वैर विरोध में राजनीतिक सिद्धांतों का घात

Congress wins nine seats in Jaipur heritage and six seats in BJP in municipal elections

वैर विरोध का रूझान राजनीति में समय की बर्बादी का दूसरा नाम है, जिससे खासकर सरकार चला रही पार्टी विकास कार्यों में लगाने वाला समय यूं ही बर्बाद कर देती है। अगर सही तरह से गौर की जाए तो वैर विरोध करने वाले को निराशा भी होती है। कांग्रेस हाईकमान को इस बात का पछतावा है कि पंजाब के कांगे्रसी नेताओं ने पाकिस्तानी पत्रकार अरूशा आलम का मुद्दा बेजवह, क्यों उछाला? इस मामले को उछालने की शुरूआत पंजाब के गृहमंत्री सुखजिन्द्र सिंह रंधावा ने की। वह बहुत तेज तर्रार नेता हैं। मीडिया में बात उछालकर दूर हो जाते हैं और फिर बात बिगड़ जाने पर चुप्पी भी साधे रखते हैं। कांग्रेस हाईकमान को यह बात बहुत ही बुरी लगी कि पंजाब के एक मंत्री रंधावा की गलती ने न सिर्फ पूरी पार्टी को मुश्किल में डाल दिया बल्कि कैप्टन अमरेन्द्र बहुत ही तरीके से अपने खिलाफ चली गई बाजी आसानी से जीत गए।

मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी ने भी इस वैर विरोध को पसंद नहीं किया और रंधावा के साथ बात करने का बयान दे दिया। रंधावा आखिर अपनी ही पार्टी में घिर गए। वैसे भी कांग्रेस हाईकमान बड़बोलेपन को पसंद नहीं कर रही। हाईकमान के प्रभाव का परिणाम है कि नवजोत सिद्धू के शब्दों में तल्खी घटी है। बहुत बार अधिक बोलने वाले नेताओं के कारण पार्टियों को निराशा का सामना करना पड़ा है। इसलिए तेज तर्रार नेताओं के बावजूद पार्टियां बड़बोलेपन से बचना चाहती हैं। जहां तक पंजाब के विकास का संबंध है, ईमानदार व कर्मठ नेताओं की आवश्यकता है। आलोचना अच्छी है लेकिन बेवजह निंदा बहुत बुरी है। निंदा में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि लोगों की सेवा में समय लगाएं, अपने अवगुणों की तरफ ध्यान दिया जाए।

कई ऐसे भी राजनेता हैं जो अपनी पार्टी की खामियां गिनवाने में बिल्कुल भी संकोच नहीं करते। वह पार्टी में सुधार चाहते हैं हालांकि उन पर अनुशासन भंग करने भी आरोप लगते हैं। पार्टियों को भी चाहिए कि वह दूसरी पार्टियों की निंदा करने की बजाय अपनी खामियां गिनवाने वाले नेताओं की बातों पर ध्यान दें। अगर ऐसा हो जाए तो लोगों के मसले बहुत जल्द ही हल होने लगेंगे। स्वामी सुबरमणयम और प्रशांत किशोर जैसे नेता अपने साथ संबंधित पार्टियों की खामियां गिनवाने के कारण चर्चा में रहते हैं। महज शिगुफे छोड़ने वाले नेताओं का समय अब निकल चुका है। अब काम करने वालों को पार्टी व लोग पूछते हैं। निंदा करने वाला अपनी बदनामी से नहीं बच सकता, क्योंकि यह प्रकृति का उसूल है।

 

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