बरनावा/सरसा। (सच कहूँ न्यूज) सच्चे दाता रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाया कि खुशी, प्रसन्नता, आनंद, परमानंद आज के युग में ज्यादातर लोगों के लिए एक सपना सा बनते जा रहे हैं। सपने के मानिंद हो गया है। इतना बिजी है इन्सान, इतना परेशान है इन्सान, इतना टैंशन में डूबा है, ये भूल सा गया है कि खुशियां भी कोई चीज होती हैं। याद नहीं आता उसे कि खुलके कब हँसा था। खानापूर्ति लोग करते रहते हैं। ऊपर-ऊपर से लोग ठहाके भी लगाते रहते हैं। लोगों ने बड़ी कोशिश भी की, अच्छा प्रयास किया, कई शहरों में इसके क्लब बने हैं। वो सामने खड़े होकर अजीबोगरीब मुँह करके या हा…हा…हा…, हू…हू… करते हैं ताकि दूसरे लोग भी उनको देखकर हँसें, नेच्युरली किसी को हँसता देखकर थोड़ा हँसी आ जाती है।
लेकिन जब तक अन्दर खुशी नहीं होगी, वो बाहर की खुशी वो मायने नहीं रखती। अन्दर की खुशी, आत्मिक खुशी आज गायब सी होती जा रही है। आत्मिक शान्ति या आत्मिक प्रसन्नता लाने के लिए परमपिता शाह सतनाम जी, शाह मस्तान जी दाता रहबर ने यह सच्चा सौदा बनाया, चलाया कि टैंशन फ्री रहो, दिमाग पर बोझ ना लो, ज्यादा सोचो ना। चलते, बैठके, लेटके, काम धंधा करते ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, ख़ुदा, रब्ब को याद करते रहो। तो आप अपने गम को गलत कर पाएंगे, टैंशन फ्री हो पाएंगे, संतुष्टि अंदर ले आएंगे, तभी मालिक की कृपा दृष्टि के काबिल आप बन पाएंगे। तभी सच्ची प्रसन्नता, सच्चे आनंद का अनुभव होगा। वरना तो खोखली हँसियां हो गर्इं हैं, दिखावा हो गया है या फिर गंदी सोच के साथ लोग किसी को देखकर हँसते हैं, मुस्कुराते हैं। अदरवाइज (अन्यथा) नेच्युरली (कुदरती) मुस्कुराना बड़ा मुश्किल हो गया है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि काम-धंधे का बोझ है। बिजनेस-व्यापार का बोझ है। बेरोजगारी का बोझ है और इन्सान के अंदर इन सारी चीजों ने एक तूफान खड़ा कर रखा है। बचपन से लगता है, कपड़ा, लत्ता, खिलौना कहीं दिखता है तो उसका बोझ महसूस करता है कि मेरे पास क्यों नहीं।
तभी सच्ची प्रसन्नता, सच्चे आनंद का अनुभव होगा। वरना तो खोखली हँसियां हो गर्इं हैं, दिखावा हो गया है या फिर गंदी सोच के साथ लोग किसी को देखकर हँसते हैं, मुस्कुराते हैं। अदरवाइज (अन्यथा) नेच्युरली (कुदरती) मुस्कुराना बड़ा मुश्किल हो गया है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि काम-धंधे का बोझ है। बिजनेस-व्यापार का बोझ है। बेरोजगारी का बोझ है और इन्सान के अंदर इन सारी चीजों ने एक तूफान खड़ा कर रखा है। बचपन से लगता है, कपड़ा, लत्ता, खिलौना कहीं दिखता है तो उसका बोझ महसूस करता है कि मेरे पास क्यों नहीं। धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, इच्छाएं भी बढ़ती जाती हैं तो क्या बचपन से ही अपने आप को कंट्रोल करने का तरीका सीखना चाहिए।
आप किसी भी कम्पयूटर को, किसी भी लैपटॉप को, किसी भी फोन को सीख सकते हैं, कंट्रोल कर सकते हैं। लेकिन क्या कभी आपने आप को कंट्रोल करने के लिए टाइम दिया है। आपका जो बिना वजह का गुस्सा है, आपकी जो बिना वजह की इगो है, जो कलैश होती है तो झगड़े होते हैं और अगर वो सही हो जाती है तो आप खुश हो जाते हैं। कभी आपने अपने अंदर की बुराइयों को साफ करने के लिए सोचा है, थोड़ा सा भी टाइम दिया है कि भई हाँ, मेरे अंदर फलां-फलां आदत बुरी है, ये-ये चीज मुझे नहीं करनी है जिंदगी में, एक बार हो गई कोई बात नहीं, आगे से ना होने पाए। क्या आपने कभी महसूस किया है अपने खुद के बारे में। दुनिया, जहान में आपको सब नजर आता है, फलां आदमी में ये कमी है, इसको बोलना नहीं आता, इसका दिमाग सही नहीं है, ये अहंकारी है, ये घमंडी है, ये तो चुगली करने वाला निंदक है।
