शुक्रवार आधी रात पंजाब के तरनतारन के सरहाली थाने को निशाना बनाते हुए राकेट लांचर से हमला किया गया। हमले से जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ, वहीं रॉकेट हमले की जिम्मेदारी प्रतिबंधित खालिस्तानी आतंकी संगठन सिक्ख फॉर जस्टिस ने ली है। इस वक्त पंजाब में असुरक्षा व दहशत का माहौल बना हुआ है। यहां बात लुधियाना के कोर्ट परिसर से शुरू की जा सकती है। एजेसियों ने मामले की जांच को बढ़ाते हुए एक साल बाद हरप्रीत नाम का एक व्यक्ति गिरफ्तार किया, लेकिन मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी से एक महीने पहले मोहाली में आरपीजी हमला हो गया। मोहाली का मामला सुलझा नहीं कि अब तरनतारन में हमला हो गया। यहां यह बताना जरूरी है कि पुलिस घटना के बाद मामले दर्ज कर कार्रवाई शुरू करती है और फिर आरोपियों की धरपकड़ शुरू हो जाती है।
यहां सवाल उठता है कि आखिर हमले क्यों नहीं रूक रहे? सत्ता संभाल रहे राजनेताओं में कमी है या पुलिस में कमी है? अकाली-भाजपा सरकार के कार्यकाल में लगातार दस वर्ष तक हमले जारी रहे। कांग्रेस ने 2017 में सत्ता संभाली तब भी हिंसक घटनाएं घटित हुई। अब आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन घटनाएं जारी हैं। वास्तव में सुरक्षा का मुद्दा केवल राजनीतिक पहचान तक सीमित कर दिया गया है, लेकिन आवश्यकता है सुरक्षा तंत्र मजबूत बनाने की। अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 को विश्व व्यापार केंद्र पर हुए आतंकी हमले के बाद आज तक 21 साल में भी कोई आतंकी घटना दोबारा घटित नहीं हुई। लंदन व मास्को में भी आतंकी हमले हुए, लेकिन उसके बाद वहां कोई घटना नहीं हुई इधर हमारे देश में ऐसा क्यों है कि साजिश के तहत हत्याएं व धमकियां देकर हमलावरों को लगातार सफलताएं मिल रही हैं।
वास्तव में सिस्टम की निरंतरता में कमी बड़ी समस्या है। एक हमला होता है तब तलाशी व चौकसी अभियान चलाया जाता है, कुछ हमलावर पकड़े जाते हैं, पुलिस को मीडिया में दबाव से राहत मिलती है तब हमलावर पुलिस की लापरवाही का फायदा उठाकर घटना को अंजाम दे देते हैं। विपक्ष द्वारा सरकार पर आरोप लगाए जाते हैं कि सरकार अपनी जिम्मेवारी नहीं निभा रही, लेकिन आरोप-प्रत्यारोप भी समस्या का समाधान नहीं। दरअसल, सुरक्षा को एक नियमित व निष्ठापूर्वक कार्य समझने की आवश्यकता है। सुरक्षा की चिंता चुनाव प्रचार वाले दिन जैसी होनी चाहिए, जब एक-एक वोट पर एक-एक गली में नेता की नजर होती है।
वैसे ही एक-एक व्यक्ति की सुरक्षा के लिए चिंता होनी चाहिए। पुलिस केवल राजनीतिक रैलियों, मंत्रियों के दौरे के लिए न हो। राज्य की जनसंख्या के हिसाब से पुलिस भर्ती होनी चाहिए। पुलिस को अवकाश व आराम भी मिले। मंत्री के दौरे पर पुलिस कर्मचारी टेंशन में होता है जो व्यवस्था को कोसता है। ऐसी परिस्थितियों में कोई कर्मचारी अपने कर्तव्य के बारे में कैसे सोचेगा? जब पुलिस कर्मचारी को आराम व अवकाश अन्य कर्मचारियों की तरह मिलेगा, उसे आदर-सम्मान मिलेगा तब उसमें जज्बा होगा कि उसकी चौकसी के कारण ही जनता सुरक्षित है तब हमलावर कभी भी सफल नहीं हो सकेंगे। आवश्यकता है कर्मचारियों में जज्बा पैदा की।
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