केन्द्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान 20 लाख करोड़ के वित्तीय पैकेज के तहत प्रवासी मजदूरों के लिए भी कुछ घोषणाएं की हैं। बिना राशन कार्ड वाले मजदूरों को दो माह का राशन मुफ्त देने की बात कही है। मनरेगा की मजदूरी में पहले ही कुछ विस्तार किया गया है। यदि देखा जाए तब इस वक्त सबसे दु:खद दास्तां प्रवासी मजदूरों की है, जो देश भर के विभिन्न राज्यों से हजारों किलोमीटर दूर अपने घरों के लिए वापिस पैदल, साइकिल पर या ऑटो-रिक्शा के द्वारा चल पड़े हैं। एक हजार किलोमीटर से अधिक यात्रा करना बेहद कठिन है। दर्जनों मजदूरों की सड़क हादसों, बीमार होने या गर्मी के कारण मौत हो गई है। भले ही केंद्र व राज्य सरकारों ने मजदूरों की वापिसी के लिए रेलगाड़ियों का प्रबंध किया है लेकिन सोशल डिस्टैसिंग के नियम की पालना करने में अभी मजदूरों को कई दिन लग जाएंगे।
रेलवे स्टेशनों पर भीड़ भी है और एक दूसरे से आगे निकलने की जल्दबाजी भी है। इसीलिए रेल का इंतजार करने की बजाय पैदल चलने वालों या साइकिल सवारों की भी अपनी मजबूरी है। इतना ही नहीं प्रवासी मजदूरों को रास्तों में खाना बनाने की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मजदूरों के लिए सरकार को अभी और बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर मजदूरों के रास्ते में ठहराव का प्रबंध और खाने-पीने की व्यवस्था करनी होगी। नि:संदेह केंद्र सरकार द्वारा उद्योगों व कारोबार को मजबूत करने के लिए अच्छी घोषणाएं की गई हैं, लेकिन मजदूरों के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सरकार ने एक जून से एक राष्ट्रीय राशन कार्ड बनाने की घोषणा की है लेकिन रास्तों में चल रहे लाखों मजदूरों के लिए ऐसे निर्णयों का लाभ ले पाना अभी तकनीकी तौर पर आसान नहीं होगा। इन मजदूरों को मगनरेगा का भी कोई लाभ नहीं मिलेगा। इस मामले में केंद्र व राज्यों की भागीदारी बढ़ाकर मजदूरों को राहत दे सकता है। मजदूरों के लिए राज्यों को सीधा फंड दिया जाना चाहिए।
राजनीतिक नफे-नुक्सान के चक्रव्यू में राज्य सरकार विशेष रूप से विपक्षी पार्टियों की सरकारों वाले राज्य मजदूरों के मामले को केंद्र सरकार का मामला कहकर चुप्पी साध लेते हैं। गृह राज्यों में जाने के लिए मजदूरों को कई राज्य पार करने पड़ते हैं इसीलिए पैदल, साइकिल पर रास्तों में जा रहे मजदूर केंद्र व राज्य की राजनीतिक कशमकश में लावारिस होकर रह गए। मई महीने में मौसम में बढ़ रही तपिश, रात को ठहरने का कोई प्रबंध न होना, भूखे पेट रहना मजबूत अर्थव्यवस्था जैसे आदर्शों की सफलता में बड़ी रुकावट है। केन्द्र व राज्य दोनों ही सरकारों को प्रवास से घर लौट रहे मजदूरों की पीड़ाजनक दास्तां देखनी व समझनी चाहिए, इनकी घर वापिसी को तेज, सुखद व सफल बनाना चाहिए।
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