शेख सादी मस्जिद में नमाज पढ़ने जा रहे थे। इतने में उन्होंने देखा कि एक अमीर वहां नमाज पढ़ने आया है और उसके पैरों में हीरे-जवाहरात जड़ी जूतियां हैं। उन्हें ये भी पता चला कि वह अमीर वर्ष में एक ही बार नमाज पढ़ने आता है। शेख सादी मन ही मन बोले, ‘‘हे अल्लाह! मैं रोज नमाज पढ़ता हूँ, किंतु मेरे पास फटी-पुरानी जूतियां है। यह अमीर साल में एक ही बार नमाज पढ़ता है। लेकिन उसके पास रत्न-जड़ित जूतियां हैं। यह कैसा न्याय है?’’
शेख सादी यह सोच ही रहे थे कि वहां एक अपाहिज भी नमाज पढ़ने आ गया। उसके दोनों पैर नहीं थे, लेकिन उसने रोज नमाज अता करने में कभी कोताही नहीं की थी। यह देखकर शेख सादी ने तुरंत अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए कहा, ‘‘मुझ पर अल्लाह ने क्या कम इनायत की है, जो मुझे दो सही-सलामत पांव दिए हैं।’’
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