एक ही नदी है जिसने एक तरफ राहत और दूसरी तरफ तबाही मचा रखी है। बारिश की शुरूआत होने पर ही घग्गर नदी में पानी आया तो जिला सिरसा के ओटू हैड पर रौणक आ गई। नदी का पानी बढ़ने से किसानों के चेहरे खिल उठे। इस हैड वर्क्स से तीन नहरें निकाली गई है जो घग्गर पर बनी ओटू झील का पानी खींचकर बाढ़ की समस्या का भी समाधान करती है और 40-50 गांवों के धान के खेतों के लिए वरदान साबित हो रही है। रानियां-ऐलनाबाद क्षेत्र के किसान नदी में पानी आने का इंतजार करते हैं दूसरी ओर इसी नदी ने पंजाब के जिला संगरूर व पटियाला और हरियाणा के जिला फतेहाबाद के किसानों के लिए आफत खड़ी कर रखी है। जिला संगरूर के मूणक कस्बा के नजदीक नदी के बांध में कटाव के कारण हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो गई है।
अपनी डूबी फसल को देखकर किसानों की आंखों से आंसू हैं कि रूक ही नहीं रहे। एक ही नदी यहां फसलों के लिए भाग्यशाली हो रही है तो दूसरी तरफ वही नदी तबाही मचा रही है, लेकिन पंजाब सरकार के पास वही रटारटाया जवाब है कि वह इस समस्या को संसद में उठाएंगे और ‘जल्द ही इसका स्थायी समाधान करेंगे’। सरकार तो पहले भी केंद्र में किसी न किसी पार्टी की रही थी। दस साल लगातार कांग्रेस ने केंद्र में सरकार चलाई, लेकिन घग्गर नदी की समस्या का समाधान नहीं हुआ। भाजपा की सरकार भी पांच साल तक रही लेकिन घग्गर की समस्या पर कोई काम नहीं हो रहा। राजनीति में जिला पटियाला व संगरूर की जमकर चलती है। पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री पटियाला से हैं। संगरूर जिला से भी मुख्यमंत्री व उप-मुख्यमंत्री बनते रहे हैं।
हरियाणा पंजाब यदि दोनों मिलकर इसका सद्भावना से समाधान करें तब यह कोई बड़ा मुद्दा भी नहीं। ओटू केवल हरियाणा में पड़ता है, बेहद सरल तरीके से इसका समाधान निकाल लिया। यहां घग्गर के पानी के लिए झील बनाई गई और क्षेत्र के लिए वह अब वरदान बन गई है। अफसोस, जहां दो राज्यों का मामला आ जाता है वहीं मामला अधर में ही लटक जाता है। राजनीति के चक्कर में किसानों का नुक्सान हो रहा है। घग्गर कोई ज्यादा लंबी नदी नहीं है। हिमाचल से शुरू होकर पंजाब और हरियाणा तक यह 320 किलोमीटर तक लंबी है। हालांकि यह राजस्थान से होकर पाकिस्तान में लुप्त हो जाती है परन्तु वहां यह बर्बादी नहीं करती। यदि संगरूर और पटियाला जिला में कोई डैम प्रोजैक्ट कागजों से जमीन पर उतार लिया जाएगा तब यह हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों के लिए वरदान बन सकती है। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों की बजाए अति आवश्यक है कि किसानों के प्रति संवेदनशील होकर इसका समाधान किया जाए।
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