केरल जल प्रलय का कारण मानवीय हस्तक्षेप भी

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केरल को ईश्वर का घर कहा जाता है,लेकिन अब इसी केरल में () बाढ़ और इससे हुई तबाही के कारण हाहाकार मचा हुआ है। 8 अगस्त से अब तक यहाँ पर 375 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। केवल गुरुवार को ही केरल में सरकारी आकड़ों के अनुसार 106 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। फिलहाल केंद्र और राज्य सरकारों का जोर यहाँ पर मदद पहुँचाने का है। केरल को जब भी याद करते हैं,तो हरियाली और पानी अवश्य याद आती है। बैकवाटर्स में तैरती हाउसबोर्ड कितनी सुंदर लगती है। ऐसा लगता है कि केरल में जिंदगी पानी के साथ कदम ताल मिलाकर चलती है। पानी और केरल के इस अनोखे संगम में आखिर इतनी भीषण बाढ़ कैसे आ गई है?पिछले कुछ दशकों में केरल में कभी बाढ़ की बात सुनी भी नहीं गई। केरल में इससे पहले 1924 में बाढ़ आई थी,जिसमें 1 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

राज्य में दक्षिण पश्चिम मानसून सामान्य बारिश करके आगे बढ़ जाता था,लेकिन इस बार ऐसा क्या हो गया कि मानसूनी बादल जरूरत से ज्यादा बारिश कर रहे हैं। फिर राज्य के 80% इलाकों में जल प्लावन की स्थिति आ गई। केरल के इतिहास में पहली बार सूबे के सबसे बड़े बाँध इदुक्की हाइड्रोलॉजिकल प्रोजेक्ट के पाँचों गेट खोलने पड़े। यहाँ से हर सेकेंड 5 लाख लीटर पानी छोड़ा जा रहा है,जिससे राज्य की सबसे बड़ी पेरियार नदी के आस-पास के इलाकों में भारी बाढ़ आ गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस भयावह बाढ़ का हवाई सर्वेक्षण भी किया है तथा कोच्चि में उच्चस्तरीय बैठक कर राहत कार्यों का समीक्षा भी किया। प्रधानमंत्री मोदी ने हालात से निपटने के लिए केरल को 500 करोड़ की वित्तीय सहायता की घोषणा की है। वहीं राज्य सरकार ने 2000 करोड़ रुपए की सहायता मांगी है। राज्य में एनडीआरएफ,जल थल और वायु सेना व्यापक राहत कार्य में लगी हुई है।

केरल के प्रभावित हिस्से:

राज्य के 14 में से 13 जिले बारिश से प्रभावित हैं। इस तरह पूरे राज्य में भारी वर्षा हुई है,लेकिन कुछ जिले हैं,जहाँ बाढ़ की समस्या गंभीर है। ये हैं-इदुक्की,कोझीकोड, मलाप्पुरम,कन्नूर और वायनाड। ये जिले उत्तर और मध्य केरल के हैं,ज्यादातर पश्चिमी घाट से लगे हुए हैं। कोझीकोड में आईआईएम है, तो इदुक्की और वायनाड में कई मशहूर टूरिस्ट रिजॉर्ट हैं। हालत ज्यादातर खराब इदुक्की और वायनाड के पहाड़ी इलाकों में है। इदुक्की जिले में इदुक्की डैम का पानी ठहरा हुआ है। बाँध को जिन इलाकों से पानी मिलता है,वहाँ काफी वर्षा होने से बाँध पानी से पूरी तरह भर गया है और बाँध से पानी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं है। वायनाड में बसे मथनवडी और विथिरी से संपर्क पूर्णत: कट गया है,क्योंकि सड़कें बह गई है और कई जगह लैंड स्लाइड हुआ है। इदुक्की में 44%,कोट्टायम में 47% और एनार्कुलम में 44% ज्यादा वर्षा हुई है। केरल में इस आपदा से 3.5 लाख से ज्यादा लोग बेघर हुए हैं तथा अब तक 3 लाख से ज्यादा लोगों को 1500 रिलीफ कैंपों में शिफ्ट किया जा चुका है।

नुकसान कितने का?

केरल बाढ़ की भयावहता इससे ही समझी जा सकती है कि अब तक 375 लोग मार चुके हैं,साथ ही इस आँकड़े के आगे जाने की भी संभावना है। राज्य के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के अनुसार प्रारंभिक आकलन के अनुसार लगभग 20,000 करोड़ का नुकसान हुआ है।
बाँध और जलाशयों की स्थिति: 37 में से 34 बाँधों को खोलना पड़ा है,जो केरल में इससे पहले कभी नहीं हुआ। 39 में 35 रिजर्ववायर्स के गेट खोलने पड़े हैं। इसमें कई रिजर्ववायर्स ऐसे हैं,जो पिछले कई सालों से भर नहीं पाते थे।

केरल में बाढ़ का कारण:

भारत के मौसम विभाग के अनुसार केरल में इस वर्ष का मानसून काफी तगड़ा था। पिछले वर्ष 1 जून से 30 सितंबर के बीच 1855.9 मिमी वर्षा हुई थी,लेकिन इस बार 1 जून से 10 अगस्त के बीच 1840.52 मिमी वर्षा हो गई अर्थात कम वक्त में ज्यादा वर्षा। पूरे देश की तरह केरल में भी दक्षिण पश्चिम मानसून ही मुख्य तौर पर बारिश लाता है। अरब सागर में बनने वाली मानसूनी हवाएँ जून के मध्य या आखिर तक केरल के तटीय इलाकों को छूती हैं। आमतौर पर केरल के उत्तरी और दक्षिणी इलाकों में दक्षिणी पश्चिमी मानसून ही बारिश करता है। हर बार केरल में प्रवेश करने वाली ये मानसूनी हवाएँ केवल सामान्य वर्षा करती थी।

इस बार भारी वर्षा क्यों हुई?

