असम व मिजोरम के बीच जमीनी विवाद खूनी रूप धारण कर जाएगा, यह किसी ने सोचा भी नहीं था। दोनों राज्यों की पुलिस के बीच हुई झड़प में असम के पांच कर्मचारियों की मौत हो गई। घटना से केवल दो दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उत्तरी-पूर्वी राज्यों का दौरा किया था। गृह मंत्री इन राज्यों के मुख्य मंत्रियों को आपसी झगड़े, सद्भावना और अमन-शान्ति से निपटाने के लिए कहा था। यहां दो राज्यों की पुलिस के बीच गोलीबारी होना एक चिंताजनक बात है। जहां तक मिजोरम सरकार के सख्त रवैये को देखकर यह कहना कठिन है कि यह मामला जल्दी व आसानी से सुलझ जाएगा। यहां केंद्र सरकार को ठोस पहल कर मामले को बातचीत से सुलझाना होगा।
दरअसल नदियों के पानी, भाषा के आधार पर क्षेत्रों को बांटना और भूमि संबंधित मामलों सहित कई ऐसे मामले हैं जिनका समाधान आजादी के 75 साल बाद भी नहीं निकाला जा सका। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच नदियों के पानी का मामला आधी सदी से लटका हुआ है। इसी प्रकार तामिलनाडु, केरल और कर्नाटक भी कावेरी नदी के मामले में उलझे हुए हैं। केंद्र में आई कोई भी पार्टी इन मामलों का समाधान नहीं निकाल सकी, यहां तक कि केंद्र व राज्यों में एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद ये मामले लटकते रहे। फिलहाल यह सभी मामले सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों को बातचीत से समस्या हल करने के लिए समय भी दिया, लेकिन राजनीतिक हित ही रुकावट बनते रहे। पंजाब व हरियाणा की तरह कर्नाटक और तामिलनाडु में टकराव चल रहा है, लेकिन असम और मिजोरम का मामला तो टकराव की इंतहा है। केंद्र सरकार को ऐसे मामले के समाधान निकालने के लिए राजनीतिक स्तर पर सद्भावना का माहौल पैदा करने के प्रयास करने के साथ-साथ ठोस व स्पष्ट नीतियां बनानी चाहिएं। यह तब संभव है यदि राजनीतिक हितों को एक तरफ रखकर मामले का व्यवहारिक व तर्कसंगत समाधान निकालने की इच्छा शक्ति होगी, अन्यथा ऐसे मामले केंद्र के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं होंगे।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।