भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो गई है। अर्थव्यवस्था का हर क्षेत्र मांग की कमी से प्रभावित है। उद्योगों के बहुत से सेक्टर में विकास दर कई सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है। वर्ष 2016-17 में जीडीपी विकास दर 8.2 प्रतिशत थी,जो 2017-18 में घटकर 7.2 प्रतिशत रह गई और वर्ष 2018-19 में जीडीपी की विकास दर 6.8 प्रतिशत रह गई। ताजा अधिकारिक आँकड़ों पर यकीन करें तो वर्ष 2019 की जनवरी से मार्च की तिमाही में जीडीपी की विकास दर 5.8 फीसदी रह गई थी,जो 5 साल में सबसे कम है।
इस तरह तीन साल में विकास की रफ्तार में 1.5 प्रतिशत की कमी आ गई है। पिछले 20 वर्षों में ऐसा पहले सिर्फ दो बार हुआ है कि लगातार तीन तिमाही में वृद्धि दर गिरी हो। जीडीपी की विकास दर घटने से लोगों की आमदनी, खपत और निवेश,सब पर असर पड़ रहा है। जिन सेक्टरों पर इस मंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा है,वहाँ पर नौकरियाँ घटाने के ऐलान हो रहे हैं। आरबीआई ने अपनी मौद्रिक समिति की बैठक में भारतीय अर्थव्यवस्था के जीडीपी ग्रोथ रेट के पूवार्नुमानों को घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार बढ़ी अर्थव्यवस्था के मामले में भारत की रैंकिंग 7 वें नंबर पर आ गई है।
एक दौर में प्रभावशाली निजी विमान सेवा कंपनी जेट एयरवेज आज बंद हो चुकी है। एयर इंडिया काफी घाटे में चल रही है। किसी दौर में टेलीकॉम सेक्टर की पहचान रही बीएसएनएल आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स ने हाल ही में बाजार से एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेकर अपने कर्मचारियों को वेतन दिया। यह इस दशक में पहली बार था। भारतीय डाक सेवा का वित्त वर्ष 2019 में वार्षिक घाटा 15 हजार करोड़ हो चुका है। भारत की सबसे बड़ी कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की कंपनी ओएनजीसी का अतिरिक्त कैश रिजर्व तेजी से घट रहा है। सरकार द्वारा गैर जरूरी अधिग्रहण के चलते आज यह कंपनी एक बड़े कर्ज के दबाव में आ गई है।
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खपत में गिरावट:
विकास दर घटने से लोगों की आमदनी पर बुरा असर पड़ रहा है। देश में बाजार की सबसे बड़ी रिसर्चर कंपनी नील्सन की रिपोर्ट कहती है कि तेजी से खपत वाले सामान यानी फास्ट मूविंग कंजपशन गुड्स अर्थात एफएमसीजी की बिक्री की विकास दर इस साल जनवरी से मार्च के बीच 9.9 प्रतिशत थी, लेकिन इसी साल अप्रैल से जून की तिमाही में ये घटकर 6.2 फीसदी रह गई। एफएमसीजी के उपरोक्त आँकड़ों से स्पष्ट है कि लोग अब अनिवार्य आवश्यकताओं में भी कटौती कर रहे हैं। ब्रिटेनिया बिस्किट का कहना है कि अब लोग 5 रू के बिस्कुट को भी खरीदने से पहले सोच रहे हैं। इसी तरह पारले जी बिस्कुट कंपनी की हालत बिगड़ती जा रही है और लगभग 10 हजार लोगों की नौकरियाँ छंटनी के कगार पर है।
ग्राहकों की खरीददारी के उत्साह में कमी का बड़ा असर आॅटो उद्योग पर पड़ा है। बिक्री घटी है और नौकरियों में बड़े पैमाने पर कटौती हो रही है। भारत की सबसे बड़ी कार निमार्ता मारूति सुजुकी ने जुलाई माह में पिछले साल के मुकाबले में कारों की बिक्री में 36 प्रतिशत की गिरावट की बुरी खबर दी है। खपत में कमी की वजह से टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों को अपनी गाड़ियों के निर्माण में कटौती करनी पड़ी है। इसका नतीजा ये हुआ है कि कल पुर्जे और दूसरे तरीके से आॅटो सेक्टर से जुड़े हुए लोगों पर भी इसका बुरा असर पड़ा है।
