आधुनिकता में खो गई पानी घड़ी , प्राचीनकाल में लोगों को बताती थी समय

Water clock

कुरुक्षेत्र (देवीलाल बारना)।  हिंदुस्तान में विज्ञान बहुत पहले से है, इसका अंदाजा पुराने समय में भारत में आम पाए जाने वाले उपकरणों से लगाया जा सकता है। (Water clock) ये देशी उपकरण बहुत ही कारगर उपकरण माने जाते थे। लेकिन जैसे जैसे विज्ञान ने ओर ज्यादा तरक्की की तो आधुनिकता की इस दौड़ में हमें नई-नई तकनीकों के उपकरण देखने व प्रयोग करने को मिल गए और पुराने उपकरण मात्र याद बन कर रह गए। इसी तकनीक में शामिल है समय देखने की घड़ी। समयानुसार समय देखने के लिए अलग-अलग यंत्रों का प्रयोग किया जाता रहा है।

धूप की घड़ी का भी प्राचीनकाल में था प्रचलन

प्राचीनकाल में धूप की घड़ी का प्रचलन हुआ जिसमें दीवार पर निशान लगा दिया जाता था और निशान पर पड़ने वाली परछाई से समय का पता लगाया जाता था। इसके बाद सुईयों वाली घड़ी का प्रयोग किया जाने लगा। जिसमें चाबी भरी जाती थी और यह घड़ी समय बताया करती थी। तत्पश्चात सुईयों वाली घड़ी सैल से चलने लगी जिसमें चाबी भरने का झंझट ही खत्म हो गया और एक बार सैल डालने के बाद महिनों तक समय देखा जा सकता है। अब डिजीटल घडियों का प्रचलन बढ़ रहा है जिसके माध्यम से सैकेंड व मिनट सहित अंकों में समय का पता लगाया जा सकता है।

प्राचीन काल में ज्यादातर लोग खेती पर ही निर्भर रहते थे। किसान रात के समय नहरी व रहट से पानी लगाया करते थे परंतु रात को पानी लगाने के लिए समय का ठीक पता नहीं चलता था। और इसके परिणाम स्वरुप किसानों के पानी का बंटवारा सही से नहीं हो पाता था। उस समय में विशेषकर किसानों के लिए समय देखने के लिए एक विशेष यंत्र तैयार किया गया जो पानी की घड़ी के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस यंत्र के माध्यम से किसान पानी का बंटवारा समय के अनुसार करने लगे और सभी किसानों को बराबर रूप से पानी मिलने लगा।

  • पानी की घड़ी के नाम से ही पता लग जाता है कि यह घड़ी जरुर पानी से चलती होगी।
  • यह यंत्र एक अजीब तरीके का देशी व खर्चा रहित यंत्र होता था।

ऐसी बनावट थी पानी की घड़ी की | Water clock

  • यह कटोरेनुमा तांबे या पीतल की पतली चद्दर से बना होता है।
  • और इसके बीच में छोटा सा छेद होता है।
  • इसे पानी की बाल्टी में रख दिया जाता है।
  • छेद के माध्यम से पानी इस कटोरे में भरता जाता है।
  • जब यह कटोरा पानी से भर जाता है तो पानी में डूब जाता है।
  • वैसे तो कटोरे की समय सीमा उसके आकार के उपर निर्भर करती है
  • परंतु आमतौर पर इसकी समय सीमा एक घड़ी यानि 24 मिनट होती है।
  • हरियाणा के लोग इसे बेलवा घड़ी भी बोलते थे।

24 मिनट की होती है घड़ी

  • बुजुर्गां के अनुसार 1 घड़ी 24 मिनट की होती है ।
  • अढ़ाई घड़ी का एक घंटा होता है।
  • घड़ी का भी हरियाणा में बहुत महत्व है
  • हरियाणा में आज भी लोग घड़ी दो घड़ी शब्दों का प्रयोग करते नजर आ जाते हैं।
  • इसके अलावा हरियाणा में घड़ी से कम समय के लिए बिंदश्यात शब्द का प्रयोग किया जाता है।

शरारत भी कर देते थे शरारती लोग

अपना फायदा लेने के लिए कुछ शरारती लोग इस यंत्र का गलत प्रयोग भी कर देते थे। वे लोग जल्दी समय निकालने के चक्कर में घड़ी वाले कटोरे में पानी डाल देते थे जिससे कटोरा जल्दी पानी में डूब जाता था।

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