Dr. Manmohan Singh Passes Away: डॉ. संदीप सिंहमार। स्वतंत्र लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार। देश के प्रमुख अर्थशास्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने जब प्रधानमंत्री के तौर पर देश की सत्ता संभाली, तब उन्होंने कुछ ऐसे फैसले लिए, जिनको भारत देश ही नहीं पूरा विश्व कभी नहीं भूल सकता। सबसे पहले उन्होंने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को 100 दिन का रोजगार देने का अपना वायदा पूरा किया, जो आज भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के नाम से लागू है। ऐसे ही बहुत से कानून है जो उन्होंने देश की जनता की भलाई के लिए लागू किए। शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) 2009 डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा पेश किया गया था और इसे बच्चों के लिए एक बड़ा बदलाव माना जाता है।
यह कानून 6 से 14 साल की उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करता है और उन्हें इस बात की सुरक्षा देता है कि उनके मुलभूत शिक्षा अधिकारों की पूर्ति होगी। सरकारी स्कूलों में बिना किसी शुल्क के पढ़ाई की सुविधा। निजी स्कूलों में 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर और समाज के पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित करना। सभी स्कूलों में प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति और मानकों के अनुसार बुनियादी ढांचे की व्यवस्था। स्कूलों में प्रवेश के लिए कोई चयन प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए, जिससे सभी बच्चों को समान अवसर मिलें। स्वस्थ भोजन प्राप्त करने के लिए स्कूलों में मुफ्त भोजन की व्यवस्था। यह कानून बच्चों के शैक्षणिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसके तहत समाज के हर वर्ग के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, जिससे आगे चलकर उनके जीवन में समृद्धि और समानता का विकास हो सके।
रोजगार गारंटी अधिनियम 2005
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना और मूलभूत सुविधाओं को सक्षम बनाना था। इसके तहत हर ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों का निश्चित रोजगार उपलब्ध कराने की गारंटी दी गई है। इस योजना ने गरीब किसानों और भूमिहीन श्रमिकों के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराई है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ और साथ ही बुनियादी ढांचे के विकास में भी मदद मिली। यह अधिनियम सामाजिक सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसने ग्रामीण भारत की आबादी के लिए एक स्थायी आय का साधन प्रदान किया है। मनरेगा के प्रभाव से ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमशक्ति को मजबूत किया गया है, और ग्रामीण विकास की दिशा में ठोस कदम उठाए गए हैं।इसने मौसमी बेरोजगारी की समस्या को भी काफी हद तक कम किया है।
सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 2005 भारत में एक क्रांतिकारी कानून है, जिसने नागरिकों को सरकारी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही का अधिकार प्रदान किया है। इसने नागरिकों और प्रशासन के बीच दूरी को कम करते हुए सरकारी सूचना तक आसान पहुंच सुनिश्चित की। सूचना का अधिकारकिसी भी सरकारी विभाग से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार हर भारतीय नागरिक को है, जो उसकी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाता है। जानकारी प्रदान करने के लिए 30 दिनों की निर्धारित समय सीमा, जिससे प्रक्रिया जल्दी और सहज होती है। प्रत्येक सरकारी विभाग में PIO की नियुक्ति, जो नागरिकों की सूचना संबंधित आवश्यकताओं को संभालते हैं। जानकारी नहीं मिलने की स्थिति में प्रथम और द्वितीय अपील का प्रावधान, जिससे न्याय सुनिश्चित होता है। कुछ सूचनाएं सुरक्षा, गोपनीयता और संप्रभुता को ध्यान में रखते हुए इस अधिकार से बाहर रखी जाती हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम ने जनता को अधिकार संपन्न बनाया, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं और नीतियों की जानकारी मिली। इसने भ्रष्टाचार को कम करने और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में नागरिकों को भागीदार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह कानून जनतंत्र को सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाता है।
वन अधिकार कानून 2006
वन अधिकार कानून (2006), जिसे आधिकारिक तौर पर “अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकार की मान्यता) अधिनियम” कहा जाता है, भारत में आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के भूमि अधिकारों को मान्यता देने और सुरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को उनकी परंपरागत भूमि के अधिकारों को मान्यता देता है, जिन्हें वे पीढ़ियों से निर्जीवित और उपयोग करते आ रहे हैं।
