पारा शून्य से थोड़ा ऊपर | Animal birds
उत्तर भारत में इस सप्ताह से सर्दी ने अपना असली रूप धर लिया है। पारा शून्य से थोड़ा ऊपर ही रह गया है। कड़ाके की ठंड के इस दौर से आदमी जम रहे हैं, लेकिन जीव-जंतुओं (Animal birds) पर क्या गुजर रही है, यह तो भगवान ही जानता है। व्यक्ति अपनी बुद्धिमानी के चलते ठंड से बचाव का आश्रय, अलाव व खाने, कपड़े का जुगाड़ कर अपने को ठंड से बचा लेता है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी ठंड में अपना कोई ठौर ढूंढ ही लेता है। परंतु इस मौसम की सबसे बेरहम मार जीव-जंतुओं पर पड़ती है, जिसमें आवारा गायें, गलियों में घूमते लावारिस कुत्ते, बिल्लियां व अनेकों अन्य छोटे-मोटे जीव-जंतु, जिन्हें आदमी की तरह ठंड सताती है, परंतु उन्हें अपने बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझता।
इसके अलावा ऐसे भी बहुत से जीव-जंतु हैं जो मानव ने बंदी तो बना रखें हैं परंतु उन्हें मौसम की मार से कैसे बचाया जाए, इसके प्रति आदमी खासकर सरकारी कर्मचारी लापरवाह रहते हैं। कुछ वर्ष पूर्व सर्दी में वडोदरा में ऐसे ही लापरवाही के शिकार एक चीते व उसके शावक ने ठंड के आगे दम तोड़ दिया था। चिड़ियाघरों या जीव-जंतुओं के अन्य आवास जो प्राकृतिक न होकर मानव निर्मित हैं, में जीव-जंतु अपनी प्राकृतिक क्षमता खो देते हैं और सिर्फ व्यक्तियों के रहमो-कर्म पर ही जीवन जीते हैं। ठीक ऐसा ही हाल उन दुधारू एवं भार खींचने वाले पशुओं का होता है, जिन्हें घरों में पारिवारिक सुख सुविधाओं एवं रोजगार के लिए पाला जाता है, परंतु कई बार बहुत से परिवार आर्थिक मजबूरियों अथवा स्थानाभाव के कारण अपने पालतू पशुओं को खुला छोड़कर रखते हैं, जिससे वह दिन-रात बेआसरा भटकने को मजबूर होते हैं।
इस मजबूरी में उन्हें भरपेट चारा भी नहीं मिल पाता, जिसकी वजह से प्रत्येक वर्ष शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हुए भी ऐसे पशु अकाल ही मौसम का शिकार होकर जान गवां बैठते हैं। निरीह पशुओं के यूं ही मर जाने का एक अन्य कारण वाहन दुर्घटानाएं भी बनती हैं। धुंध एवं कोहरे के मौसम में वाहन चालकों को रास्तों में भटकते जानवर दिखाई नहीं दे पाते, जिससे जानवर व बहुत बार व्यक्ति खुद दुर्घटना का शिकार होकर अपंग हो जाते हैं या फिर मारे जाते हैं।
इस मौसम में सबसे अधिक दुर्गति यदि किसी जानवर की होती है तो वह गायों, आवारा कुत्तों के बच्चों व चिड़ियाघरों में रह रहे छोटे-बड़े सभी जानवरों की होती है। सरकार, प्रशासन, स्वयं सेवी संस्थाएं, लोक जागरूकता के वक्त इनके महत्व व प्रकृति में इनके स्थान का बखान अक्सर करते हैं, परंतु सर्द मौसम में पशुओं के चारे, उन्हें आश्रय के लिए स्थानों व वांलटियर का प्राय: अभाव ही रहता है। मानवीय अनदेखी के चलते वर्तमान में जीव-जंतुओं की सैकड़ों-हजारों प्रजातियां खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है। वर्ष भर जीव-जंतुओं पर प्रदूषण की मार तो रहती ही है, परंतु गर्मी व सर्दी इनकी जान पर मुसीबत की तरह गुजरती है। स्वयं सेवी संस्थाओं, सरकार, पशुपालकों, वाहन चालकों यानि सभी को जीव-जंतुओं की रक्षार्थ अपने सामर्थ्य, समय अनुसार सहयोग देना चाहिए।
सरकार, पशुपालकों व कर्मचारियों को पाबंद कर सकती है कि लापरवाही से किसी भी जीव को मुसीबत नहीं उठानी पड़े तथा उनके चारे में ऐसे तत्वों को शामिल किया जाए जो शारीरिक रूप से पशुओं को सर्दी बर्दाश्त करने की सामर्थ्य दे सकें। इसके अलावा पशु चिकित्सा विभाग घायल पशुओं को गांव व मौहल्ले स्तर पर उपचार मुहैया करवाए।