भारत सरकार का हाल ही में अफगानिस्तान में तालिबान सरकार से बातचीत के लिए विदेश मंत्रालाय का एक दल संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में जा रहा है। जब से अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता पर काबिज हुआ है भारत के दूतावास एवं महावाणिज्य दूतावास क्रमश कंधार एवं मजार-ए-शरीफ में बंद पड़े हैं। तालिबान से बातचीत का उद्देश्य मानवीय सहायता के विषय पर है। भारत अफगान जनता की तकलीफों को देखते हुए उन्हें दवाईयां, अनाज, ईलाज मुहैया करवा रहा है। अभी भी भारत का रवैया यही है कि तालिबान के साथ रिश्ते बढ़ाने से अच्छा है लम्बे समय तक इंतजार कर तालिबान को पहचान लिया जाए। भारत की नीति वाजिब है चूंकि तालिबान जनता का विश्वास जीतकर सत्ता में नहीं आया है।
भारत के साथ पिछली तालिबान सरकार का रवैया बेहद कष्टदायक रहा है। जब भारत के विमान का अपहरण कर आतंकियों ने 1999 में कंधार में खड़ा कर लिया था और पांच आतंकियों के बदले भारत के नागरिकों को छोड़ा गया था, तब एक भारतीय को अपहरणकर्ताओं ने गोली मार दी थी व एक अन्य यात्री अपहरण की वजह से गंभीर घायल हो गया था। उक्त अपराध में तालिबान सरकार ने अपहर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी। हिंसा के दौर में अफगानिस्तान में बहुत से भारतीय इंजीनियरों एवं कामगारों को तालिबान मार चुका है जबकि वो वहां अफगानिस्तान के निर्माण में अपना सहयोग दे रहे थे। अभी भी जब तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया तब अफगान अल्पसंख्यक हिन्दू व सिक्खों ने अफगानिस्तान छोड़ भारत व अन्य देशों में शरण ली है। स्पष्ट है भले ही तालिबान अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं के मामलों में अपने में बदलाव लाने की बातें कर रहा है, लेकिन उनके अपने नागरिक उनसे भयभीत हो देश छोड़ रहे हैं।
तालिबान से हिचकिचाते हुए ही सही फिर भी भारत को अफगान लोगों से हमदर्दी है, भारत चाहता है कि अफगानिस्तान एक शांत एवं खुशहाल देश बने। तालिबान को चाहिए होगा कि वह पहले की तरह पाकिस्तानी कठपुतली की तरह व्यवहार नहीं करे चूंकि अभी तक तालिबान ने एक आजाद अफगान होने का एहसास करवाया है, भविष्य में भी वह अगर इस नीति पर कायम रहता है और शांतिपूर्ण कार्यों को आगे बढ़ाते हुए अफगानिस्तान की शांति एवं विकास को तरजीह देता है तब शायद भविष्य में भारत या अन्य लोकतांत्रिक देश सीमित ही सही परन्तु अफगानिस्तान से सम्बन्ध बनाए रखना चाहेंगे। भारत की सदैव नीति रही है कि वह किसी भी देश के आंतरिक मामलों में कोई दखलदांजी नहीं करता, लेकिन अगर देश खासकर अगर वह पड़ोसी है और उसका असर भारत के आंतरिक हिस्सों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पड़ता है तब इस पर भारत जरूर कुछ न कुछ कदम उठाता है। अफगानिस्तान अभी जिस दौर में है भारत ही नहीं दुनिया भर को अफगानियों की मदद को आगे आना चाहिए।
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