यह कानून न केवल व्यक्तिगत अधिकारों को मान्यता देता है, बल्कि सामुदायिक स्तर पर भी अधिकार प्रदान करता है, जिससे समुदाय जंगल के संसाधनों का पारंपरिक तरीके से उपयोग कर सके। इस अधिनियम के अंतर्गत न केवल भूमि की खेती के अधिकार शामिल हैं, बल्कि वन संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन का भी अधिकार दिया गया है। ग्राम सभा की भूमिका को प्रमुखता दी गई है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित हो सके। दावों के प्रमाणीकरण के लिए दस्तावेजी प्रमाण की आवश्यकता को समाप्त किया गया है, जिससे मौखिक और पारंपरिक तरीकों से अधिकारों की मान्यता मिल सके। इस कानून के तहत आदिवासियों को उनके भूमि से जबरन विस्थापित नहीं किया जा सकता, और यदि जरूरी हो तो उचित पुनर्वास प्रदान करना आवश्यक है। वन अधिकार कानून (2006) ने आदिवासी समुदायों के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिससे उनका जीवन स्तर सुधर सके और वे अपने पारंपरिक जीवन शैली को संरक्षित कर सकें।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (2013) एक महत्वपूर्ण कानून है जिसने भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस कानून का उद्देश्य देश के लगभग दो-तिहाई जनसंख्या को सस्ती दरों पर खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराकर गरीबी और कुपोषण से निपटना है। लगभग 75% ग्रामीण और 50% शहरी आबादी को रियायती दरों पर अनाज उपलब्ध कराना। राज्यों को चयन का अधिकार दिया गया है ताकि क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार लाभार्थियों का चयन हो सके। चावल, गेहूं, और मोटा अनाज क्रमशः 3, 2 और 1 रुपये प्रति किलोग्राम की रियायती दर पर वितरित किए जाते हैं। वैश्विक महामारी कोविद-19 के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने किस योजना का विस्तार करते हुए 80 करोड़ भारतवासियों को निशुल्क खाद्य पदार्थ देने का काम किया। असल में यह योजना पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के समय में ही लागू हुई थी, जो अब तक चल रही है। घर की महिला मुखिया को परिवार की खाद्य सुरक्षा का प्रमुख कानूनी धारक बनाया गया। गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को मातृत्व लाभ देने का प्रावधान, ताकि उन्हें अतिरिक्त पोषण की सुविधा मिल सके। इस योजना के तहत स्कूलों में बच्चों को मुफ्त भोजन की व्यवस्था की गई, जिससे पोषण के साथ-साथ स्कूल में उपस्थिति भी सुनिश्चित हो सके। इस कानून ने गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों के लिए वरदान साबित होते हुए पोषण सुरक्षा और जीवन स्तर में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। यह भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसने सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया।
भूमि अधिग्रहण कानून
भूमि अधिग्रहण कानून (2013), जिसे “भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम” कहा जाता है, भारत में एक महत्वपूर्ण कानून है। इसका उद्देश्य विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण करते समय प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा प्रदान करना और उनकी पुनर्वास की प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाना है। अधिग्रहित भूमि के लिए प्रभावित परिवारों को बाजार मूल्य का कम से कम चार गुना मुआवजा ग्रामीण क्षेत्रों में और दो गुना मुआवजा शहरी क्षेत्रों में प्रदान किया जाता है। प्रभावित परिवारों के लिए पुनर्वास और पुनर्स्थापन की व्यापक योजना बनाना और इस पर विचार करना आवश्यक है।निजी परियोजनाओं के लिए 80% और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं के लिए 70% प्रभावित लोगों की सहमति आवश्यक है। भूमि अधिग्रहण से पहले एक व्यापक सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (SIA) करना अनिवार्य है, जिससे प्रभावित समुदायों की आवाज को प्रमुखता मिले।अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उचित तंत्र और प्रक्रियाएं स्थापित की गई हैं।अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवाशियों के लिए विशेष सुरक्षा और सहूलियतें प्रदान हैं ताकि उनके हितों का स्वागत हो सके। भूमि अधिग्रहण कानून (2013) का उद्देश्य केवल विकास को गति देना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि विकास की प्रक्रिया में प्रभावित लोगों के अधिकारों और जीवन स्तर का भी ख्याल रखा जाए। यह अधिनियम एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे विकास और सामाजिक न्याय का समावेशी रास्ता बन सके।
उदारीकरण नीतियों के जनक
डॉ. मनमोहन सिंह का भारत के आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। 1991 के आर्थिक संकट के समय, जब भारत भुगतान असंतुलन और आर्थिक स्थिरता की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा था, डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्विकरण (LPG) की नीतियां प्रस्तुत कीं। इन सुधारों ने भारत को आर्थिक संकट से बाहर निकाला और दीर्घकालिक आर्थिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया। उदारीकरण की इन नीतियों के तहत आर्थिक व्यापार और निवेश के क्षेत्र में कई प्रतिबंध हटाए गए, जिससे विदेशी निवेशकों को भारत के बाजारों में प्रवेश करने का अवसर मिला। इन नीतियों से न केवल आर्थिक विकास को तेजी मिली, बल्कि भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर नई पहचान भी मिली। डॉ. सिंह की पूंजी के प्रति बढ़ायी गई उदारता और बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के समर्थन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला मजबूत हुई। उनकी सरकार ने सामाजिक कल्याण योजनाओं और ग्रामीण विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया। उनके निधन पर देश भर में उनके योगदान को याद करते हुए कई अंतर्राष्ट्रीय नेताओं से लेकर राष्ट्रीय नेताओं सहित फिल्म इंडस्ट्री उद्योग जगत के व्यापारियों ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। वास्तव में भारत देश उनके इस योगदान को हमेशा के लिए याद रखेगा। भारत की आर्थिक सुधारों की नींव रखने वाले इस दृष्टिकोणशील नेता को देश सदैव याद रखेगा। उनके सुधारों ने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत आर्थिक ढांचा तैयार किया।