‘गु’ का मतलब होता है अंधकार और ‘रु’ का मतलब होता है प्रकाश। जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान रूपी दीपक जला दे वो सच्चा ‘गुरु’ होता है। गुरु बिना गति नहीं है। गुरु बिना संसार सागर तर नहीं सकता है। इसलिए गुरु, पीर, फकीर की हमेशा सुनों। वो यहां भी सुखी और आगे भी सुखी। उनके अंदर एक विश्वास रहता है, आत्मबल बढ़ता जाता है और आत्मबल की बजह से वो सफलता की सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं। संत, पीर, फकीर एक शिक्षक के तौर पर सबकों समझाते रहते हैं, अच्छे कर्म करो, भले कर्म करो, बुरे कर्मों को त्याग दो। जो सुनकर मान लेते हैं वो दोनों जहान की खुशियां पा लेते हैं।
-पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां।
मैं गौरवान्वित हूँ कि आज मेरा एक शिष्य महान गुरु है। शिक्षक दिवस की इस बेला पर मुझे अपने इस विद्यार्थी के गौरवमयी क्षण मेरे स्मृति पटल पर जीवंत हो उठे हैं। कुशाग्र बुद्धि, चमकदार आंखें, आकर्षक व्यक्तित्व , उच्च चरित्रवान, दूसरों के दुख को अपना समझने का एक नायाब हुनर था, मेरे इस शिष्य पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां मेंं। अर्से बाद अपने माता-पिता के घर जन्म लेने वाली इस हस्ती को लेकर जहां गांव के संत त्रिवेणी दास ने वचन किए वहीं इनके आकर्षक रूप को देखकर हर कोई मोहित हो उठता। अक्सर बड़े बुजुर्गों को बात करते सुनता कि आने वाले समय में यह महान आदमी बनेगा। स्कूली शिक्षा के दौरान भी गुरुजनों का आदर करना, दूरदराज से आने वाले विद्यार्थियों के लिए हर एक सुविधा उपलब्ध करवाने का इनमें विशेष जज्बा हुनर था।
विद्यालय के विद्यार्थियों में बहन भाई का अपार स्नेह रखने वाले मेरे शिष्य के उच्च चरित्र के बल पर हमारे विद्यालय में भाईचारा बना रहता। सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान तो इनका हुनर हर किसी को मंत्र मुग्ध कर लेता और ये गीत संगीत के हर कार्यक्रम में बढ़कर भाग लेते। गांव के लोग गुरु जी की सुरीली आवाज के इतने दीवाने थे कि बाहर से आने वाले कलाकारों को भी सुनने से इनकार कर देते और आज जब मैं इनकी आवाज के करोड़ों चहेते देखता हूँ तो मेरा दिल भी गर्व से खिल जाता है। गौरव महसूस करता हूँ कि आज जिन्हें में अपना अध्यात्मिक गुरु भी मानता हूँ की पावन शिक्षा पर चलते हुए नशा मुक्त समाज का निर्माण हो रहा है शिक्षक दिवस के इस अवसर पर मैं अपने इस आराध्य गुरु व शिष्य को नमन् करता हूँ।
–मास्टर रूप सिंह सिद्धू इन्सां (शिक्षक, पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां)।
आज भी देते हैं गुरु सा सम्मान
मास्टर रूप सिंह जी इन्सां बताते हैं कि पूज्य गुरु जी के महान संत बनने के बाद भी उनका गुरुजनों के प्रति आदर भाव आज भी बरकरार है। गुरु जी आज भी करोड़ों लोगों के बीच मुझे पूरा आदर सत्कार देते हैं । एक बार की बात है कि मैं थोड़ा बीमार हुआ तो गुरु जी को पता चला मुझे तत्काल सरसा बुलाया और मेरा इलाज करवाया और जब तक मैं स्वस्थ नहीं हुआ तब तक मुझे सरसा में ही रखा और पूरा स्वस्थ होने के बाद ही गांव लौटने दिया। गुरु जी के इस शिष्य धर्म को देखकर मेरा रोम रोम खिल उठा।
पापा कोच (पूज्य गुरु जी) की नई तकनीक से निखरा खेल
भारतीय वॉलीबॉल सीनियर टीम के सदस्य व अंडर 23 टीम के कप्तान रहे अमित इन्सां शिक्षक दिवस पर अपने पापा कोच का स्मरण करना नहीं भूलते। आज उन्होंने बताया कि स्कूल के दिनों में पापा कोच द्वारा बताई गई एकाग्रता, प्राणायाम, स्टैमिना मेंटेन करने का तरीका, खेल में तेजी रखने आदि के टिप्स द्वारा उनके खेल में जबरदस्त परिवर्तन आया। साथ ही खेल में हाइट का महत्व होने के चलते ताड़ासन करने का तरीका भी गुरु जी ने खुद ही बताया। अमित बताते हैं कि अस्थमा होने के चलते वे गेम में अपना शत प्रतिशत नहीं दे पाते थे। एक दिन पापा कोच द्वारा प्राणायाम का बताया गया विशेष तरीका जहां मेरे अस्थमा को खत्म कर गया वहीं खेल के उस मुकाम पर पहुंचा कि आज मैं अंडर 23 का कप्तान होने के अब बाद भारतीय सीनियर टीम का सदस्य हूँ।
