chandrayaan-3 mission: अंतरिक्ष: बढ़ते कदम और प्रकट होती संभावनाएं

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Chandrayaan-3 landing live: स्कूली बच्चे लाइव देखेंगे चंद्रयान-3 की लैंडिंग

chandrayaan-3 mission: विगत 14 जुलाई को चंद्रयान-3 मिशन के रूप में भारत ने चंद्रमा की ओर एक नई यात्रा की शुरुआत की। इससे पहले भी वर्ष 2008 एवं वर्ष 2019 में क्रमश: प्रथम एवं द्वितीय चंद्रयान मिशन के द्वारा भारत ने संपूर्ण विश्व को यह बता दिया कि अब हमारे कदमों में भी चांद तक का सफर तय करने का सामर्थ्य आ चुका है। चंद्रयान-1 मिशन के द्वारा एक बेहद महत्वपूर्ण जानकारी प्रकाश में आई थी कि चांद पर कभी पानी मौजूद था।

चंद्रयान-2 दुर्भाग्यवश लैंडिंग के दौरान हादसे का शिकार हो गया एवं मिशन अपूर्ण रह गया। इस अधूरे मिशन का बीड़ा उठाते हुए चंद्रयान-3 ने चांद की ओर उड़ान भरी है। यहां पर एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि चंद्रयान-1 से हमें चंद्रमा के विषय में जानकारी तो मिली किंतु उस मिशन में चंद्रमा की सतह से सूचनाएं एकत्र करने का तरीका चंद्रयान-2 एवं चंद्रयान-3 से सर्वथा भिन्न था। Chandrayaan-3

चंद्रयान-1 मिशन में एक उपकरण मून इंपैक्ट प्रोब को चांद के दक्षिणी हिस्से पर गिराया गया था जबकि चंद्रयान-3 में चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग होनी है। यह व्यवस्था चंद्रयान-2 में भी थी किंतु लैंडिंग करते वक्त रोवर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। चंद्रयान-3 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। सॉफ्ट लैंडिंग सफल होते ही भारत भी अमेरिका, रूस एवं चीन के बाद चांद पर लैंडर उतारने वाला विश्व का चौथा देश बन जाएगा।

इस मिशन के साथ एक खास बात यह है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की ओर रवाना होने वाला यह विश्व का प्रथम मिशन है। लेकिन हमारा मिशन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने वाला विश्व का प्रथम मिशन बन पाएगा अथवा नहीं, इस विषय में पूर्ण निश्चितता के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। इसका कारण यह है कि रूस ने भी 11 अगस्त को अपना मून मिशन लूना-25 लांच किया है। Chandrayaan-3

गौरतलब है कि चंद्रयान-3 की तुलना में लूना-25 बेहद शक्तिशाली प्रक्षेपण रॉकेट से सम्बद्ध है जिस वजह से लूना-25 को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को पार करके चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होने में महज एक सप्ताह का समय लगा, जबकि चंद्रयान-3 को पृथ्वी की कक्षा छोड़कर चांद की आॅर्बिट पकड़ने में 22 दिन का समय लग गया। यहां पर उल्लेखनीय है कि निस्संदेह भारत के द्वारा चंद्रमिशन हेतु अथक परिश्रम करते हुए एक अच्छा खासा समय खर्च किया गया। किंतु तकनीक के मामले में अभी हम कहीं न कहीं रूस के मुकाबले पीछे खड़े हैं। तकनीक का यह अंतर लूना-25 एवं चंद्रयान-3 की तुलना करते हुए स्पष्ट दिखाई पड़ता है। Chandrayaan-3

जैसा कि सर्वविदित है कि पृथ्वी से चांद तक की यात्रा में चंद्रयान-3 के लिए चालीस दिन का समय निर्धारित है जबकि लूना-25 के द्वारा यही यात्रा दस दिन में पूरी कर ली जाएगी। वजह यह है कि लूना-25 अपनी यात्रा हेतु एक बेहद शक्तिशाली रॉकेट सोयुज पर सवार है जबकि चंद्रयान-3 के साथ इतनी क्षमतायुक्त व्यवस्था नहीं है। रूस के पास मौजूद प्रक्षेपण रॉकेट इस हद तक सक्षम है कि उसके चंद्रमिशन को चंद्रमा तक पहुंचाने के लिए इतनी ऊर्जा व संवेग प्राप्त हो जाता है कि वह सीधे मार्ग का अनुसरण करते हुए चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हो सकता है। दूसरी ओर भारत के स्पेसक्राफ्ट को स्लिंग शॉट तकनीक के जरिए चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया जाता है। इसे हम एक व्यावहारिक उदाहरण से समझ सकते हैं।

यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कि एक पत्थर को किसी डोरी से बांधकर उसे बंद पथ में बार-बार घुमाना एवं प्रत्येक घुमाव के बाद पथ को बड़ा करते हुए अंत में उसे लक्ष्य की ओर छोड़ देना। इस प्रक्रिया में पत्थर अभिकेंद्र बल का सहारा लेते हुए ऊर्जा प्राप्त करता है और धीरे-धीरे उसकी कक्षा बड़ी होती जाती है। चंद्रयान-3 में भी पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से जनित अभिकेंद्र बल का उपयोग करते हुए उसे उत्तरोत्तर बड़े आकार की अर्थ आर्बिट में घुमाया गया एवं अंत में उसे पर्याप्त ऊर्जा देकर पृथ्वी से पलायन कराते हुए चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया। दूसरा विकल्प यह होता है कि पृथ्वी के चक्कर कम काटने पड़ें एवं सीधा चंद्रमा की कक्षा में प्रविष्ट हुआ जाए, जोकि तभी संभव है जबकि प्रक्षेपणयान पर्याप्त शक्तिशाली हो। फिलहाल हमारी रॉकेट तकनीक इतनी उन्नत दशा में नहीं है, लिहाजा हम लंबे व घुमावदार मार्ग का अनुसरण करने के लिए बाध्य हैं। Chandrayaan-3

बहरहाल लैंडिंग चाहे चंद्रयान-3 की पहले हो अथवा लूना-25 की, दोनों के साथ अनेक लक्ष्य एवं स्वप्न जुड़े हुए हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा जोकि भौगोलिक रूप से विषमतापूर्ण एवं अद्भुत क्षेत्र है। सूर्य की रोशनी सीधे पड़ने के कारण यहां का तापमान अपेक्षाकृत अधिक रहता है। चांद की सतह पर रोवर प्रज्ञान चौदह दिन तक अपना अनुसंधान कार्य करेगा जबकि लूना-25 मिशन की अवधि एक वर्ष है। जैसा कि चंद्रयान-1 मिशन से जानकारी मिली थी कि चंद्रमा पर कभी पानी की मौजूदगी थी। Chandrayaan-3

इस तथ्य की सत्यता की जांच हेतु चंद्रयान-3 चंद्रमा पर मौजूद गड्ढों एवं चट्टानों को बारीकी से परखकर यह बताने का प्रयास करेगा कि चांद पर बर्फ या पानी की उपस्थिति की बात कितने फीसदी सच है। इसके अतिरिक्त एक अन्य बेहद महत्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि चंद्रमा पर हीलियम-3 की उपस्थिति की अपार संभावनाएं हैं। हीलियम-3 ऊर्जा का एक असीमित व अतुलनीय स्रोत है। यदि किसी प्रकार भविष्य में हीलियम-3 को चंद्रमा से पृथ्वी तक लाना संभव हो सका, तो संपूर्ण विश्व की ऊर्जा आवश्यकता हेतु एक उत्तम आपूर्तिस्रोत उपलब्ध हो जाएगा। Chandrayaan-3 Updates

चंद्रमा पर पृथ्वी से 100 गुना ज्यादा हीलियम-3 विद्यमान है। मैग्नीशियम, सिलिकॉन, पोटेशियम, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन, अल्युमिनियम जैसी धातुओं एवं अन्य बहुमूल्य खनिजों की मौजूदगी का पता लगाना भी चंद्रयान-3 के उद्देश्यों में शामिल है। कुल मिलाकर यह मिशन हमारे लिए भविष्य की एक आशाकिरण है। इसकी सफलता निश्चित रूप से भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विस्तार एवं विश्वपटल पर भारत के कद की बढ़त के द्वार खोलेगी।

अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार अब वह दिन दूर नहीं है जब अंतरिक्ष की सैर एक लोकप्रिय पर्यटन हो जाएगा। धरती की यात्रा वास्तव में समय तालिका के पैमाने पर बहुत छोटी हो चुकी है क्योंकि परिवहन के साधनों ने विकास के उन्नतोन्नत आयामों को स्पर्श कर लिया है। यद्यपि अंतरिक्ष पर्यटन का सपना साकार होने में कई दशक लगेंगे किन्तु इसमें कोई दो राय नहीं है कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए चांद व मंगल की सैर एक आम बात होगी। Chandrayaan-3

शिशिर शुक्ला, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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