आतंक के खात्मे का अभिनंदन तो होना ही चाहिए

The defeat of terror should be congratulated

भारतीय वायुसेना ने पीओके में आंतकी ठिकानों पर बमबारी करके यह संदेश दे दिया है कि भारत अब आंतकियों को उनके घर में घुसकर मारेगा। पुलवामा हमले के बाद भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्राइक भारत की आंतकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति का खुला पन्ना है। भारत ने एयर स्ट्राइक के साथ-साथ कूटनीति के मोर्चे पर भी पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया। इसी के चलते भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की दो दिन में ही वापसी हो गई। यह उन कोशिशों का भी अभिनंदन है, जिनके मद्देनजर यह संभव हुआ। बेशक पाकिस्तान किसी के दबाव में झुका हो, अंतरराष्ट्रीय ताकतों ने उसे तोड़ दिया हो, उसके सामने आर्थिक और अस्तित्व की मजबूरियां रही होंगी, लेकिन मां भारती के सपूत की सकुशल घर-वापसी का अभिनंदन। इस देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर असंख्य अभिनंदन न्योछावर किए जा सकते हैं।

इन सबके बीच कई अहम सवाल है जिनका जवाब देश मांग रहा है। क्या हमारा एकमात्र लक्ष्य यह नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के दौर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाये? क्या हमारा लक्ष्य यह नहीं होना चाहिए कि भारत-पाक के बीच चल रहे एक अघोषित युद्ध को एक निर्णायक लड़ाई लड़कर खत्म कर दिया जाये? इन सब सवालों के जवाब हैं हमारे पास, लेकिन ये सिर्फ टोकनिज्म से हल नहीं होंगे, बल्कि निर्णायक युद्ध के फैसले से हल होंगे. नहीं तो फिर वही होगा कि एक सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पुलवामा होगा, तो दूसरे सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कोई और हमला।

युद्ध बलिदानों और कुर्बानियों की ही सचाई है, लेकिन सबसे अहम भारत और उसकी सेनाओं का मनोविज्ञान रहा। दरअसल पाकिस्तान की सीमा में घुसकर बालाकोट में आतंकियों और उनके अड्डों पर वज्रपात-सा हवाई हमला करना हमारा एक मनोवैज्ञानिक प्रयास था। मनोविज्ञान पाकिस्तान के परमाणु अस्त्रों को लेकर था, लिहाजा भारतीय सेनाओं को कारगिल युद्ध, जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर आतंकी हमले और मुंबई के 26/11 आतंकी हमले के बावजूद नियंत्रण-रेखा पार करने से रोका जाता रहा। वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में 13 दिसंबर, 2001 को जैश-ए-मुहम्मद ने ही हमारी संसद पर हमला किया था। तब पाकिस्तान के पास अमरीकी विमान एफ-16 पुर्जों की कमी के कारण सक्रिय नहीं थे, लेकिन अंतत: भारत ने पाकिस्तान को बख्श दिया। भारतीय सेनाओं को तब पाकिस्तान में घुसकर हवाई हमला करने की अनुमति दी गई होती, तो आतंकी नरसंहारों की कहानी ही अलग होती। बहरहाल इतिहास को भूलना ही उचित है।

यह सिर्फ भारतीय सेना की तैनातियों और मोचेर्बंदी की थाह लेने की कोशिश भी थी। हमने उन कोशिशों को भी ध्वस्त किया। इस पूरी प्रक्रिया में पाकिस्तान ने एक बार भी परमाणु अस्त्रों का नाम तक नहीं लिया, लिहाजा एक मनोवैज्ञानिक भ्रम भी टूटा। दरअसल बीते साढ़े तीन दशकों से भी अधिक पुराने आतंकवाद का खात्मा करना ही अभिनंदन होगा भारत राष्ट्र का। फिलहाल पाकिस्तान पर जो चैतरफा दबाव है, अब उसे कम नहीं होने देना चाहिए। आतंकवाद से निपटने के लिए सेना को खुली छूट देनाय सरकार का निर्णय स्वागतयोग्य है। इस बात की पूरी जांच होनी चाहिए कि विस्फोटक पदार्थ कश्मीर में कैसे पहुंचा।

सैन्य क्षेत्रों में सख्त जांच होती है। लेकिन वहां मिलिटेरी वाहनों के साथ सिविलियन वाहनों को चलने की अनुमति दी गई, जिसका लाभ आतंकवादियों ने उठाया। हमारे खुफिया तंत्र और स्थानीय पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी। सवाल उठना लाजिमी है कि जब आतंकवादी इस काम को अंजाम दे रहे थे, तब हमारा खुफिया तंत्र क्या कर रहा था? काला धन, हवाला, क्रिप्टो करेंसी ये सारे कारोबार आतंकवाद की आड़ में अच्छे से फलते-फूलते हैं और हथियार लाबी इसका भरपूर इस्तेमाल करती है।

इसलिए दुनिया के कई देशों में कमजोर सरकारें बनाई जाती हैं, ताकि उन्हें कठपुतलियों की तरह नचाया जा सके। पाकिस्तान भी इन्हीं में से एक है। यह अफसोस की बात है कि पाकिस्तान सच को अनदेखा कर रहा है। भारतविरोधी माहौल बनाकर राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश वहां हमेशा होती रही है, जिसका खामियाजा वहां की जनता को उठाना पड़ता है। पुलवामा के दोषियों को भारत ने अपने हिसाब से सजा दी है, अब बारी पाकिस्तान की है। भारत और पाकिस्तान दोनों आपस में न उलझ कर आतंकवाद के खिलाफ लड़ें, तो दोनों देशों की जनता का भविष्य सुखदायी होगा।

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