2019 के आम चुनाव से पहले केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल का आखिरी बजट पेश किया है। बजट में किसान, नौकरीपेशा,महिलाओं पर मेहरबानी दिखाई गई। आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर प्रभारी मंत्री पियूष गोयल ने चुनावी चासनी में डूबा हुआ बजट पेश किया है। बजट का मुख्य आकर्षण है आयकर सीमा मे छूट। अब पांच लाख तक की आय करमुक्त होगी। रक्षा बजट पहली बार तीन लाख करोड़ के पार हो गया है। कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने बजट में लोक लुभावन घोषणाएं के साथ मोदी सरकार की उपलब्धियों का भी जिक्र किया है। वर्तमान परिस्थिति के मद्देनजर वित्त मंत्री ने काफी व्यवहारिक बजट बनाया है। बजट में सभी क्षेत्रों को तरजीह दी गई और आने वाले समय में क्या होगा इसके संकेत दिए गए हैं। सरकार के एजेंडे में आम आदमी का हित सबसे उपर है। कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सरकार ने उत्साहवर्धक माहौल तैयार करने के लिए कई प्रावधान किए हैं।
केंद्र सरकार की ओर से हर साल पेश किए जाने वाले बजट के बाद कुछ प्रतिक्रिया आम होती है। सत्ता पक्ष के नेता इसकी सराहना करते हैं तो विपक्ष इसकी आलोचना। प्रतिक्रिया देने वाले कुछ तो ऐसे होते हैं जिनकी प्रतिक्रिया बजट पेश होने के पहले ही तैयार होती हैं। उद्योग जगत ने बजट को सकारात्मक बताया है। जबकि विपक्ष इसे ‘थोथा चना बाजे घना’ और ‘चुनावी जुमला बजट’ बता रहा है। बीजेपी ने इसे ‘सबका साथ, सबका विकास’ वाला बजट करार दिया है। चुनावी साल को देखते हुए जिसकी उम्मीद थी, वही हुआ। मोदी सरकार ने अपने छठे बजट में सैलरीड क्लास, पेंशनर्स, वरिष्ठ नागरिकों और छोटे व्यापारियों को बड़ा तोहफा दिया है। वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने टैक्स फ्री इनकम की सीमा बढ़ाकर दोगुनी कर दी। अब 2.5 लाख रुपये की जगह 5 लाख रुपये तक की आय पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। पांच लाख रुपये
तक की व्यक्तिगत आय पूरी तरह से कर मुक्त होगी और विभिन्न निवेश उपायों के साथ 6.50 लाख रुपये तक की व्यक्तिगत आय पर कोई कर नहीं देना होगा। व्यक्तिगत कर छूट का दायरा बढ़ने से तीन करोड़ करदाताओं को 18,500 करोड़ रुपये तक का कर लाभ मिलेगा। वेतनभोगी तबके के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन को 40,000 से बढ़ाकर 50,000 रुपये किया गया। इस टैक्स छूट का लाभ 3 करोड़ मध्यवर्गीय करदाताओं को मिलेगा। देश की जीडीपी में लगभग 17 प्रतिशत मेहनतकशों को रोजगार देने वाले कृषिक्षेत्र को इस आम बजट से कई बड़ी उम्मीदें थी। कम एमएसपी, मानसून की मार, कर्ज के बोझ और बाजार ने किसानों की इनकम दोगुनी करने के रास्ते को बहुत संकरा कर दिया है। ऐसे में गांव और किसान की चिन्ता भी बजट में साफ तौर पर दिखती है। मोदी सरकार ने किसानों के खाते में सीधे 6 हजार रुपये हर साल डालने की घोषणा की है।
इसका फायदा उन किसानों को मिलेगा जिनकी जमीन 2 हेक्टेयर से कम है। विपक्ष किसानों को दी जाने वाली सहायता राशि की घोषणा को ऊंट के मुंह में जीरा बताा रहा है। सहायता राशि भले ही कम हो लेकिन इस तरह की ठोस पहल पूर्व में नहीं हुई है। किसानों के लिए और बेहतर किया जा सकता था। ग्रामीण रोजगार पर ध्यान देते हुए मनरेगा के लिए 60 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। गौमाता के लिए कामधेनु योजना और राष्ट्रीय गोकुलु आयोग बनाने की घोषणा भी बजट में की गयी है। बजट में किसानों के साथ-साथ मजदूरों और श्रमिकों के लिए तोहफों का पिटारा खोल दिया है। बजट में मोदी सरकार ने तोहफों की बौछार के बावजूद कई सेल्फ गोल भी किये है। मोदी सरकार ने ग्रामीण भारत में व्याप्त असंतोष और समस्याओं को स्वीकार तो किया है लेकिन बजट में की गयी घोषणाएं अपर्याप्त हैं।
वहीं युवाओं के आगे मुंहबाये खड़ी बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिये कोई ठोस कदम बजट नहीं किया गया है। गरीबो को 10 प्रतिशत आरक्षण तो दिया लेकिन अपने चुनावी वादे के अनुसार युवाओं को नौकरिया देने में मोदी सरकार असफल रही है। अंतरिम बजट में रोजगार की बात को लेकर कोई साफ तस्वीर पेश नहीं की गयी है। मोदी सरकार का यह बजट-किसान, गांव, गरीब पर फोकस है। जिसे देर आयद, दुरुस्त आयद कहा जा सकता है। मोदी सरकार ने इस बजट के माध्यम से अपनी कारपोरेट-मित्र छवि से उबरने की कोशिश तो है ही, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी संजीवनी देने की बड़ी कोशिश है। सरकार ने आखिर महसूस कर लिया कि किसान, गरीब और गांव की हालत सुधारे बगैर अर्थव्यवस्था को सुधारा नहीं जा सकता है।
नोटबंदी और जीएसटी के बाद से ही उद्योग जगत और विशेषकर व्यापारी वर्ग मोदी सरकार से नाराज चल रहा है। जीएसटी को लेकर व्यापारी वर्ग में नाराजगी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। व्यापारी वर्ग को मोदी सरकार के आखिरी बजट से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन बजट में अर्थव्यवस्था के सभी वर्गों को सुविधाएं दी गई है लेकिन व्यापारी वर्ग को पूरी तरह नकार दिया गया है। व्यापारी देश की अर्थव्यवस्था में रीड की हड्डी का काम करते हैं। बजट को देख कर लगता है कि व्यापारी वर्ग की मांगों और परेशानियों की ओर से मोदी सरकार ने मुंह फेर लिया है। व्यापारी वर्ग की अनदेखी चुनावी वर्ष में मोदी सरकार को भारी पड़ सकती है।
आशीष वशिष्ठ
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