पर क्या आपने कभी अपने दिलोदिमाग में सोचा है कि आप कैसे हैं, जरूर सोचा करें। कम से कम पाँच-दस मिनट सुबह-शाम 24 घंटे में कभी भी। सिर्फ और सिर्फ और सिर्फ अपने लिए दिया करो। एकांत में बैठो। पहले पानी पीओ, सारी सोच को छोड़ने की कोशिश करो और फिर एकाग्रता के साथ, सुमिरन के साथ सोचो कि आपमें कौन सी आदतें अच्छी हैं, जिनको और आगे लेकर चलो और जो बुरी हैं उन्हें छोड़ दो। बजाय कोई आपका साथी आपको टोके, आपको बुरा लगेगा, आपका माँ-बाप, बहन, भाई, दादा कोई भी टोके आपको, आज के दौर में ऐसा समय आ गया है, खानपान ऐसा हो गया है कि गुरु, पीर, फकीर भी टोक दे तो उसकी भी लोग मरोड़ी खा जाते हैं, बाकियों की तो बात छोड़ो। तो कोई आपको टोके या रोके, क्यों ना आप पाँच-दस मिनट देंगे अपने लिए और फिर अपने आप ही उस आदत को छोड़ दें।
100 पर्सेंट हम गारंटी देते हैं, जो मालिक का नाम लेने वाले हैं वो तो 100 पर्सेंट जान जाएंगे कि आपको कौन सी आदतें लगी हुर्इं हैं। नार्मल इन्सान जो सुन रहे हैं, आप पानी पीजिये, थोड़ा सा ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु को याद कीजिये, यकीन मानों आपको भी फीलिंग आएगी कि हाँ, ये मेरी आदत गंदी है, ये मेरी आदत अच्छी है। करना बड़ा आसान है, फिर उस पर अमल करना जरूरी है, कि हाँ इनको छोड़ना है, इनको अपनाना है। तो आप करके देखेंगे, सुखी आप रहेंगे, परिवार रहेगा, समाज रहेगा तो देश अपने आप ही जुड़ गया। तो अपनी सोच के बारे में, अपनी आदतों के बारे में सोचना अपने आप में बेमिसाल बात है। छोटी बात नहीं है। बताइए कौन सा ऐसा बैठा है, सामने बैठे हैं आप आॅनलाइन, यहां जो डेली शाम को 10 मिनट अपने लिए देता हो। एक हाथ खड़ा हुआ है, पक्का पता नहीं बीच-बचालÞा सा है।
डेली, रोजाना, सिर्फ दस मिनट अपने बारे में, ख़ुद के बारे में, भजन-सुमिरन नहीं, हाथ नीचे हो गया। तो कहने का मतलब एक भी नहीं है। बड़ा मुश्किल है ये चीज, तो फॉलो करना शुरू कीजिये, आज का दिन है। पाँच मिनट या दस मिनट, हाँ हाथ खड़े किए हैं साध-संगत ने, ये आप प्रण देते हो तो आज हम आपको ये प्रण करवाते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों का फायदा हो तो जोर से नारा लगाएं और फिर हाथ नीचे कर लें। मालिक बहुत-बहुत खुशियां दे और दया मेहर रहमत से नवाजे, कि आप पाँच या दस मिनट सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचेंगे।
पानी पीजियेगा, तीन लंबी साँस लीजिये, चाहे एमएसजी कहकर या राम-राम कहकर, अल्लाह-अल्लाह कहकर, वाहेगुरु-वाहेगुरु कहकर, जो ठीक लगे आपको पर राम का नाम लेना है और बस तीन स्वाँस के बाद शांति से सोचिये, बचपन से शुरू हो जाइये, एक दिन में नहीं पहुंचेंगे जहां तक आप हैं, चलो पाँच-सात, दस दिन, पन्द्रह दिन लग जाएंगे कि हाँ भई देखो ये किया करता था अच्छा लगता था, ये बुरा था, करते-करते जो आज का दिन है वहां पहुंचोगे तो फिर वो पाँच मिनट भी बड़े लगा करेंगे, कि यार मैं क्या ढूंढू, मैं तो कर चुका हूँ।
वो ही पाँच मिनट फिर आप अपनी बॉडी की सुनने की कोशिश करना। जब अपनी आदतें सुधार पाएं, कर पाएं, हर आदमी की बॉडी आदमी के लिए डॉक्टर होती है। हमसे लिखवा कर ले लो चाहे। कुछ भी आप गलत करते हो, आपको रोकेगी। कुछ भी गलत खाते-पीते हो, आपको रोकेगी। कुछ भी बॉडी पर ओवरलोड होता है, आपको रोकेगी, कि नहीं इतना मत कर, ये गलत है। उसकी सुनना सीख जाओगे उस पाँच-दस मिनट में और यकीन मानों जो अपने शरीर की सुनने लग जाता है आत्मिक तौर पर वो अच्छी तरह से शरीर को तंदुरुस्त रख पाता है।
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