ग्रामीण परिवेश में पलने बढ़ने वाली गुरप्रीत कौर जब शाह सतनाम जी गर्ल्स स्कूल में आई तो उसे खेल के बारे में दूर-दूर तक कोई जानकारी नहीं थी। एक दिन जब गुरुजी स्कूल के दौरे के दौरान विद्यार्थियों को खेल के टिप्स बता रहे थे तब गुरप्रीत ने भी खिलाड़ी बनने की अर्ज कर दी। इसके बाद से गुरप्रीत के शब्दों में गुरु वचन को ध्यान में रखकर जैवलिन का अभ्यास करने लगी। गुरु का बताया तरीका इतना जबरदस्त था कि मैं पहले ही साल में नेशनल विनर बनी। नेशनल विजेता बनने के बाद से ही मेरे पापा कोच (पूज्य गुरु जी) ने मेरी समस्त स्कूल फीस, डाइट खर्चा व इक्यूप्मेंट्स जिसमें मेरा एक जैवलिन लाखों रुपए में था का खर्च वहन किया।
गुरु जी ने मुझे प्राणायाम एकाग्रता और हूटिंग के बीच किस तरह से अपने खेल का प्रदर्शन करना है, के बारे में विस्तार से बताया। जैवलिन की सिर के पास से ऊंचाई और उसे बैलेंस करने का जो तरीका मुझे गुरुजी ने 1996 में सिखा दिया वह खेल जीवन के दौरान लगभग दशकभर बाद दूसरे लाड़ियों में देखने को मिला। मेरी हर उपलब्धि पर पापा कोच ने मुझे हीरे डायमंड के मेडल पहनाए। आज उनके बताए मार्ग व पापा कोच द्वारा दिए गए सहयोग का ही परिणाम है कि आज मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना स्थान बना पाई।
– गुरप्रीत कौर, अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, एथलेटिक्स।
शिक्षण काल के दौरान गुरुजी अक्सर हमारे स्कूल में आते और हमें अपना पाठ्यक्रम पूरा करने व उसे उत्तम तरीके से याद करने के बारे में अनेकों टिप्स बताते। गुरु जी कहते हैं कि पढ़ाई के दौरान एकाग्रता का विशेष महत्व है जब आप पाठ का पठन कर रहे हैं तो आपका ध्यान केवल आपके पाठ्यक्रम पर ही होना चाहिए। आस-पास क्या हो रहा है उसकी तरफ नहीं। पढ़ाई शुरू करने से पहले मेडिटेशन करें और पूरी एकाग्रता के साथ अपना शिक्षण कार्य पूरा करें। गुरु जी के बताए इसी टिप्स को आधार बनाकर मैंने नेट जेआरएफ, पीएचडी शिक्षा की डिग्रियां पूरी की और इतना ही नहीं नेट जेआरएफ स्कॉलरशिप गुरु वचनों पर चलते हुए मैंने एक जरूरतमंद के लिए छोड़ दी। जब मैं शिक्षक के रूप में गुरु जी के बताए टिप्स अपने विद्यार्थियों को बताती हूं तो कई बार वे हैरान भी होते हैं कि पढ़ाई का इतना मजेदार तरीका आपको कैसे आता है। विद्यार्थी को अपने जीवन में गुरु के प्रति सम्मान और अनुशासन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
-डॉ. राजविंदर कौर, असिस्टेंट प्रोफेसर।
विद्यार्थी जीवन को संवारने का काम एक शिक्षक करता है। भारत को विश्व गुरु बनाने वाले ऋषि-मुनियों के अथाह ज्ञान समुंदर को पाने के लिए अनुशासित शिष्यों की कठोर तपस्या हमारी गुरूकुल पद्धति को महान बनाती है। नालंदा और तक्षशिला के विश्वविद्यालय देश की पहचान बने। ऋषि मुनियों ने इन गुरूकुलों में शिक्षा का ऐसा उजियारा फैलाया कि साधारण से दिखने वाले बालक चक्रवर्ती सम्राट बने तो आर्यभट्ट जैसे विद्वान। धर्म संस्कार योग और ध्यान क्रिया व उनके अनुभवों से कि यह शिक्षा पद्धति आमजन के लिए आश्चर्य से भरी थी। शनै: शनै: हमारी शिक्षा की पद्धति बदलती रही पर गुरु शिष्य का संबंध बराबर बना रहा। पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से शिष्यों ने शिक्षा व संस्कारों का ज्ञान प्राप्त किया। खेल की बारीकियां सीखी। गुरु की पावन विद्या से ऐसा कोई भी क्षेत्र बच नहीं पाया जिसकी विद्या प्राप्त कर शिष्यों ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम न कमाया हो।
अद्भुत विद्या कौशल से भरे गुरु के बताए ज्ञान के बारे में सभी विद्यार्थियों का एक ही सुर में कहना हैं की अद्भुत था गुरु का बताया वह ज्ञान जो हमारी व्यवस्था में आज सामने आया है वह गुरु ने कई वर्षों पूर्व हमें बता दिया था। गुरु: साक्षात परब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
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