आज से दो-तीन दशक पूर्व भी मीडिया में ऐसे लेख व समाचार पढ़ने को मिल जाते थे कि ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह ने करवाया है। किसी ने यहां मंदिर होने का दावा किया है, जिसकी चर्चा हो रही है और इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की है। अदालत ने याचिककर्ता की याचिका पर निराशा व्यक्त की और अदालत ने यहां तक कह दिया कि पीआईएल का दुरुपयोग न करें। अदालत ने यह भी कहा कि यदि अदालत में आना है तो पहले विषय की पूरी खोज करो और फिर आओ। माननीय जज साहब की भावना और परेशानी को समझा जा सकता है। वास्तव में देश का बहुत बड़ा ढांचा है जो हजारों सालों के इतिहास, संस्थाओं, संगठनों, इमारतों, कला और संस्कृति का कागजी रिकॉर्ड रखता है। देश की सैकड़ों यूनिवर्सिटियों में हजारों विद्वानों के जांच कार्य, पुस्तकें हैं जो इतिहास और ऐतिहासिक इमारतों के पुख्ता, विश्लेषणात्मक, संतुलित और तथ्यों पर आधारित जानिकारियों से भरपूर हैं।
मुगलों की अत्याचारी कार्रवाईयों की आलोचना भी इस बात का प्रमाण है कि अलोचक यह मान रहे हैं कि देश में मुगल हकूमत रही है। मुगल बादशाहों ने महलों, मकबरों, कुओं, बाग, बगीचों, बाजारों और कार्यालयों का निर्माण भी करवाया और यह इमारतें अपनी भवन निर्माण कला के लिए प्रसिद्ध भी हैं। इनकी ऐतिहासिक महत्वता के साथ-साथ कलात्मक इमारतों की खूबसूरती केवल भारत तक ही सीमित नहीं बल्कि अन्य देशों में अपनी ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण ढहने की कगार पर खंडहर बन चुकी इमारतों को संभाला गया है। भले ही उनके साथ कड़वी यादें ही क्यों न जुड़ी हों। मुगल राज अच्छे या बुरे दौर का प्रतीक बना यह अलग विषय है लेकिन इमारतों की प्रामाणिकता पर संदेह करना देश के इतिहास की प्रामाणिकता को धुंधला करना है।
यूरोप और अमेरिका आधुनिकता, लोकतंत्र और मानवीय मूल्यों की वजह से विकास कर रहे हैं, लेकिन अफसोस हमारे देश में अभी भी इतिहास से छेड़छाड़ में ही समय बर्बाद किया जा रहा है। भले ही महान अशोक सम्राट, महाराना प्रताप, शिवाजी, सिख गुरू साहिबान, बाबा बन्दा सिंह बहादुर हमारे आदर्श हैं लेकिन इतिहास को क्रमबद्ध तरीके से तैयार करते वक्त विरोधी और नकारात्मक तानाशाहों का वर्णन करते रहना इतिहास का अहम हिस्सा होता है। युद्ध में बहादुर योद्धाओं की प्रशंसा शक्तिशाली शत्रुओं के जिक्र के साथ ही मुकम्मल होती है। बेहतर होगा, यदि इतिहास से छेड़छाड़ करने की बजाय प्रदूषण, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा के ढांचें की कमियों को दूर करने के लिए संवैधनिक संस्थाओं का सहारा लिया जाए।
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