उदाहरण के लिए जमशेदपुर का टाटा मोटर्स का प्लांट दो माह से 30 दिनों में केवल 15 दिन ही चलाया जा रहा है। इससे जमशेदपुर और आस-पास के इलाकों में 1,100 से ज्यादा कंपनियाँ बंदी के कगार पर खड़ी हैं,जो टाटा मोटर्स को सप्लाई कर रही थी। आॅटो सेक्टर में अगर यही हालत रही तो तकरीबन 10 लाख लोगों को नौकरियाँ गंवानी पड़ सकती हैं। ज्ञात हो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आॅटोमोबाइल सेक्टर की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि मैन्युफैक्चरिंग में इसकी हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है।
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निर्यात में लगातार गिरावट:
आमतौर पर जब घरेलू बाजार में खपत कम हो जाती है,तो भारतीय उद्योगपति,अपना सामान निर्यात करने और विदेश में बाजार तलाशतें हैं। अभी स्थिति ये है कि विदेशी बाजार में भी भारतीय सामान के खरीददार का विकल्प बहुत सीमित है। पिछले दो सालों से जीडीपी विकास दर में निर्यात का योगदान घट रहा है। मई माह में निर्यात की विकास दर 3.9 प्रतिशत थी,लेकिन इस साल जून में निर्यात में 9.7 प्रतिशत की गिरावट आई है। ये 41 महीनों में सबसे कम निर्यात दर है। चीन-अमेरिका ट्रेड वार का विस्तार भारत के साथ भी हो रहा है।
ऐसे में निर्यात वृद्धि के लिए विशिष्ट रणनीति की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए चीन में अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ने से एक रिक्तता पैदा हुई है,ऐसे में भारत लगभग 57 प्रकार के उत्पादों को चीन में बेच सकता है,जो चीन के साथ हमारे एकपक्षीय व्यापार में संतुलन बना सकता है। हम लोग देख सकते हैं कि किस तरह ट्रेड वार के संकट को वियतनाम और बांग्लादेश ने अपने लिए अवसर में बदला। जब चीन ने टेक्सटाइल सेक्टर को छोड़कर अधिक मूल्य वाले उत्पादों पर जोर दिया तो उस जगह को भरने के लिए बांग्लादेश और वियतनाम तेजी से आएँ,वहीं भारतीय टेक्सटाइल इसका लाभ नहीं उठा सका।
बचत में गिरावट:
अर्थव्यवस्था का विकास धीमा होने का रियल स्टेट सेक्टर पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है। एक आकलन के अनुसार इस वक्त देश के 30 बड़े शहरों में 12.76 लाख मकान बिकने को पड़े हुए हैं। कोच्चि में मकानों की उपलब्धता 80 महीनों के उच्चतम स्तर पर है,वहीं जयपुर में 59 महीनों ,लखनऊ में 55 महीनों और चैन्नई में ये 75 महीनों के अधिकतम स्तर पर है। इसका ये मतलब है कि इन शहरों में जो मकान बिकने को तैयार हैं,उनके बिकने में 5 से 7 वर्ष लग रहे हैं। आमदनी बढ़ नहीं रही है और बचत की रकम बिना बिके मकानों में फंसी हुई है। वित्त वर्ष 2011-12 में घरेलू बचत ,जीडीपी का 34.6 प्रतिशत थी,लेकिन अब यह बचत दर जीडीपी के अनुपात में घटकर 17% पर आ गई है,जो पिछले 20 वर्षों में सबसे कम है।
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वित्त मंत्री द्वारा उठाए गए कदम
वित्त मंत्री ने आर्थिक मंदी के बीच अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए “32 सूत्रीय” उपायों की घोषणा की । इसमें सर्वप्रथम कदम फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (एफपीआई) और घरेलू इक्विटी इन्वेस्टर्स पर बढ़ाए गए सुपर रिच सरचार्ज को वापस लेना। इसके अतिरिक्त सरकार ने बैंक लॉन और रेपो रेट को जोड़ने की भी घोषणा की। ज्ञात हो,पिछले दिसंबर से अब तक रेपो रेट में लगातार चार बार कटौती की गई है,लेकिन स्वयं आरबीआई का कहना है कि यह कटौती उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँच रही है। ऐसे में यह घोषणा भी महत्वपूर्ण है। जहाँ तक बात है गहन ढ़ाँचागत दिक्कतों की, तो उन्हें हल करना शेष है और निवेश भी बढ़ाना है। इसके लिए केंद्र सरकारी को काफी काम करना होगा। सरकार ने आर्थिक मंदी को दूर करने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है,लेकिन इसके लिए ढ़ांचागत सुधारों के तरफ भी प्रतिबद्धता आवश्यक है।
-राहुल लाल