मेरी बहन की पौत्री जो 6 वर्ष की थी, एक दिन वह अपने बापू के पीछे खेत चली गई। खेत के पास एक बड़ी नहर थी। उसका बापू तो खेत चला गया परंतु वह लड़की वहीं नहर पर खेलने लग गई। वहां और बच्चे भी खेल रहे थे। खेलते हुए किसी बच्चे ने उसको नहर में धक्का दे दिया। नहर इतनी गहरी थी कि जिसमें से निकलना बहुत ही मुश्किल था। सारे बच्चे वहां से भाग गए। वह मासूम बच्ची गोते खा रही थी। उनमें से एक बच्चे ने घर आकर जब उस घटना की जानकारी दी तो उस बच्ची की माता दौड़कर नहर की तरफ गई लेकिन उसे वह बच्ची वापिस आती हुई रास्ते में ही मिल गई। उसके भीगे कपड़े देखकर उससे पूछा तो उसने बताया कि सरसे वाला बाबा जी ने आकर मुझे नहर में बाहर निकाला और फिर पता नहीं कहां चले गए। अगर वे न आते तो आज मैं डूबकर मर जाती। अपनी बच्ची के मुंह से यह बात सुनकर उसकी मां की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और वैराग्य में उसकी आंखें भर आई। वह सतगुरू के गुणगान गाने लगी कि सतगुरू तू धन्य है जो हर समय अपने बच्चों की रक्षा करता है।
श्रीमती मीरां देवी, कैरांवाली, सरसा (हरियाणा)
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