भारत वहीं गलतियां दोहराता रहा है, जो उसने पानीपत से लेकर अब तक करी हैं। दरअसल भारत की इस रक्षात्मक नीति ने जीत से ज्यादा हारों का ही सामना किया है। लिहाजा 2016 में पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकी शिविरों पर जो हमला बोला था, उनका सिलसिला पाक की जमीन पर जारी रखना होगा। जरूरत पड़े तो 1971 की लड़ाई की तरह पाक से सीधी लड़ाई भी लड़नी होगी। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमने उसे दोहराने की बजाय उसका उत्सव मनाने में ज्यादा समय गुजारा। इसी का परिणाम है कि पाक प्रायोजित हमलों का सिलसिला टूट नहीं रहा है। उरी हमले के तीन साल बाद कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने फिर कहर बरपाते हुए सीआरपीएफ के 37 जवानों के प्राण हर लिए। यह आत्मघाती हमला कश्मीर के ही आतंकी नागरिक आदिल अहमद डार ने किया है। हमला एक कार में करीब 300 किलो विस्फोटक लेकर जवानों से भरी बस से टकराकर किया गया।
जैश के अफजल गुरू स्ववॉड का भी नाम हमले में सामने आया है। यह अफजल गुरू वही है, जिसके अवशेष महबूबा मुफ्ती मांग रही हैं। जिससे उसके अवशेष कश्मीर की इस्लाम धर्मावलम्बी आबादी में घुमाकर लोकसभा चुनाव में राजनीतिक रोटियां सेंकी जा सकें ? विडंबना देखिए कि महबूबा जैसे लोग अपनी सुरक्षा के लिए सरंक्षण तो सुरक्षाबलों का लेते हैं, लेकिन पैरवी राष्ट्रविरोधी आतंकियों की करते हैं। हमले के बाद केंद्रीय मंत्रीमण्डल सुरक्षा समिति की बैठक में पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से सरकार ने दो अहम फैसले लिए हैं। इनमें एक भारत द्वारा पाक को मोस्ट फेवरड नेशन का दर्जा वापस लेना है और दूसरा सेना को पूर्ण स्वतंत्रता देना है। इन निर्णयों से यह उम्मीद जगी है कि अब नरेंद्र मोदी पाक के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करेंगे। यह अपनी जगह ठीक है कि यह आतंकी हमला बौखलाहट से भरी कायरता का पर्याय हैं, लेकिन शोक, आक्रोश एवं दुख की इस घड़ी में केवल और केवल घाटी की इस लड़ाई को निर्णायक लड़ाई में बदलने की जरूरत है। यह लड़ाई भी अब पाकिस्तान की जमीन पर होनी चाहिए।
क्योंकि हम अब तक अपनी जमीन पर लड़ाई लड़ते हुए 45000 से भी ज्यादा भारतीयों के प्राण गंवा चुके हैं और हमारे ही युवा आतंकी पाठशालाओं में प्रशिक्षित होकर बड़ी चुनौती बन गए हैं। दुर्भाग्य यह भी है कि जो अलगाववादी आतंकियों को शह देते हैं, उनकी सुरक्षा में भी सुरक्षाबल और स्थानीय पुलिस लगी है। अलगाववादियों के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के सबूत मिल जाने के बावजूद, हमने उन्हें नजरबंद तो किया, लेकिन कड़ी कानूनी कार्यवाही से वे अब तक बचे हुए हैं ? नतीजतन उनके हौसले बुलंद हैं। इन हलातों से साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक फलक पर भले ही कूटनीति के रंग दिखाने में सफल हों, लेकिन अपने देश की आंतरिक स्थिति को सुधारने और पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से उनकी रणनीति नाकाम ही रही है।
शोपियां में सेना की पत्थरबाजों से रक्षा में चलाई गोली के बदले मेजर आदित्य कुमार पर एफआईआर दर्ज होना और उनके परिजनों द्वारा अदालत के चक्कर काटना, इस बात का संकेत है कि आतंकवाद के विरुद्ध अभी तक हम कोई ठोस नीति ही नहीं बना पाए हैं। करीब 1000 पत्थरबाजों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की कार्रवाइयों ने सेना का मनोबल गिराने का काम किया है। ये दोनों कार्रवाइयां इसलिए हैरतअंगेज थीं, क्योंकि जिस पीडीपी की मुख्यमंत्री रहीं महबूबा मुफ्ती ने इस कार्यवाही को अंजाम दिया था, उस सरकार में भाजपा की भी भागीदारी थी। बावजूद राष्ट्रवाद की हुंकार भरने वाली भाजपा पीडीपी के समक्ष लाचार दिखाई दी थी।
