दुनिया की जानी-मानी मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट ‘डायबिटीज एंडोक्राइनोलॉजी’ में यह खुलासा हुआ है कि भारत के गरीब लोगों में डायबिटीज तेजी से फैल रहा है चिंता में डालने वाला है। यह रिपोर्ट देश के 15 राज्यों के 57 हजार लोगों पर शोध से तैयार की गई है, जिसमें तेजी से पांव पसारते डायबिटीज के लिए मुख्यत: हरित क्रांति को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हरित क्रांति की वजह से गेहूं और चावल के उत्पादन में वृद्धि होने से इस पर गरीब लोगों की निर्भरता बढ़ी है और वे तेजी से डायबिटीज की चपेट में आए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक हरित क्रांति से सिर्फ चावल और गेहूं की पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई है, न कि पौष्टिक मोटे अनाजों में। चूंकि सरकार गेहूं और चावल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन की दुकानों पर सस्ते दामों पर उपलब्ध कराती है और गरीब उसका सेवन कर रहे हैं, लिहाजा वे तेजी से डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं। हरित क्रांति से पहले देश में बाजरा, जौ, ज्वार समेत कई पौष्टिक मोटे खाद्यान्न लोगों के भोजन का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन आज की तारीख में यह इतना महंगा है कि गरीबों की थाली से गायब हो गया है।
गरीबों को पौष्टिक मोटे अनाज खाने को नहीं मिल रहे हैं, जिससे उनमें रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता घट रही है। चूंकि भारत गांवों का देश है और गांवों में आज भी गरीबी है, ऐसे में अगर गरीबों को डायबिटीज से बचाने की कारगर पहल नहीं हुई, तो देश के कार्यशील जनसंख्या का बड़ा हिस्सा इस बीमारी से ग्रस्त होगा, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।
दूसरी ओर औद्योगिकरण, तकनीकीकरण, शहरीकरण और वैश्विकरण ने जहां उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए हैं, वहीं उनकी सेहत को भी प्रभावित किया है। डायबिटीज की दोहरी मार ने उनके जीवन को संकट में डाल दिया है। तथ्य यह भी कि गांव के अधिकांश गरीबों को यह भी पता नहीं होता कि वे डायबिटीज जैसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित हैं।
जब तक वे चेतते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसके लिए आवश्यक हो जाता है कि डायबिटीज को लेकर लोगों को जागरुक किया जाए और उन्हें खान-पान में सावधानी बरतने के लिए प्रेरित किया जाए। सरकार को भी चाहिए कि वह गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत पौष्टिक मोटे अनाज उपलब्ध कराए।
देश की 70 प्रतिशत युवा आबादी के लिए भी डायबिटीज खतरे के रुप में उभर रही है। डायबिटीज पीड़ित लोगों की वैश्विक संख्या तकरीबन 42 करोड़ है। 1980 में दुनिया में करीब 10 करोड़ वयस्क लोगों को डायबिटीज थी। यह आंकड़ा 2014 में चार गुना बढ़कर 42 करोड़ हो गया। दुनिया के आधे डायबिटीज पीड़ित दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशांत देशों में हैं जिनमें सबसे ज्यादा तादाद भारत और चीन में है। एक अनुमान के मुताबिक अकेले भारत में ही 10 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत की 131 करोड़ जनता में 7.8 प्रतिशत लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं।
आमतौर पर डायबिटीज को बढ़ती उम्र के साथ जोड़ा जाता है, लेकिन एक सर्वे के मुताबिक अब ये बीमारी 20 साल की उम्र से होने लगी है। इससे होने वाली 43 प्रतिशत मौतें 70 से कम उम्र के लोगों की होती हैं। 25 साल से कम उम्र के युवाओं के मामले में भी इजाफा हुआ है। निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के आंकड़े बताते हैं कि डायबिटीज क्लेम की संख्या में वृद्धि हुई है और ये आंकड़े इसलिए ज्यादा चिंताजनक हैं कि इनमें 25 साल से कम उम्र के लोग भी हैं। चिकित्सकों का मानना है कि अगर डायबिटीज पर तत्काल अंकुश नहीं लगा तो 2030 तक यह दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी होगी।
-अरविंद जयतिलक
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