स्ांशय में वार्ता

Tks, Steadyal

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन के बीच सिंगापुर में होने वाली शिखर वार्ता पर पुरी दुनिया टकटकी लगाए हुए है। कोरिया प्रायद्वीप के अमन व विश्व शांति के लिहाज सेदोनों नेताओं के बीच होने वाली यह वार्ता काफी अहम मानी जा रही है। कहना गलत नहीं होगा कि उत्सुक्ता और विस्मय से भरपुर इस मेराथन वार्ता में गर्मजोशी के साथ-साथ, डोनाल्ड ट्रंप व किम जोंग-उन काबहुत कुछ दाव पर लगा है।
वर्षों तक बाहरी दुनिया से अलग-थलग रहने वाले किम जोंग-उन अब एक के बाद एक बड़े नेताओं से मिल रहे हैं। पहले चीन, फिर दक्षिण कोरिया और फिर दुबारा चीन की यात्रा करने वाले किम जोंग रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मिलेगे। पुतिन ने उन्हें सितंबर में व्लाइिवोस्टॉक (चीन की सीमा से सटे शहर) में मिलने का न्योता भेजा है।सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद ने भी उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग का दौरा करने की बात कही है।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर सिंगापुर शिखर वार्ता सफल रही तो वे उत्तर कोरियाई शासक को अमरीका आने का न्यौता देंगे। संभव है कि किम से अगली मुलाकात वाइट हाउस में हो। हमेशा अपने देश की सीमा तक सिमटे रहने वाले किम जोंग-उन का यकायक वैश्विक नेता के रूप में उभरना कई मायनों में अहम है।
कंही ऐसा तो नहीं कि किम अमेरीका पर एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे हों या फिर वे अमेरिका को दिखाना चाहते हैं कि अब वे अकेले नहीं है। चीन,रूस और सीरिया जैसे राष्ट्र उनके साथ हैं। सारे प्रश्न और सारे संदेह किम जोंग को लेकर ही हो ऐसा भी नहीं है। प्रश्न अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को लेकर भी उठ रहे हैं। साल भर से उत्तर कोरिया को धमकियां दे रहे ट्रंप बिना किसी शर्त के आमने -सामने की मुलाकात को क्योंकि तैयार हो गए?
दरअसल दोनों ही नेताओं के लिए यह शिखर वार्ता उनके राजनीतिक जीवन के लिए एक संजिवनी की तरह है। ट्रंप की लोकप्रियता देश के भीतर कम हुई है। उनकी सरकार के पास दिखाने के लिए बहुत कम उपलब्धियां है। वह चाहते हैं कि अगर वे उत्तर कोरिया को परमाणु कार्यक्रम से हटने के लिए राजी कर लेते हैं तो यह अतंरराष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसी घटना होगी जिसकी ध्वनी अगले कई वर्षोें तक सुनाई देगी। इस शिखर वार्ता के दौरान अगर वे कोरिया समस्या का स्थाई समाधान करने या उस दिशा में कोई महत्वपूर्ण पहल करने में सफल हो पाते हैं तो उनका कद न केवल अमेरिका के भीतर बल्कि वैश्विक जगत में बहुत ऊंचा हो जाएगा। कुछ ऐसी ही स्थिति किम जोंग की है। मानवाधिकारों के हनन को लेकर वे अक्सर अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का शिकार बनते रहे हैं।किम भी दक्षिण कोरिया की तरह अपने देश के नागरिकों को भी बेहतर जीवन सुविधाए देना चाहते हैं। यह तभी संभव है जब उत्तर कोरिया पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटे। किम चाहते हैंकि राष्ट्रपति ट्रंप के साथ वार्ता के दौरान प्रतिबंधों के मुद्दे पर बात हो। अमेरीका के सामने फिर से कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु विहीन करने और मिसाइल परीक्षण ना करने की बात रखकर किम जोंग प्रतिबंधों में ढील चाहते हैं। वे अमेरिका के साथ ऐसी डील चाहते हंै, जो उनके देश की अर्थव्यवस्था एवं 2.5 करोड़ नागरिकों के हित मे हो।

तो क्या उत्तरकोरिया को लाइन पर लाने के लिए ट्रंप ने दबाव की जो नीति अपना रखी थी उसमे वे सफल रहे हैं। अगर ट्रंप ऐसा सोचते है तो यह केवल उनका वहम मात्र होगा। सच तो यह है कि नई राजनयिक रणनीति केवल ताकत या दबाव के आधार पर नहीं बल्कि आपसी जरूरतों से भी पैदा हुई है।उत्तर कोरिया और अमेरीका के बीच एतिहासिक वार्ता के बाद क्या होगा है यह देखना भी दिलचस्प होगा।

किम की दक्षिण कोरिया की यात्रा के बाद कोरियाई प्रायद्वीप में स्थिति तेजी से बदली है। किम जोंग-उन और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन की ऐतिहासिक मुलाकात के सप्ताह भर पहले ही उत्तर कोरिया ने कहा था कि वो अपने परमाणु परीक्षण और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर रोक लगा रहा है। दक्षिण कोरिया और अमरीकी राष्ट्रपति सहित दुनिया भर के शांतिवादी विचारकों ने किम के इस कदम का स्वागत किया था। लेकिन प्रश्न यह पैदा होता है कि अपने तुनकमिजाजी स्वभाव के चलते पूरी दुनिया से टकराने का होसला रखने वाले किम जोंग-उन ने मिसाइल कार्यक्रम से हटने का निर्णय क्यों लिया। एक प्रश्न यह भी उठता है कि हमेशा अपने खोल में छिपे रहने वाले इस सनकी शासक को घर से बाहर निकलने की आवश्यकता क्यों पड़ी। जापान की ओर बार-बार मिसाइल दागने वाले किम जोंग ने जापान यात्रा के संकेत भी दिये हैं। ऐसे में इस संदेह से इंनकार नहीं किया जा सकता है कि वह अमेरिका से होने वाली वार्तालाप की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा हो।