दरअसल केरल में इस बार काफी बड़े एरिया में चक्रवर्ती सकुर्लेशन की स्थिति बनी हुई थी। फिर बंगाल और आसपास के क्षेत्रों में कम दबाव का क्षेत्र होने से मानसूनी हवाएँ बजाए आगे बढ़ने के केरल में रुकी रही और वहाँ बारिश कर रही थी। साथ ही कर्नाटक और केरल में समुद्रीय ज्वार भाटे की स्थिति ने इसमें इजाफे का काम किया। लिहाजा केरल में इतनी बारिश हुई,जो हाल के वर्षों में नहीं देखी गई थी। चूँकि अब कम दबाव का क्षेत्र बदलकर गुजरात की ओर पहुँच चुका है,लिहाजा केरल की स्थिति में बदलाव शुरू हो चुका है और वहाँ एक दो दिनों में वर्षा कम हो जाएगी।

प्रकृति से छेड़छाड़ जैसे मानवीय हस्तक्षेप भी है जिम्मेदार:

बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान उन जगहों पर हुआ है जो इकोलॉजिकली संवेदनशील जोन में थे। उन क्षेत्रों में लोगों ने धड़ल्ले से नियमों को ताक पर रखकर निर्माण किया गया है। इन जगहों पर ही सबसे ज्यादा भूस्खलन भी हुआ है। इसके अतिरिक्त अनेक पर्यावरणविदों ने चैकडैम को भी इसका कारण माना है। इस बार काफी वर्षा हुई है,लेकिन यदि संवेदनशील क्षेत्रों में जमकर निर्माण नहीं होता,तो यह नौबत नहीं आती। उदाहरण के लिए कोच्चि एयरपोर्ट भी बाढ़ से जलमग्न हो गया था। कोच्चि एयरपोर्ट भी पेरियार नदी के ट्रिब्यूटरी पर ही बना है। आपको बता दें कि इकोलॉजिकल सेंसेटिव जोन में निर्माण करने की इजाजत नहीं है। अवैध निर्माण की वजह से पानी के निकलने के मार्ग लगातार बाधित होते चले गए,जिसकी वजह से बाढ़ आई और तबाही देखने को मिली। लेकिन यदि उन क्षेत्रों पर नजर डालेंगे जहाँ भूस्खलन ज्यादा हुआ है तो पता चलता है कि यह वही जगह है,जहाँ पर निर्माण की इजाजत नहीं है,फिर भी चेकडैम बनाए गए हैं या फिर इमारतें खड़ी की गई हैं।

गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट में यह साफतौर पर कहा गया है कि इन क्षेत्रों में निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन सरकारें रिपोर्ट से इतर काम करती रही। यह कमेटी 2010 में बनी थी। 2010 में व्यापक स्तर पर यह चिंता फैली कि भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर वर्षा के बादलों को तोड़ने में अहम भूमिका निभाने वाला पश्चिमी घाट मानवीय हस्तक्षेप के कारण सिकुड़ रहा है। इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने गाडगिल कमेटी का गठन किया था। चेन्नई में पिछली बार हम लोग इसी तरह के मानव निर्मित बाढ़ को देख चुके हैं। जहाँ तक केरल की भौगोलिक स्थिति का सवाल है,तो आपको बता दें कि केरल से 41 नदियाँ निकलती है। केरल में हो रहे बदलाव को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि कृषि के विकास के लिए यहाँ वनों का दोहन दोगुना हो गया है।

इसका सीधा असर यहाँ के वनक्षेत्रों पर पड़ रहा है। वन क्षेत्रों का कम होना स्वयं ही भूस्खलन को आमंत्रित करना है। इससे बचाव का सीधा सा उपाय यह है कि हम बदलते समय के लिहाज से खुद को कैसे तैयार करें। इसके लिए इकोलॉजिकल सेंसेटिव जोन में निर्माण कार्य पर तुरंत रोक लगे। विकास को एक नए दृष्टि प्रकृति से तादात्म्य से जोड़कर देखना पड़ेगा। साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को लघु अवधि एवं दीर्घावधि नीतियों के निर्माण की भी आवश्यकता है। पूर्व में 2013 में केदारनाथ और 2014 में जम्मू कश्मीर में बाढ़ से तबाही को राष्ट्रीय आपदा का दर्जा दिया गया था। अभी वर्तमान में आवश्यक है कि केंद्र सरकार केरल आपदा को भी शीघ्र ही राष्ट्रीय आपदा घोषित करे।

 

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