सीमा पार और सीमा के भीतर से सैन्य ठिकानों पर आतंकी हमलों की सूची लगातार लंबी होती जा रही है। उरी, हंदवाड़ा, शोपियां, पुलवामा, तंगधार, कुपवाड़ा, पंपोर, श्रीनगर, सोपोर, राजौरी, बड़गाम, उरी और पठानकोट में हमलों में हमने अपने सैनिकों के रूप में बड़ी कीमत चुकाई है। पाकिस्तानी फौजियों द्वारा भारतीय सीमा के मेंढ़र सेक्टर में 250 मीटर अंदर घुसकर भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल के दो सैनिकों की हत्या स्तब्ध कर देने वाली घटना थी। पाक सैनिक भारतीय सैनिको के साथ आदिम बर्बरता दिखाते हुए उनके सिर भी काटकर ले गए थे। रिश्तों में सुधार की भारत की ओर से तामाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि वह शांति कायम रखने और निर्धारित शर्तों को मानने के लिए कतई गंभीर नहीं हैं। और हम हैं कि मुंहतोड़ जवाब देने की बजाए, मुंह ताक रहे हैं ? 30 जुलाई 2011 को शहीद जयपाल सिंह और देवेन्द्र सिंह के भी सिर काट ले गए थे। 8 जनवरी 2013 को हेमराज सिंह और सुधाकर सिंह की पाक सैनिकों ने पूंछ इलाके के ही मेंढर क्षेत्र में करीब आधा किलोमीटर भीतर घुसकर हत्या कर दी थी, फिर शहीद सैनिक हेमराज का सिर काट ले गए थे। 22 नवंबर 2016 को मांछिल में हुई मुठभेड़ में तीन जवान शहीद हुए थे।
इनमें से प्रभु सिंह का सिर काट लिया गया था। 28 अक्टूबर 2016 को शहीद जवान मंदीप सिंह के शव को मांछिल में क्षत-विक्षत किया था। कारगिल युद्ध के समय ऐसी ही हिंसक बर्बरता पाक सैनिकों ने कप्तान सौरभ कालिया के साथ बरती थी। यही नहीं सौरभ का शरीर क्षत-विक्षत करने के बाद शव बमुश्किल लौटाया था। युद्ध के समय भी अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक ऐसी वीभत्सता बरतने की इजाजत नहीं है। ये वारदातें युद्ध अपराध की श्रेणी में आती हैं। लेकिन भारत सरकार इस दिशा में कोई पहल नहीं करती और युद्ध अपराधी, निरपराधी ही बने रहते हैं। भारत की यह सहिष्णुता विकृत मानसिकता के पाक सैनिकों की क्रूर सोच को प्रोत्साहित करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए 56 इंची सीना तानकर हुंकारें तो खूब भरीं, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे।
मोदी ने सिंधू जल संधि पर विराम लगाने की पहल की थी। लेकिन कूटनीति के स्तर पर कोई अमल नहीं किया। यदि सिंधु नदी से पाक को दिया जाने वाला पानी बंद कर दिया जाए तो पाक की लाखों हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलेगा और पेय-जल का संकट भी पैदा होगा। लेकिन भारत यह कूटनीतिक जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है ? भारत ने पाकिस्तान से अनुकूल (फेवरेट) राष्ट्र का दर्जा वापस लेकर एक अच्छी पहल की है। इससे दुनिया से व्यापार के स्तर पर पाक की जो मजबूत साख बनी हुई है, इससे पाक की अंतरराष्ट्रीय साख पर बट्टा लगेगा। पाक के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के स्तर पर यह स्पष्ट किया गया था कि आतंकवाद और शांतिवर्ता एक साथ नहीं चल सकते हैं। लेकिन यह भी बीच-बीच में शुरू हो जाते हैं। भारत को अब वस्तुओं के आयात-निर्यात से लेकर समझौता रेल भी बंद कर देनी चाहिए।
हालांकि पाक को आर्थिक प्रतिबंध समझ नहीं आते हैं, इसलिए पाक को केवल ताकत की भाषा से सबक सिखाने की जरूरत है। 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी ने पाक के दो टुकड़े कर यही सबक सिखाया था। पाक की अर्थव्यस्था इस समय पूरी तरह चरमरा रही है, इसलिए यह गरम लोहे पर चोट करने का मुनासिब समय है। दरअसल अब पाक के साथ निर्णायक और बहुकोणीय लड़ाई लड़ने की जरूरत है। इसमें सेना, सीआरपीएफ, बीएसएफ और कश्मीर पुलिस को एक साथ समन्वय बिठाकर युद्ध लड़ना होगा ? पत्थरबाज यदि सामने आते हैं तो उन्हें भी न केवल सबक सिखाने की जरूरत है, बल्कि इस तरह के मामलों को मानवाधिकार दायरे से भी बाहर करना होगा। सुरक्षाबलों को पत्थरबाजों पर पैलेट गन दागने की इजाजत देनी होगी। इस हमले ने देशवासियों के सब्र का बांध तोड़ दिया है। इसलिए अब जरूरत है कि मोदी की काया में यदि वाकई 56 इंची सीना है, तो देश की आंखें अब इस सीने को देखने के लिए तरस रही हैं।
लेखक: प्रमोद भार्गव
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।