प्रहार अभियान के अंतर्गत सुरक्षा बलों का नक्सलियों के विरूद्ध कठोर हमलावर रूख बन चुका है। छत्तीसगढ़ के जिला सुकमा में 56 घंटों तक चली एक मुठभेड़ के बाद एक दर्जन नक्सली मारे गए। इस मुठभेड़ में तीन सुरक्षाकर्मी भी शहीद हो गए। हालांकि नक्सली सुरक्षाबलों का भी कुछ न कुछ नुक्सान कर रहे हैं, फिर भी यह तो स्पष्ट है कि नक्सली घिरे हुए हैं एवं अपने बचाव के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं।
सुकमा में सीआरपीएफ, छत्तीसगढ़ पुलिस सहित 1500 जवानों ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया है। विगत समय में नक्सली गु्रप सुरक्षाबलों पर कई बड़े हमले करने में कामयाब रहे, खासकर गश्त पर होने के समय सुरक्षा बलों को निशाना बनाकर किए गए हमलों में नक्सलियों ने भारी जान-माल का नुक्सान किया। दरअसल, सुरक्षाबलों का भारी जान-माल का नुक्सान होने के पीछे केंद्र सरकार व सुरक्षा बलों की नक्सलियों के विरुद्ध ढीली कार्यशैली एक वजह रही।
पूर्व गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने भी माना कि नक्सलवादियों के विरुद्ध ठोस रणनीति नहीं होने की वजह से सुरक्षाबलों पर होने वाले नक्सली हमले जान-माल का ज्यादा नुक्सान कर गए। अब परिस्थितियां थोड़ी बदली हैं।
नक्सल हिंसा से प्रभावित राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्टÑ में एक ही राजनीतिक दल भाजपा की सरकारें हैं। इससे केन्द्र व राज्यों में आतंक विरूद्ध नीति बनाने, उसे लागू करने में कोई कठिनाई नहीं आ रही। नक्सलवादी इस वक्त अपने-आपको घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं। इस वजह से उन्होंने बौखलाहट में ताबड़तोड़ 25 के करीब जोरदार विस्फोट किए हैं।
ये नक्सली अब आमजन पर भी कहर बरपाने लगे हैं, नक्सलियों द्वारा पुलिस के मुखबिर बताकर आम लोगों की हत्याएं की जा रही हैं। नक्सली अपना आतंक फैलाकर आमजन व पुलिस में दूरी बनाकर रखना चाह रहे हैं।
लेकिन सुरक्षा बलों का शिकंजा अब इस कद्र कसता जा रहा है कि उनके आतंक का आमजन पर कोई भय नहीं रहा, एवं नामी नक्सली पुलिस के समक्ष समर्पण कर रहे हैं। अब नक्सलवादियों को आतंक का रास्ता छोड़कर लोकतांत्रिक तरीके से अपनी लड़ाई लड़नी चाहिए, अन्यथा उनका क्रूर अंत निकट है। केन्द्र सरकार को हमलावर नीति के साथ-साथ विकास योजनाओं में तीव्रता लानी चाहिए।
जितनी तेज गति से पिछड़े क्षेत्रों में विकास होगा, उतनी ही तेज गति से सामाजिक विषमता के सहारे खड़ी अलोकतांत्रिक लड़ाई नक्सलवाद का अंत होगा।
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