन (Smoking) के कारण फेफड़ों के कैंसर या सिर और गर्दन के कैंसर के मामले भले ही कम हों, लेकिन आने वाले कुछ वर्षों में इसमें बदलाव होना तय है। तंबाकू दुनिया में रोकी जा सकने वाली मौतों का प्रमुख कारण है। इसका उपयोग पुरुषों में किसी न किसी रूप में व्यापक रूप से प्रचलित है। भारत में पाए जाने वाले पुरुषों के शीर्ष पांच कैंसर में से चार तंबाकू के कारण होते हैं, जिससे यह एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बन जाती है।
भारत में कैंसर के 10 में से 9 मामले तंबाकू के कारण
मेडिकल ऑन्कोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. प्रिया तिवारी का कहना है कि तंबाकू शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है और तंबाकू उपयोगकर्ताओं को कई प्रकार के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। भारत में फेफड़ों के कैंसर और सिर और गर्दन के कैंसर के 10 में से 9 मामले तंबाकू के कारण होते हैं। इसके अलावा हम तंबाकू से संबंधित अन्य कैंसर के मामले भी देखते हैं, जिनमें गुर्दे, अग्नाशय, मूत्राशय, पेट, यकृत और यहां तक कि रक्त कैंसर भी शामिल हैं। उनके यहां ओपीडी में कैंसर के रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। अक्सर रोगी के इतिहास से पता चलता है कि उसने लंबे समय से तंबाकू का सेवन किया है।
कैंसर की रोकथाम को बड़ा खर्च करने में असमर्थ है देश
पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप मेडिसिन विभाग के कंसल्टेंट रेस्पीरेटरी डॉ. शिवांशु राज गोयल के मुताबिक देश में तंबाकू से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए हर साल हजारों करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। भारत जैसा कम संसाधन वाला एक देश तंबाकू से होने वाले कैंसर की रोकथाम पर इतना बड़ा खर्च नहीं कर सकता है। विश्व स्तर पर बेहतर जागरुकता के कारण विकसित देशों में धूम्रपान में लगातार गिरावट आई है, जबकि भारत में यह गिरावट मामूली सी है। तंबाकू चबाने की आदत खासकर युवाओं में और युवा महिलाएं में बढ़ती जा रही है। भारत को तंबाकू के सेवन पर सख्त प्रतिबंध लगाने की जरूरत है।
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