निपाह वायरस का एक पॉजिटिव केस सामने आने से स्वास्थ्य विभाग के हांथ-पांव फूल गए हैं, साथ ही पूर्व में इस वायरस को खत्म करने को किए गए कागजी दावे भी धराशाही हो गए हैं। दरअसल गाल बजाना और धरातल पर काम करके दिखाने में बहुत अंतर होता है। समूचे हिंदुस्तान में प्रत्येक वर्ष बेनाम बीमारियों की चपेट में आकर अनगिनत लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। इन घटनाओं को देखकर प्रतीत होता है कि हमारा चिकित्सीय सुरक्षा तंत्र आज भी आपातकालीन संक्रमित रोगों व खतरनाक जानलेवा वायरसों से लड़ने के काबिल नहीं है। चिकित्या प्रद्वति में बदलाव के लिए जो तरक्की करनी चाहिए, वह अभी तक नहीं की गई है। जहां तक निपाह वायरस की बात है तो इस वायरस ने पिछली ही साल दस्तक देकर हमें आगाह कर दिया था। लेकिन हमारे हेल्थ सिस्टम ने हल्के में लिया, जिसका नतीजा हमारे सामने है हम फिर उसके चुंगल में फंसते दिख रहे हैं। निपाह वायरस का दोबारा से आना सीधे तौर पर हमारे चिकित्सा विधा की नाकामी कहा जाएगा।
साल बाद दोबारा निपाह वायरय के दस्तक ने समूचे स्वास्थ्य तंत्र में हड़कंप मचा दिया है। केरल व अन्य राज्यों में पिछले साल इस वायरय ने जो तांड़व मचाया था उसके जख्म अभी भरे भी नहीं थे, लेकिन एक बार फिर अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर चारो ओर कोहराम मचा दिया है। केरल में निपाह वायरस का पहला मामला दर्ज किया गया है। मामले की जैसे ही पुष्टि हुई राज्य सरकार व केंद्र सरकार में खलबली मची हुई है। दो दिन पहले राज्य सरकार ने वहां के एक छात्र के शरीर में वायरस संक्रमित होने की पुष्टि की है। घटना के संबंध में केरल की स्वास्थ्य मंत्री ने तुरंत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को अवगत कराया है। उसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग हरकत में आकर परिस्थितियों को संभालने में मुस्तैद हो गया है। दरअसल पिछले साल इस वायरस ने कईयों की जाने ले ली थी, इसलिए पूर्व की घटनाओं को देखते हुए स्वास्थ्य महकमा समस्या से निपटने के लिए अपनी ओर से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता। निपाह से निपटने के लिए फिलहाल केरल के एनार्कुलम मेडिकल कॉलेज में अलग से वॉर्ड बनाया गया है। पीड़ित छात्र की निगरानी के लिए एक बड़ी मेडिकल टीम लगाई गई है।
सवाल उठता है कि हमारा स्वास्थ्य तंत्र आकस्मिक पनपने वाले संक्रमित वायरसों व बीमारियों से निपटने के लिए इतना कमजोर क्यों है? जबकि हुकूमतें स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ी सफलता पाने की बातें करती हैं। लेकिन मौजूदा निपाह वायरस से फैली सामाजिक चिंताएं दशार्ती हैं कि हमारा चिकित्सीय ढांचा अब भी काफी कमजोर है। बीमारियों से निपटने के लिए जितने कागजी दावे किए जाते हैं वह उस वक्त फुस्स हो जाते हैं जब लोग निपाह वायरस की चपेट में आते हैं। पिछले साल जब केरल में ही निपाह वायरस ने दस्तक दी थी, तब दावा किया गया था कि भविष्य में इस वायरस से निपटने के पुख्ता इंतजाम हैं। दवाईयों का पर्याप्त डोज होने का दावा किया गया था। लेकिन दावों की हकीकत अब सबके सामने है।
निपाह वायरस तैजी फैलने वाला बेहद खतरनाक संक्रमण है उसे तुरंत रोक पाना मुश्किल होता है। भारत का इस बीमारी से परिचय एकाध साल पहले ही हुआ है, इसलिए हमारे स्वास्थ्य महकमे के पास इसे रोकने के लिए कोई खास मुकम्मल इंतजाम अभी भी नहीं है। हालांकि कोशिशें हर संभव जारी हंै। निपाह वायरस ने पिछले वर्ष केरल के ही कोझीकोड जिले में दस्तक दी थी। तब कुछ ही दिनों में वहां कई लोग इस वायरस के चपेट में आ गए थे। हड़कंप तब ज्यादा मच गया था, महज दो दिनों में दर्जन भर लोगों की मौतें हो गई थी। देखते ही देखते केरल राज्य के तकरीबन अस्पताल निपाह वायरस की चपेट में आने वाले मरीजों से भर गए थे। पिछले साल की दहशत अब भी लोगों के जेहन में है। इसलिए एक बार फिर निपाह वायरस की दस्तक ने सभी को भयभीत कर दिया है। इसको लेकर दिल्ली में बीते मंगवार को एक बड़ी स्वास्थ्य बैठक आयोजित हुई, कुछ हवाई अड्डों पर जांच के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं। विशेषकर केरल से आने-जाने वाले लोगों के लिए।
निगरानी इसलिए की जा रही है ताकि उनके संपर्क में और व्यक्ति न आ सकें। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली से डॉक्टरों का एक विशेषदल केरल के लिए रवाना कर दिया गया है। हालांकि निपाह वायरस की खबर फैलने के साथ ही समूचे केरल के लोग भयभीत हो गए है। केरल के बाद आसपास के कुछ और राज्यों में सुरक्षा के खासे इंतजाम किए जा रहे हैं। पुणे में भी ऐसे कुछ मामलों के आने का शक है। तभी पुणे स्थिति विरोलॉजी इंस्टीट्यूट में कुछ लोगों के खून की जांच की जा रही है। स्थिति और न बिगड़े इसके लिए केरल सरकार ने इस पर केंद्र सरकार से तत्काल मदद मुहैया कराने की गुहार लगाई है। उनकी गुहार को गंभीरता से लेते हुए केंद्र ने तुरंत एनसीडीसी की टीम को केरल भेज दिया है। टीम वायरस प्रभावित इलाकों का दौरा करेगी। सूत्र बतातें हैं कि केंद्र सरकार ने मलेशिया सरकार से भी संपर्क किया है। क्योंकि मलेशिया दो दशक पहले इस बीमारी का भुक्तभोगी रहा है।
हिंदुस्तान में निपाह की पहचान दूसरी बार की गई है। दरअसल ये जानवरों में पाई जाने वाली बीमारी है। विशेषकर चमगादड़ और सूअर से फैलती है। इन जानवरों से होती हुई ये बीमारी इंसानों में समा जाती है। शुरूआत में इसका पता नहीं चलता। लेकिन जब पता चलता है तो बहुत देर हो जाती है। इस बीमारी पर नियंत्रण के लिए फिलहाल अभी हमारे चिकित्सकों के पास कोई कारगर चिकित्सा विधि नहीं है जो वह प्रकोपित मरीजों को मुहैया करा सकें। बचाव व रोकथाम ही मात्र एक सुझाव है। गंदे जानवरों से दूर रहें और उन्हें पास न आने दें। केंद्र द्वारा भेजी गई नेशनल सेंटर फॉर डीसीज कंट्रोल की टीम केरल में निपाह वायरस प्रभावित इलाकों का जायजा ले रही है। निपाह वायरस बच्चों को सबसे पहले और आसानी से अपनी गिरफत में लेता है।
-रमेश ठाकुर
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