संयुक्त राष्ट्र की नस्ली भेदभाव उन्मूलन समिति का यह खुलासा चीन के दोहरे चरित्र को उजागर करने वाला है कि उसने 10 लाख से ज्यादा उइगर मुस्लिमों को कथित तौर पर कट्टरवाद विरोधी गुप्त शिविरों में कैद रखा है और 20 लाख अन्य को विचारधारा बदलने का दबाव बना रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सामाजिक स्थिरता और धार्मिक कट्टरता से निपटने के नाम पर चीन ने इगर स्वायत क्षेत्र को कुछ ऐसा बना दिया है जो गोपनीयता के आवरण में ढंका बहुत बड़ा नजरबंदी शिविर जैसा है। रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि इन शिविरों में जबरन राष्ट्रपति शी चिनफिंग की वफादारी की कसम दिलवाई जाती है और कम्युनिस्ट पार्टी के नारे लगवाए जाते हैं।
गौर करें तो इस तरह का खुलासा कोई पहली बार नहीं हुआ है। अभी चंद दिन पहले ही अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉपियो द्वारा धार्मिक आजादी के मुद्दे पर चीन की यह कहकर आलोचना की गयी थी कि वहां धार्मिक स्वतंत्रता संकट में है और रह रहे विभिन्न धर्मावलंबियों के धार्मिक क्रियाकलापों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि चीन द्वारा उइगर मुसलमानों और तिब्बती बौद्धों की धार्मिक स्वतंत्रता का दमन किया जा रहा है जो कि मौलिक मानवाधिकारों का उलंघन है। इस कड़ी टिप्पणी से चीन को शर्मसार होना पड़ रहा है कि वह अपनी सुरक्षा व संप्रभुता के नाम पर अपनी भूमि पर रहने वाले गैर धर्मावलंबियों के साथ सख्ती से पेश आ रहा है। नि:संदेह चीन को अधिकार है कि वह दुनिया भर में इस्लामिक आतंक के कहर से स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए ठोस कदम उठाए। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह लोगों की धार्मिक आजादी पर पाबंदी थोप उन्हें कैदी बना ले। अब चीन चाहे जो भी सफाई दे लेकिन यह सत्य है कि वह अपने मुस्लिम बाहुल्य प्रांतों में ऐसा ही अत्याचार कर रहा है।
चीन की सरकार ने इन प्रांतों में धार्मिक शिक्षा पर रोक लगा दी है। जिन मस्जिदों में कभी हजारों बच्चे कुरान पढ़ने के लिए आते थे, अब वहां उनका प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित है। बच्चों के परिजनों को भी हिदायत दी गयी है कि वे बच्चों को मस्जिदों में कुरान पढ़ने के लिए न भेजें क्योंकि इससे वे धर्मनिरपेक्ष पाठ्यक्रमों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। यहां के स्थानीय प्रशासन ने उन छात्रों की तादाद घटा दी है जिन्हें 16 साल से अधिक उम्र के चलते मस्जिदों में पढ़ने की अनुमति मिली हुई है। मस्जिदों में नियुक्त किए जाने वाले नए इमामों के लिए प्रमाणपत्र हासिल करने की प्रक्रिया को भी सीमित कर दिया गया है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार शिनजियांग प्रांत में और भी अधिक कठोरता से पेश आ रही है। यहां के रहने वाले उइगर समुदाय के लोगों को शिक्षा शिविरों में डाल दिया गया है जहां उन्हें कुरान पढ़ने या दाढ़ी रखने की सख्त मनाही है।
याद होगा इस वर्ष के जनवरी माह में ही चीन की सरकार ने यहां के मुस्लिम समुदाय के लोगों को चेतावनी दी कि वे नाबालिगों को कुरान पढ़ने के लिए या धार्मिक गतिविधयों में भाग लेने के लिए मस्जिदों में न जाने दें और न ही इसका समर्थन करें। अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें दंड भुगतना होगा। सरकार के इस रवैए से यहां रह रहे मुसलमानों के मन में इन प्रतिबंधों से यह धारणा पनपने लगी है कि सरकार उनकी रीति-रिवाज और परंपाओं को खत्म करने पर आमादा है। उन्हें लग रहा है कि सरकार 1966 का माहौल निर्मित करना चाहती है, जिस दौरान मस्जिदों को ढहा दिया गयाया फिर जानवरों को रखने की जगह के रुप तब्दील कर दिया गया था। उइगर मुसलमानों की यह चिंता अनायास नहीं है। गौर करें तो चीन की सरकार ने यहां के मस्जिदों पर राष्ट्रीय झंडा लगाना अनिवार्य कर दिया है और ध्वनि प्रदुषण की आड़ में इन मस्जिदों के इमामों को चेताया है कि वह नमाज के लिए माइक के जरिए लोगों को बुलावा न भेंजे। दरअसल विगत वर्षों में चीन में कई आतंकी घटनाएं हुई हैं जिनमें कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों का हाथ रहा है।
चीन की सरकार इस नतीजे पर है कि भले ही उसने तत्कालीन आक्रोश को दबा दिया लेकिन उसकी आग अभी बुझी नहीं है। चूंकि इस्लामिक आतंकी संगठन पहले ही शिनजियांग प्रांत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का आह्नान कर चुके हैं ऐसे में चीन एक रणनीति के तरत उइगर मुसलमानों के खिलाफ काम कर रहा है। शिंजियांग प्रांत की बात करें तो यह प्रांत प्रारंभ से ही संवेदनशील रहा है। यहां 40 से 50 फीसदी आबादी उइगर मुसलमानों की है जिसे काबू में करने के लिए वहएक रणनीति के तहत यहां हान वंशीय चीनियों को बड़ी संख्या में बसाना शुरू कर दिया है। नतीजा उइगर मुसलमानों की संख्या सिकुड़ने लगी है। वह चीनी हान वंशियों की आबादी के आगे अल्पसंख्यक बन कर रह गए हैं। ऐसे में उइगर मुसलमानों को अपनी संस्कृति को लेकर चिंता सताना लाजिमी है।
अभिजीत मोहन
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