सालों पहले कृष्णदेव राय दक्षिण भारत के जाने-माने विजयनगर राज्य में राज किया करते थे। उनके साम्राज्य में हर कोई खुश था। अक्सर सम्राट कृष्णदेव अपनी प्रजा के हित में फैसले लेने के लिए बुद्धिमान तेनालीराम की राय लिया करते थे। तेनालीराम का दिमाग इतना तेज था कि वो हर मुसीबत का पलभर में समाधान निकाल लेते थे। एक दिन राजा कृष्णदेव के दरबार में एक व्यक्ति रोते हुए आया। उसने कहा, महाराज! मैं नामदेव पास की ही हवेली में काम करता हूं। मेरे मालिक ने मेरे साथ धोखा किया है। मुझे न्याय चाहिए। राजा कृष्णदेव ने उससे पूछा कि आखिर ऐसा क्या हुआ है तुम्हारे साथ। नामदेव ने राजा को बताया कि करीब पांच दिन पहले मैं अपने मालिक के साथ हवेली से पंचमुखी शिवजी के मंदिर गया था। तभी काफी तेज आंधी आने लगी। हम दोनों मंदिर के पीछे के हिस्से में कुछ देर के लिए रूक गए। तभी मेरी नजर एक मखमली लाल रंग के कपड़े पर पड़ी। मैंने अपने मालिक से इजाजत लेकर उसे उठाया। देखा तो वो एक छोटी पोटली थी, जिसके अंदर दो हीरे थे।
महाराज, वो हीरे मंदिर के पीछे वाले हिस्से में गिरे हुए थे, इसलिए कायदे से वो राज्य की संपत्ति थे। लेकिन, मेरे मालिक की नियत हीरे देखकर खराब हो गई थी। उन्होंने मुझे कहा कि अगर तुम किसी को नहीं बताओगे, तो आपस में हम दोनों एक-एक हीरा बांट लेते हैं। मेरे मन में भी लालस आ गया था, इसलिए मैंने इस बात के लिए हां कर दी। हवेली पहुंचते ही मैंने जब मालिक से अपना हीरा मांगा, तो उन्होंने उसे देने से मना कर दिया। मैंने सोच रखा था कि हीरा मिलते ही उसे बेचकर मैं नौकरी छोड़कर खुद का कुछ काम शुरू करूंगा, क्योंकि मालिक का रवैया मेरी तरफ अच्छा नहीं था। आगे नामदेव ने महाराज से दुखी आवाज में कहा कि मैंने दो दिनों तक मालिक को मनाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मुझे हीरा देने से साफ मना कर दिया है। अब आप ही मेरे साथ न्याय कीजिए।
नामदेव की बातें सुनते ही सम्राट ने तुरंत अपने सैनिकों को भेजकर अपने दरबार बुलाया। उसके आते ही जब महाराज कृष्णदेव ने हीरे के बारे उससे पूछताछ शुरू की। जवाब में उनसे कहा कि ये मेरा नौकर झूठ बोल रहा है। हां, ये सच है कि उस दिन हमें मंदिर के पीछे के हिस्से में हीरा मिला था। मैंने वो हीरे इसे राजकोष तक पहुंचाने के लिए कहा था। फिर दो दिन बाद जब मैंने इससे हीरे जमा करने की रसीद मांगी, तो यह घबरा गया और सीधे मेरे घर से निकलकर आपके पास आ गया। तब से यह सारी झूठी कहानी आपको सुना रहा है। तभी महाराज ने नामदेव के मालिक से पूछा कि क्या आपने इसे हीरे किसी के सामने दिए थे। नामदेव के मालिक ने कहा, ‘हां, महाराज मैंने अपने तीन नौकरों के सामने इसे हीरे की पोटली दी थी।’
कहानी से सीख
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