अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए हैं। यह बढ़त 2014 के बाद सबसे अधिक है तथा इसमें और भी बढ़त की संभावना है। इस वृद्धि से भारत सहित कई देशों में मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ेगा। वैश्विक स्तर पर औद्योगिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों के तेज होने से तेल की मांग पहले से ही अधिक है। इसके साथ वैश्विक आपूर्ति में भी अवरोध हैं। कुछ समय पहले यूरोप, अमेरिका, चीन समेत अनेक जगहों पर ऊर्जा संकट की स्थिति भी पैदा हो चुकी है। इन कारकों के साथ मध्य-पूर्व तथा यूरोप में भू-राजनीतिक संकट गहराने से भी तेल की आपूर्ति को लेकर आशंकाएं पैदा हो गयी हैं। महत्वपूर्ण तेल उत्पादक देश संयुक्त अरब अमीरात पर यमन के हूथी विद्रोहियों के ड्रोन एवं मिसाइल हमलों के हवाले से माना जा रहा है कि उस क्षेत्र में अशांति व अस्थिरता की नयी स्थिति पैदा हो सकती है।
यूक्रेन को लेकर अमेरिका व नाटो देशों तथा रूस के बीच चल रहे तनाव के शीघ्र समाधान की भी उम्मीद नहीं है। जो स्थिति वहां बनी हुई है, वह युद्ध का रूप भी ले सकती है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस द्वारा यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई करने की स्थिति में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरुद्ध व्यक्ति पाबंदी लगाने की चेतावनी दे चुके हैं। ऐसे में आपूर्ति के संबंध में पैदा हुई आशंकाएं तेल की कीमतों को हवा दे रही हैं। भारत में भी हाल में पेट्रोलियम उत्पादन में गिरावट आयी है। महामारी के दौर में उत्पादन लागत बढ़ने से वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति का दबाव बना हुआ है। अगर हम तेल को छोड़ भी दें, तो बाकी चीजों को लेकर मुद्रास्फीति का दबाव वैश्विक स्तर पर अभी कुछ समय तक बना रहेगा, जब तक सब कुछ महामारी के पहले के स्तर पर सामान्य नहीं हो जाता है। यह अलग बात है कि कौन सा देश महामारी की रोकथाम के लिए लॉकडाउन कर रहा है या क्या उपाय कर रहा है, लेकिन कुल मिलाकर बाधाएं और पाबंदियां तो कमोबेश हैं ही।
कोरोना को लेकर अभी भी बहुत निश्चिंत होकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। एक अन्य पहलू है, जिस पर कम बात की जा रही है। अब आज की मांग के अनुरूप वे मासिक उत्पादन लक्ष्यों को हासिल करने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। अब दुनिया की निगाहें तेल निर्यातक देशों की दो फरवरी को होनेवाली बैठक पर है, जिसमें उत्पादन बढ़ाने पर फैसला लिया जा सकता है। इस संदर्भ में तेल को लेकर होनेवाली परोक्ष कूटनीति का संज्ञान लिया जाना चाहिए। अर्थव्यवस्था को कोरोना से पहले की स्थिति में ले जाने के लिए घरेलू बाजार में मांग का बढ़ना जरूरी है, लेकिन अगर तेल के दाम का मामूली बोझ भी खुदरा ग्राहक पर पड़ेगा, तो मांग पर नकारात्मक असर होगा। ऐसी स्थिति में सरकार और तेल कंपनियों को बहुत सावधानी से कदम उठाना पड़ेगा।
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