अनुमान तो यह भी लगाया जा रहा है कि उत्तर कोरिया की दिन प्रतिदिन कमजोर होती आर्थिक स्थिति ने भी किम को मिसाइल कार्यक्रम से हटने के लिए बाध्य किया है। इस तथ्य से इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योेंकि पिछले दिनों उत्तर कोरिया के एक मात्र भरोसेमंद सहयोगी चीन ने भी अमेरिका, यूके तथा फ्रांस के साथ मिलकर प्रतिबंध प्रस्तावों का समर्थन करने की बात कही थी। कहा तो यह भी जा रहा है कि परमाणु और मिसाइल ताकत हासिल करने के बाद किम जोंग अब अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगने लगा है कि उन्होंने उत्तर कोरिया के चारों और एक ऐसा मजबूत रक्षा कवच निर्मित कर लिया है जिसे अमेरिका और उसके सहयोगी देश चाहकर भी नहीं भेद सकेगे। सामरिक ताकत हासिल करने के बाद अब वे उत्तर कोरिया को आर्थिक ताकत बनाना चाहते हैं, इसके लिए जरूरी है कि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंध हटे।पिछले दिनों वे कह भी चूके हैं कि परमाणु परीक्षण रोकने के बाद अब वे उत्तरकोरिया को एक शक्तिशाली समाजवादी अर्थवयवस्था बनाने की दिशा में काम करेगे। सच में अगर किम ऐसा चाहते हैं तो उन्हेंसहयोगी राष्ट्रों के साथ गठजोड़ की रणनीति के अलावा पुराने मित्रों को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। ऐसे में चीन किम जोंग के लिए सबसे अहम होगा। वह उत्तर कोरिया का पुराना व्यापारिक साझेदार रहा है। वे चीनी राष्ट्रपति से दो बार मिल चुके हैं। दोनों बार चर्चा का मुख्य मुद्दा व्यापार ही रहा है।

लेकिन ऐसा नहीं है कि इस दौरान सभी कुछ उत्तर कोरिया के पक्ष में रहा है। एक वक्त ऐसा भी आया जब अमरीका के उपराष्ट्रपति माइकपेंस पर उत्तर कोरिया के उपविदेश मंत्री की टिप्पणी के कारण प्रस्तावित वार्ता रद्द होने की कगार तक पहुंच चुकी थी। लेकिन किम ने तो जैसे तय ही कर रखा था कि किसी भी किमत पर उनकी ट्रंप के साथ वार्ता हो। उन्होंने दोनों देशों के बीच सद्भाव का वातारण बनाने के लिए अमरीकी कैदियों को रिहा करने में गुरेज नहीं किया। जिस वक्त उन्होंने दक्षिण कोरिया के विंटर ओलिंपिंक में उत्तर कोरिया की टीम भेजी थी उसी वक्त यह साफ हो गया था किम जोंग के दिमाग में कुछ नया चल रहा है। वे जानते थे कि जब तक वे दक्षिण कोरिया के साथ वार्ता कर सकारात्मक संकेत नहीं देगे अमरीका किसी भी सूरत में उत्तर कोरिया से बातचीत के लिए तैयार नहीं होगा।

शिखर वार्ता के जरिये किम एक साथ कई चीजों को साधना चाहते हैं। वे जानते हैं कि ट्रंप परमाणु हथियारों को छोड़ने से कम किसी बात के लिए राजी नहीं होंगे। क्यों कि ट्रंप शुरू से ही कहते आए है कि परमाणु हथियार छोड़ना ही उत्तर कोरिया के पास एक मात्र विकल्प है। ऐसे में अगर वार्ता पटरी से उतरती है तो इसके लिए ट्रंप उतरदायी होंगे न कि किम। द्वितीय, अगर दोनों नेताओं की वार्ता सीरे नहीं चढ पाती है तो अमेरिका के पास क्या विक्ल्प बचेगा? क्या अमेरिका लीबिया की तरह उत्तर कोरिया में भी सैन्य कार्रवाई करेगा? क्या किम का हसर भी कर्नल गद्दाफी जैसा होगा। रणनीति खेल में माहिर हो चुके किम वार्ता के लिए माहोल तैयार कर अमेरीका की सैन्य कोशिशों को पहले ही टाल देना चाहते हैं। फिर सबसे बड़ी बात यह है कि परमाणु परीक्षणों पर बैन की भी अपनी एक सीमा है। दूसरे, किम कभी भी इन हथियारों को समाप्त करने के लिए राजी नहीं होगें।वे जानते है कि यही हथियार उनके देश की सुरक्षा की गांरटी है। तब फिर, डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग-उन के बीच होने वाली शिखर वार्ता का अंत किस रूप में होगा यह अगले कुछ घंटों में स्पष्ट हो सकेगा।

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