राज्य सरकारें सुस्त, एनजीटी दरुस्त

Governments

एक प्रसिद्ध लेखक का दावा है कि सतलुज नदी में बहता प्राकृतिक पानी तो रोपड़ के नजदीक ही खत्म हो जाता है। फिर हरीके पत्तन तक यह नदी फिर कैसे भर जाती है। लेखक के दावों में दम है। वास्तव में लुधियाना सहित अन्य शहरों का दूषित पानी नदी में बहाया जाता है। नगर निगमों/ परिषदें ने ट्रीटमेंट प्लांट के द्वारा दूषित पानी को दोबारा प्रयोग करने का दावा किया जाता है लेकिन यह भी वास्तविक्ता है कि ट्रीटमेंट प्लांट कितने निरंतर चलते हैं और कितने खराब होने पर संभाले जाते हैं, यह मामला भी चिंताजनक है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की टीम ने मोहाली नगर कौंसिल को बंद पड़े प्लांट के लिए लताड़ लगाई है और तो मार्च तक का समय दिया है। ऐसी लापरवाही पता नहीं कितनी जगहों पर और कितने समय से होती हैं जिनका खमियाजा पंजाब व राजस्थान के लोगों को भुगतना पड़ता है। लोगों के लिए जीवित रहने के लिए नहरों का पानी पीना मजबूरी है। अभी कुछ दिन पहले ही पंजाब सरकार ने सभी पार्टियों की मीटिंग रखी थी जिसमें राज्य में पानी की कमी पर चिंता जताई गई थी। इस बैठक में भले ही चर्चा का विषय हरियाणा को पानी न देने का रहा हो लेकिन यह बात तो उभरकर सामने आई थी कि पंजाब में भू-जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है और नदियों में भी पानी की उपलब्धता में गिरावट आई है। इसके बावजूद पंजाब सरकार ने राज्य में जल स्रोतों की संभाल संबंधी कोई ठोस पहलकदमी नहीं की।

यदि किसी शहर में ट्रीटमेंट प्लांट बंद पड़े हैं तब उसकी सुध लेने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की टीम को ही आना पड़ रहा है जबकि राज्य सरकारें इस मामले में बहुत लापरवाही बरत रही हैं। यही हाल गंगा नदी का है जहां बड़े स्तर पर गंदा पानी डाला जा रहा है। वहां भी राज्य सरकार की अपेक्षा ज्यादा सक्रियता नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रही है। उल्टा, एनजीटी को तो राज्य सरकार को करोड़ों रुपए का जुर्माना लगाना पड़ा है। कानपुर की फैक्टरियों को नदी में गंदा पानी छोड़ने के लिए सैकड़ों करोड़ों के जुर्माने लगाए गए हैं। जब राज्य सरकारें ही लापरवाह करती रहेंगी तब सुधार की उम्मीद कैसे की जा सकती है? नदियों में प्रदूषण देशवासियों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। जल ही जीवन है और इसकी संभाल राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।

 

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।